धर्मांतरित दलितों के लिए एससी आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से तीन सप्ताह के भीतर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा

Shahadat

31 Aug 2022 5:35 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से अनुसूचित जाति समुदाय को अन्य धर्मों में परिवर्तित होने वाले दलितों को उपलब्ध आरक्षण का लाभ देने के मुद्दे पर अपना वर्तमान रुख प्रदान करने को कहा। जिस याचिका में आदेश पारित किया गया है वह लगभग 18 साल पहले दायर की गई थी।

    जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस ए.एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ ने केंद्र सरकार को तीन सप्ताह की अवधि के भीतर अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को एक सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने को कहा गया।

    सभी पक्षों को सुनवाई की अगली तारीख यानी 11 अक्टूबर, 2022 से कम से कम 3 दिन पहले सिनॉप्सिस दाखिल करना आवश्यक है।

    जस्टिस कौल ने जोर देकर कहा कि जवाब बिना किसी देरी के निर्धारित समयसीमा के अनुसार दायर की जानी चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    "मुझे यह बहुत कष्टप्रद लगता है कि कोई भी समय पर जवाब दायर नहीं करता। तब पूरा कार्यक्रम गड़बड़ा जाता है।"

    राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग द्वारा सेवानिवृत्त सीजेआई रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में 2007 में प्रस्तुत रिपोर्ट में दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए योग्यता पाई गई थी। याचिकाकर्ता एनजीओ सीपीआईएल की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने रिपोर्ट पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि सामान्य आशंका यह है कि यदि दलित ईसाइयों को भी एससी आरक्षण का लाभ दिया जाता है तो ईसाई शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच रखने वाले दलित ईसाई सफलतापूर्वक अधिकांश आरक्षित सीटों पर कब्जा कर लेंगे। भूषण ने आगे कहा कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने वास्तव में इससे निजात पाने के लिए तरीका ईजाद किया है। उन्होंने सुझाव दिया कि संबंधित समुदाय की आबादी के अनुसार एक प्रकार का उप-आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।

    जस्टिस कौल ने विचार किया कि क्या अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण संवैधानिक रूप से स्वीकार्य होगा। उन्होंने माना कि इसे कानून के प्रश्न के रूप में तैयार किया जा सकता है।

    उन्होंने कहा,

    "आरक्षण के भीतर आरक्षण। फिर मुद्दा होगा, क्या यह लागू हो सकता है। ओबीसी श्रेणी में यह किया गया लेकिन क्या यह एससी वर्ग में किया जा सकता है यह कानून का एक और सवाल होगा।"

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की राय है कि असली सवाल यह है कि क्या दलित अन्य धर्मों में परिवर्तित होने के बाद भी अनुसूचित जाति समुदाय के लिए उपलब्ध लाभ प्राप्त करना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि धर्मांतरण यह सुनिश्चित करने के लिए है कि दलित होने के दुष्परिणाम दूर हो जाएं, उस अर्थ में धर्मांतरण के बाद आरक्षण बढ़ाने की आवश्यकता नहीं हो सकती।

    मेहता ने पीठ को अवगत कराया कि वर्तमान सरकार रंगनाथ आयोग की सिफारिश को इस आधार पर स्वीकार नहीं करती कि उसने कई कारकों पर विचार नहीं किया।

    जस्टिस कौल ने पूछा,

    "कब हलफनामा दायर किया गया कि आप आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करते हैं। क्या यह पिछले 7-8 वर्षों में या उससे पहले है?"

    मेहता ने कहा कि जहां तक ​​उनकी जानकारी है उन्हें इस तरह के किसी भी हलफनामे की जानकारी नहीं है। उन्होंने इस मामले पर कुछ हफ्तों के लिए अदालत से अनुमति मांगी ताकि वह इस मुद्दे पर सरकार के स्पष्ट रुख को दर्शाते हुए हलफनामा दायर कर सकें।

    सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में दलित ईसाइयों की राष्ट्रीय परिषद (एनसीडीसी) नामक संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    [मामले टाइटल: गाजी सआउद्दीन बनाम महाराष्ट्र राज्य टीएचआर। सचिव और अन्य.सी.ए. नंबर 329-330/2004]

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story