"मीडिया की चर्चा के दीवाने हो गए हो": संविधान (अनुसूचित जातियाँ) आदेश 1950 को चुनौती देने वाले लॉ स्टूडेंट को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

Praveen Mishra

7 Nov 2025 6:23 PM IST

  • मीडिया की चर्चा के दीवाने हो गए हो: संविधान (अनुसूचित जातियाँ) आदेश 1950 को चुनौती देने वाले लॉ स्टूडेंट को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

    सुप्रीम कोर्ट ने आज एक तीसरे वर्ष के क़ानून के छात्र की याचिका को खारिज करते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई। छात्र ने 1950 के संविधान (अनुसूचित जातियाँ) आदेश — जो राष्ट्रपति द्वारा पारित आदेश है और जिसमें अनुसूचित जातियों की सूची निर्धारित की गई है — को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता (जो स्वयं पेश हुए थे) से कहा कि पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय वे “फिजूल की याचिका” दाखिल कर रहे हैं।

    सुनवाई की शुरुआत में जब न्यायाधीश ने पूछा कि याचिकाकर्ता क्या करते हैं, तो उन्होंने बताया कि वे तीसरे वर्ष के लॉ स्टूडेंट हैं। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा कि अभी कानून की पढ़ाई पूरी भी नहीं की और इतने पुराने आदेश को चुनौती देने की ज़रूरत कैसे महसूस हुई?

    जस्टिस ने तीखे शब्दों में कहा —

    “तुम्हें मीडिया में आने का शौक़ लग गया है। कानून की पढ़ाई पूरी किए बिना ही याचिकाएँ दाखिल करने लगे हो। यह आदेश 1950 का है और आज 2025 चल रहा है — अब अचानक तुम्हें लगा कि इस आदेश को चुनौती देनी चाहिए?”

    जब छात्र ने “हाँ” में उत्तर दिया, तो न्यायमूर्ति ने सख़्त लहजे में कहा —

    “पहले जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करो, वरना हम भारी जुर्माना लगाएंगे और टिप्पणी भी करेंगे।”

    जब छात्र ने यह कहते हुए ज़ोर दिया कि “मैं पीड़ित व्यक्ति हूँ…”, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा कि यह याचिका पूरी तरह निरर्थक है।

    अदालत ने आदेश में लिखा —

    “याचिकाकर्ता, जो स्वयं को क़ानून का छात्र बताते हैं, उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह याचिका दाखिल की है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे मीडिया में आने के दीवाने हैं और बिना किसी शोध या ठोस जानकारी के अधूरी और दिशाहीन याचिका दायर की है। अतः यह याचिका ख़ारिज की जाती है।”

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