सुप्रीम कोर्ट ने PMLA मामले में ट्रायल में देरी और लंबी हिरासत का हवाला देते हुए जमानत दी
Shahadat
20 Feb 2025 4:48 AM

लंबे समय तक जेल में रहने और ट्रायल पूरा होने में देरी की संभावना का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोपी को जमानत दी।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच उद्धव सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो 14 महीने से हिरासत में था। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जांच के लिए 225 गवाहों को सूचीबद्ध किया था, फिर भी अब तक केवल एक की ही जांच की गई।
जस्टिस ओक द्वारा लिखित निर्णय भारत संघ बनाम के.ए. नजीब और वी. सेंथिल बालाजी बनाम उप निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय के मामलों पर निर्भर था, जहां न्यायालय ने माना कि UAPA और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) जैसे कठोर कानूनों के तहत लंबे समय तक कारावास, विशेष रूप से जब मुकदमे को उचित समय सीमा के भीतर समाप्त होने की संभावना नहीं होती है, अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकता है, जो शीघ्र सुनवाई के अधिकार की गारंटी देता है। दोनों मामलों में निर्णय संवैधानिक न्यायालयों की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है कि वे ऐसी परिस्थितियों में जमानत देने के अपने अधिकार का प्रयोग करें, यहां तक कि PMLA या UAPA जैसे कठोर कानूनों के तहत सख्त जमानत प्रावधानों के आलोक में भी।
इसके अलावा, मामले का दिलचस्प पहलू यह था कि पीठ ने सहायक निदेशक बनाम कन्हैया प्रसाद के मामले में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित हाल के आदेश को स्पष्ट किया, जहां न्यायालय ने PMLA की धारा 45 के तहत दोहरी शर्तों को पूरा न करने का हवाला देते हुए PMLA आरोपी को दी गई जमानत रद्द की। कन्हैया प्रसाद मामले में न्यायालय ने कहा कि PMLA की धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो शर्तें अनिवार्य थीं। न्यायालयों द्वारा ऐसे मामलों में जमानत देने को अस्वीकार किया गया, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग गंभीर अपराध था।
वर्तमान मामले में जमानत देते समय जस्टिस ओक की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्टीकरण या व्याख्या प्रदान की कि जस्टिस त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पीठ कन्हैया प्रसाद मामले में जिस निर्णय पर पहुंची, वह क्यों पहुंची।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपीलकर्ता की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए कन्हैया कुमार के मामले में पारित आदेश पर भरोसा किया। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कन्हैया कुमार के मामले में तथ्यात्मक परिस्थितियां अलग थीं, क्योंकि उस मामले में अभियुक्त काफी कम अवधि (सात महीने से कम) के लिए हिरासत में था और मुकदमे में अनुचित देरी का कोई निष्कर्ष नहीं था।
कन्हैया कुमार के मामले में अपने निर्णय को उचित ठहराते हुए न्यायालय ने समझाया कि वी. सेंथिल बालाजी और के.ए. नजीब में स्थापित मिसालें वहां क्यों लागू नहीं की गईं। चूंकि अभियुक्त को लंबे समय तक कारावास में नहीं रखा गया और मुकदमा बिना किसी अनावश्यक देरी के आगे बढ़ रहा था, इसलिए न्यायालय ने माना कि सेंथिल बालाजी और के.ए. नजीब में स्थापित सिद्धांत उस मामले के लिए प्रासंगिक नहीं थे।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“हमारा ध्यान सहायक निदेशक बनाम कन्हैया प्रसाद के माध्यम से भारत संघ के मामले में समन्वय पीठ के निर्णय की ओर आकर्षित किया जाता है। निर्णय का अवलोकन करने के बाद हम पाते हैं कि यह एक ऐसा मामला था, जहां भारत संघ बनाम के.ए. नजीब और वी. सेंथिल बालाजी के मामले में इस न्यायालय के निर्णय तथ्यों पर लागू नहीं थे। शायद यही कारण है कि इन निर्णयों को समन्वय पीठ के समक्ष नहीं रखा गया। इसमें प्रतिवादी-अभियुक्त को 18 सितंबर, 2023 को गिरफ्तार किया गया और हाईकोर्ट ने उसे 6 मई, 2024 को जमानत दी। जमानत दिए जाने से पहले वह 7 महीने से कम समय तक हिरासत में था। कोई जुर्माना दर्ज नहीं किया गया, इसलिए मुकदमा उचित समय में समाप्त होने की संभावना नहीं है। मामले के तथ्यों के आधार पर इस न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत रद्द की। इसलिए भारत संघ बनाम के.ए. नजीब और वी. सेंथिल बालाजी के मामले में निर्धारित कानून से कोई विचलन नहीं किया गया था।”
इसके अलावा, सॉलिसिटर जनरल ने यह कहते हुए रियायत दी कि वी. सेंथिल बालाजी के मामले में पारित निर्णय का पालन किया जा सकता है। न्यायालय ने अपीलकर्ता की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया।
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: उधव सिंह बनाम प्रवर्तन निदेशालय, आपराधिक अपील संख्या 799/2025