सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के पूर्व एमएलसी को एससी/एसटी एक्ट मामले में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया

Avanish Pathak

6 Sep 2022 10:02 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के पूर्व एमएलसी को एससी/एसटी एक्ट मामले में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक विधान परिषद के पूर्व सदस्य श्रीकांत को एक आपराधिक मामले में दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। श्रीकांत के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) और धारा 3(1)(एस) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया ‌था।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है, कहा कि अब हिरासत में जांच की आवश्यकता नहीं होगी। पीठ ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई में निर्धारित मापदंडों पर विचार किया।

    पीठ ने निचली अदालत से नियमित जमानत की अर्जी पर उसी दिन विचार करने के लिए कहा, जिस दिन यह दायर की जाती है।

    पीठ ने कहा,

    "...हम आदेश देते हैं और निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता सक्षम अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करेगाऔर इस आदेश की तारीख से 2 सप्ताह की अवधि के भीतर नियमित जमानत के लिए आवेदन करेगा। नियमित जमानत देने के आवेदन पर उसी दिन विचार किया जाएगा, जिस दिन यह दायर किया गया है।"

    सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने पीठ को बताया कि मामले में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया है। शिकायत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि शिकायत केवल यह खुलासा करती है कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को डांटा था और टिप्पणी की थी कि वह उन्हें गांव से बाहर निकाल देगा।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि यदि सार्वजनिक दृष्टि से जाति के संबंध में कोई आक्षेप है, तभी एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) और धारा 3(1)(एस) लागू होगी। केवल एक अपमान के लिए उक्त प्रावधानों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

    उन्होंने आग्रह किया कि आरोपी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है और आरोप पत्र उसी का एक प्रमाण है।

    कामत ने यह भी स्पष्ट किया कि पूरी कार्यवाही के दरमियान अभियुक्त ने शिकायतकर्ता की जाति के खिलाफ कथित अपशब्द कहे जाने से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि इन आरोपों को चार्जशीट में दबा दिया गया है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के पुरुष से शादी करने के कारण एक महिला के ‌खिलाफ दुर्व्यवहार का निर्देश दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस पर विचार करते हुए यह कहना सही नहीं होगा कि ऐसा कोई इरादा नहीं था। उन्होंने सुझाव दिया कि कामत के मुवक्किल आत्मसमर्पण कर सकते हैं और नियमित जमानत की मांग कर सकते हैं।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कामत को याद दिलाया कि वह एक अंग्रेजी अनुवाद का जिक्र कर रहे थे, जिसमें एमएलसी द्वारा कन्नड़ में की गई टिप्पणी का सार नहीं था -

    "यह कन्नड़ में कही गई बातों का एक परिष्कृत अंग्रेजी अनुवाद है"

    शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि हालांकि हिरासत में जांच खत्म हो चुकी है, एससी/एसटी एक्ट की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक के अभी भी लागू होगी।

    कामत ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें आरोप पत्र पहले ही दायर किए जाने पर जमानत के लिए अपनाए जाने वाले कदमों के संबंध में दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं। उसी पर भरोसा करते हुए उन्होंने तर्क दिया कि यदि अभियुक्तों ने जांच के दौरान सहयोग किया तो उन्हें शारीरिक रूप से हिरासत में लिए ‌बिना जमानत अर्जी पर फैसला किया जा सकता है।

    उन्होंने बेंच से अनुरोध किया कि वह ट्रायल कोर्ट को उनके मुवक्किल को शारीरिक हिरासत में लिए बिना उनकी जमानत याचिका पर फैसला करने के का निर्देश दें क्योंकि चार्जशीट पहले ही जमा की जा चुकी है।

    श्रीकांत के खिलाफ 12 जुलाई 2019 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) और धारा 3(1)(एस) और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 506 और धारा 504 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

    पूर्व एमएलसी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक पुलिस स्टेशन में एक विशेष समुदाय के खिलाफ अपमानजनक शब्द कहे थे।

    उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष शिकायत को रद्द करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की। इसे 28 अक्टूबर 2021 के एक आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया था। इसके बाद चार फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी गई।

    श्रीकांत ने जिसके बाद अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी थी।

    हाईकोर्ट ने 15 मार्च 2022 के आदेश में उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। 21 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था और गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था। आखिरकार, जांच पूरी हुई और तीन मई 2022 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।

    केस टाइटलः श्रीकांत बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य| SLP(Crl) No. 3290/2022]

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