FIR मामले में HDFC Bank बैंक के CEO को राहत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने वापस हाईकोर्ट जाने को कहा
Shahadat
4 July 2025 12:43 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (4 जुलाई) को HDFC Bank के CEO शशिधर जगदीशन द्वारा लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट के इशारे पर दर्ज FIR रद्द करने के लिए दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि जब जगदीशन की याचिका 14 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध है तो सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप करना अनुचित है।
HDFC Bank के CEO ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन जजों ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिससे सुनवाई में देरी हुई।
लीलावती ट्रस्ट के सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ता के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि मामला याचिकाकर्ता की सहमति से 14 जुलाई को हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध है।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कम से कम 14 जुलाई तक अंतरिम संरक्षण की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि FIR बेबुनियाद है और बैंक को ट्रस्टियों के बीच निजी विवाद में घसीटा गया।
रोहतगी ने तर्क दिया,
"उनका एकमात्र उद्देश्य एमडी को पुलिस स्टेशन बुलाना और बैंक के लिए मुसीबत खड़ी करना है। पिछले तीन सप्ताह से मुझे हाईकोर्ट में सुनवाई का मौका नहीं मिला। बैंक की प्रतिष्ठा हर दिन खराब हो रही है। लीलावती ट्रस्टियों के बीच आपसी विवाद से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैं 14 जुलाई तक अंतरिम संरक्षण चाहता हूं। मुझे यह भी नहीं पता कि 14 तारीख को भी इस पर सुनवाई होगी या नहीं।"
हालांकि खंडपीठ ने अनिच्छा व्यक्त करते हुए पूछा कि जब मामला 14 जुलाई को हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे हस्तक्षेप कर सकता है। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के समक्ष सभी मुद्दे उठाने के लिए स्वतंत्र है।
हालांकि, जस्टिस नरसिम्हा ने याचिकाकर्ता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की, जिनकी याचिका की सुनवाई जजों के अलग होने के कारण विलंबित हो गई। साथ ही जज ने दृढ़ता से कहा कि इस समय सुप्रीम कोर्ट मामले में गुण-दोष के आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,
"हमें इस बात से सहानुभूति है कि 12 जून को ही निरस्तीकरण की कार्यवाही शुरू कर दी गई और तब से एक के बाद एक पीठ ने खुद को इससे अलग कर लिया। हम इसे समझते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन अब जब यह सूचीबद्ध हो गया।"
हालांकि, रोहतगी ने आशंका व्यक्त की कि इस बात का कोई आश्वासन नहीं है कि मामले की सुनवाई 14 जुलाई को ही होगी। इसके बाद खंडपीठ ने अपने आदेश में यह टिप्पणी भी जोड़ी कि "हमें उम्मीद है और भरोसा है कि मामले की सुनवाई 14 जुलाई को होगी।"
आदेश में पीठ ने इस प्रकार टिप्पणी की:
"हमें सूचित किया गया कि मामला 14 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। इसलिए हमारे लिए इस विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने का कोई अवसर नहीं है। हमने पाया कि मामले को शुरू में 18.06.25, 20.06.25, 25.06.25 और 26.06.25 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया। हमें उम्मीद है और भरोसा है कि मामले को निर्धारित तिथि यानी 14 जुलाई 2025 को सुना जाएगा।"
जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि बेंच की टिप्पणी याचिकाकर्ता की हाईकोर्ट में सुनवाई में और देरी की आशंका को दूर करेगी।
लीलावती ट्रस्ट ने अपनी FIR में जगदीशन पर पूर्व ट्रस्टी चेतन मेहता से 2.05 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया, ताकि उन्हें वित्तीय सलाह दी जा सके और ट्रस्ट के शासन पर नियंत्रण बनाए रखने में उनकी मदद की जा सके। इसमें आगे आरोप लगाया गया कि जगदीशन ने HDFC Bank के प्रमुख के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करके उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया।
शुरुआत में जगदीशन की याचिका 18 जून को जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस राजेश पाटिल की हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की गई थी। हालांकि, जस्टिस पाटिल ने कुछ व्यक्तिगत कठिनाई का हवाला देते हुए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद सीनियर वकील अमित देसाई के नेतृत्व में जगदीशन की कानूनी टीम ने जस्टिस सारंग कोतवाल और जस्टिस श्याम चांडक की खंडपीठ के समक्ष उनकी याचिका का उल्लेख किया। हालांकि, जस्टिस कोतवाल ने खुद को अलग कर लिया। बाद में मामले को जस्टिस महेश सोनक और जस्टिस न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। जस्टिस जैन यह कहते हुए उनके पास HDFC Bank में शेयर हैं, सुनवाई पर आपत्ति जताए जाने के बाद खुद को अलग कर लिया।
हाईकोर्ट के पहले के प्रशासनिक आदेश के अनुसार, लीलावती ट्रस्ट से संबंधित मामलों को बॉम्बे हाईकोर्ट के छह अन्य जजों के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया जाना है।
गुरुवार को जब मामले को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सुंदरेश की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए रखा गया तो दलील दी गई कि लीलावती अस्पताल के ट्रस्टियों ने बैंक और उसके एमडी के खिलाफ एक झूठी FIR दर्ज कराई, जो ट्रस्टियों के दूसरे समूह के खिलाफ मुकदमा कर रहे हैं। बैंक को उनसे पैसे वसूलने हैं। उन्हें परेशान करने के लिए उन्होंने एमडी के खिलाफ मजिस्ट्रेट के जरिए FIR दर्ज कराई है। बैंक और उसके अधिकारी बॉम्बे हाई कोर्ट गए, लेकिन हाईकोर्ट की तीन बेंचों ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
कोर्ट के समक्ष अगली संभावित तारीख 14 जुलाई है और बैंक को हर दिन नुकसान उठाना पड़ रहा है।
Case Title: SASHIDHAR JAGDISHAN Versus STATE OF MAHARASHTRA AND ORS., SLP(Crl) No. 9602/2025