सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा और दहेज कानून में सुधार के लिए जनहित याचिका खारिज की

Shahadat

27 Jan 2025 10:41 AM

  • सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा और दहेज कानून में सुधार के लिए जनहित याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका खारिज की, जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई कि पति और उसके परिवार के सदस्यों को घरेलू हिंसा और दहेज कानून के झूठे मामलों में परेशान न किया जाए।

    यह जनहित याचिका अतुल सुभाष नामक व्यक्ति की आत्महत्या के बाद दायर की गई, जिसने कथित तौर पर वैवाहिक मामलों के माध्यम से अपनी पत्नी द्वारा परेशान किए जाने के कारण आत्महत्या कर ली थी। यह याचिका एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई, जिसमें प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य (2010) और अचिन गुप्ता बनाम हरियाणा राज्य (2024) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को लागू करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई।

    व्यक्तिगत रूप से पेश हुए एडवोकेट तिवारी ने दोहराया कि वह दहेज विरोधी कानूनों और घरेलू क्रूरता के फैसलों पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हैं।

    हालांकि, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने इस पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं होने पर उनसे कहा कि या तो वह इसे वापस ले लें या फिर कोर्ट इसे खारिज कर देगा।

    जब तिवारी ने कहा कि उचित मंच पर प्रतिनिधित्व करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए तो जस्टिस शर्मा ने उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी दी।

    उन्होंने कहा:

    "संसद की सर्वोच्चता है। वे ही कानून बनाते हैं। फिर आप अवमानना ​​के लिए दूसरी याचिका लेकर आएंगे कि वे आपके प्रतिनिधित्व पर निर्णय नहीं ले रहे हैं। आपका नाम अखबार और मीडिया में आता रहेगा। हम कानून नहीं बना सकते। कानून बनाना संसद का काम है।"

    जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की,

    "समाज को बदलना होगा। हम कुछ नहीं कर सकते। संसदीय कानून हैं। समाज को बदलना होगा।"

    जस्टिस नागरत्ना ने बताया कि तीसरी प्रार्थना में विरोधाभास है- जो यह है कि जब दहेज कानून में निषिद्ध है तो याचिकाकर्ता यह कैसे मांग कर सकता है कि विवाह के दौरान प्राप्त उपहार और वस्तुओं को दर्ज किया जाए?

    प्रीति गुप्ता में न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग को चिह्नित किया, जिसके तहत पति और उसके रिश्तेदारों को पत्नी के खिलाफ घरेलू क्रूरता का आरोप लगाते हुए अनावश्यक रूप से आपराधिक मामलों में घसीटा जाता है और विधायिका से बदलाव करने का आग्रह किया। अचिन गुप्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संसद से आग्रह किया कि वह नए आपराधिक कोड (भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86) में धारा 498ए आईपीसी के समकक्ष को संशोधित करने पर विचार करे, जिससे इसका दुरुपयोग रोका जा सके। हालांकि, 1 जुलाई, 2024 से लागू होने वाले BNS ने इस प्रावधान को बरकरार रखा है।

    न्यायालय ने प्रीति गुप्ता के मामले में कहा,

    "हम यह देखना चाहेंगे कि कानून द्वारा पूरे प्रावधान (धारा 498ए आईपीसी) पर गंभीरता से पुनर्विचार किया जाना चाहिए। यह भी सर्वविदित है कि घटना के बारे में अतिशयोक्तिपूर्ण संस्करण बड़ी संख्या में शिकायतों में परिलक्षित होते हैं। अति-आशय की प्रवृत्ति भी बहुत बड़ी संख्या में मामलों में परिलक्षित होती है।

    याचिकाकर्ता ने मौजूदा दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों की समीक्षा और सुधार करने तथा उनके दुरुपयोग को रोकने के उपाय सुझाने के लिए रियाटर जजों, प्रख्यात वकीलों और कानूनी न्यायविदों की विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की।

    उन्होंने आगे यह निर्देश देने की मांग की कि विवाह रजिस्ट्रेशन में विवाह के दौरान दिए गए सामान/उपहारों को भी दर्ज किया जाना चाहिए।

    अतुल सुभाष की आत्महत्या का हवाला देते हुए, जिसने ऑनलाइन बहस को तीव्र कर दिया, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,

    "मौजूदा दहेज कानूनों और घरेलू हिंसा अधिनियम में समीक्षा और सुधार करने का समय आ गया, जिससे इसका दुरूपयोग रोका जा सके और निर्दोष पुरुषों को बचाया जा सके और दहेज कानूनों का वास्तविक उद्देश्य विफल न हो।"

    केस टाइटल: विशाल तिवारी बनाम यूनियन भारत सरकार एवं अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 25/2025

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