सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सूर्यकांत ने अग्रिम जमानत आवेदनों में दिल्ली हाईकोर्ट के लंबे आदेशों पर चिंता जताई, कहा- जो हो रहा है, वह घृणित है
Shahadat
21 Feb 2025 9:59 AM

जमानत मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सूर्यकांत ने दिल्ली हाईकोर्ट के 30-40 पृष्ठों वाले अग्रिम जमानत याचिकाओं के निपटारे के आदेशों पर कड़ी असहमति जताई। जज ने कहा कि ये व्यावहारिक रूप से "दोषसिद्धि आदेश" हैं, जो ट्रायल कोर्ट को दोषी ठहराने के लिए कारण बताते हैं।
उन्होंने कहा,
"दिल्ली हाईकोर्ट में जो हो रहा है, वह घृणित है। अग्रिम जमानत का निपटारा करते समय हाईकोर्ट द्वारा 30-40 पृष्ठ लिखना ट्रायल कोर्ट को संकेत दे रहा है कि आपको दोषी ठहराने के लिए कारण हैं। अनिवार्य रूप से यह दोषसिद्धि आदेश है।"
जस्टिस कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ धारा 408/420/467/468/471/120बी आईपीसी के तहत दर्ज मामले में प्रैक्टिसिंग सर्जन की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली हाईकोर्ट के 34-पृष्ठ के आदेश के अनुसार, उन्हें और उनकी मां को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया गया, जिसमें कहा गया, "अभियोजन पक्ष द्वारा आवेदकों के खिलाफ प्रस्तुत किए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। इसमें एक सुनियोजित वित्तीय धोखाधड़ी शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में धन का दुरुपयोग हुआ है।"
हाईकोर्ट ने कहा,
"वर्तमान मामले में तथ्य प्रकृति में चिंताजनक हैं। आरोप यह है कि आरोपी व्यक्ति जो एक ही परिवार के सदस्य हैं, यानी पिता, माता और बेटे और बहू, ने शिकायतकर्ता कंपनी के धन को निकालने और डायवर्ट करने के लिए एक सुनियोजित साजिश रची। वास्तव में उन्होंने शिकायतकर्ता कंपनी के दूसरे व्यक्तित्व का इस्तेमाल किया। शिकायतकर्ता कंपनी के व्यवसाय में लूट की। इस तरह के अपराध वाणिज्यिक और आर्थिक दुनिया के लिए बहुत गंभीर हैं और इन्हें अत्यंत गंभीरता से देखा जाना चाहिए। आरोपी व्यक्ति इतने करीबी रिश्तेदार हैं कि एक-दूसरे को बचाने के लिए उनके द्वारा सही जानकारी न देने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।"
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनके लिए पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता ही याचिकाकर्ता और उनकी मां (प्रॉक्सी के रूप में) के माध्यम से संबंधित फर्म चला रहे थे। उन्हें 7 महीने की हिरासत के बाद जमानत दी गई। फिर भी याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट ने उनके पिता के बराबर माना और अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जबकि वह 5 मौकों पर जांच में शामिल हुए।
अदालती प्रश्न पर लूथरा ने आगे बताया कि मामले में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है। उनकी सुनवाई करते हुए पीठ ने प्रतिवादी-अधिकारियों को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।
केस टाइटल: आधार खेड़ा बनाम दिल्ली सरकार, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 2591/2025