सीआरपीसी की धारा 482 : एफआईआर में लगे आरोपों पर कुछ तथ्यात्मक सहायक सामग्री होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही रद्द की
LiveLaw News Network
12 Feb 2022 12:23 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि एफआईआर (प्राथमिकी) में जो आरोप लगाए गए हैं, उनके के लिए कम से कम कुछ तथ्यात्मक सहायक सामग्री होनी चाहिए।
एफआईआर में दर्ज शिकायतकर्ता का मामला इस प्रकार था: आरोपी ने 11 दिसंबर, 2016 को शिकायतकर्ता के भाई के साथ शादी की और उसके बाद वह अपने भाई को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करने लगी और यही कारण था कि उसके भाई की 8 दिसंबर, 2017 को नौकरी के दौरान अचानक मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु के तुरंत बाद, उसके व्यवहार में अचानक बदलाव आया और उसने उनको और अन्य ससुराल वालों को घर से निकालने की कोशिश की। हर दिन, वह परिवार के सदस्यों को धमकाती और गाली देती थी और जालसाजी करके, उसने अनुकंपा के आधार पर नौकरी प्राप्त की और सभी अंतिम लाभ ले लिए और स्वर्गीय मोहम्मद शमीम खान (शिकायतकर्ता का भाई) के वास्तविक आश्रितों को अंतिम लाभों से वंचित कर दिया और यह निकाह (विवाह) उसके द्वारा अपने पिछले पति से तलाक के बिना किया गया था।
इस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 494, 495, 416, 420, 504 और 506 के तहत आरोप तय किए गए। आरोपी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए धारा 482 सीआरपीसी के तहत एक याचिका दायर की जिसे खारिज कर दिया गया।
इस आदेश को चुनौती देते हुए आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि शिकायत में जो आरोप लगाया गया है उसका समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है जिसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई है और भले ही प्राथमिकी में जो कहा गया है, उसे उसके चेहरे के मूल्य पर ले भी लिया जाए तो प्रथम दृष्ट्या, चार्जशीट में उसके खिलाफ लगाए गए अपराधों में से कोई भी अपराध नहीं बनता है।
राज्य और शिकायतकर्ता ने संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, जांच की गई और उसके बाद ही चार्जशीट दायर की गई और इसलिए कम से कम यह माना जा सकता है कि उसके खिलाफ प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है।
अदालत ने कहा कि हरियाणा राज्य और अन्य बनाम भजन लाल और अन्य के फैसले में असंख्य प्रकार के मामलों की एक विस्तृत सूची दी गई है जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482/संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।
अदालत ने नोट किया,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बहुत कम और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए और वह भी दुर्लभतम से दुर्लभ मामलों में और विश्वसनीयता या वास्तविकता के रूप या अन्यथा प्राथमिकी या शिकायत में लगाए गए आरोपों के बारे ममें जांच शुरू करना न्यायालय के लिए उचित नहीं था और यह कि निहित शक्तियां न्यायालय को अपनी मर्जी और कल्पना के अनुसार कार्य करने के लिए कोई मनमाना अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं करती हैं।"
पीठ ने कहा कि, इस मामले में, यदि आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया के स्पष्ट दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं होगा और आरोपी के लिए एक मानसिक आघात होगा। अदालत ने कहा कि धारा 482 सीआरपीसी के तहत उसके कहने पर दायर याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने इस पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है।
अपील की अनुमति देते हुए अदालत ने कहा:
हालांकि यह सच है कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में किसी भी जांच को शुरू करने के लिए अदालत के लिए खुला नहीं था, लेकिन कम से कम प्राथमिकी में जो आरोप लगाया गया है, उसके लिए कुछ तथ्यात्मक सहायक सामग्री होनी चाहिए जो वर्तमान मामले में पूरी तरह से गायब है और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजी साक्ष्य स्पष्ट रूप से समर्थन करते हैं कि उसका निकाहनामा सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत पंजीकृत और जारी किया गया था और यहां तक कि उसके खिलाफ दायर चार्जशीट भी प्रथम दृष्ट्या खुलासा नहीं करती है कि विवाह प्रमाण पत्र कैसे जाली था।
केस : शफिया खान @ शकुंतला प्रजापति बनाम यूपी
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ ( SC) 153
केस नं.|तारीख: 2022 की सीआरए 200 | 10 फरवरी 2022
पीठ: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओक
केस लॉ: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 - धारा 482 - प्राथमिकी को रद्द करना - हालांकि यह सच है कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में किसी भी जांच को शुरू करने के लिए न्यायालय के लिए खुला नहीं था, लेकिन कम से कम प्राथमिकी में जो आरोप लगाया गया है उसके लिए कुछ तथ्यात्मक सहायक सामग्री होनी चाहिए । (पैरा 19)
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 - धारा 482 - प्राथमिकी को रद्द करना - आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बहुत कम और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए और वह भी दुर्लभतम से दुर्लभ मामलों में और विश्वसनीयता या वास्तविकता के रूप या अन्यथा प्राथमिकी या शिकायत में लगाए गए आरोपों के बारे ममें जांच शुरू करना न्यायालय के लिए उचित नहीं था और यह कि निहित शक्तियां न्यायालय को अपनी मर्जी और कल्पना के अनुसार कार्य करने के लिए कोई मनमाना अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं करती हैं। (पैरा 17)
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें