सनातन धर्म के अनुयायियों ने मंदिर स्थित दुकानों के पट्टे की नीलामी में गैर-हिंदुओं को भाग लेने की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की
LiveLaw News Network
8 Jan 2022 3:33 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी, 2020 और 17 दिसंबर, 2021 के अंतरिम आदेशों में कुरनूल स्थित श्री ब्रमारम्ब मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में बनीं दुकानों के पट्टों की नीलामी की प्रक्रिया में भाग लेने अनुमति सभी धर्मों के लोगों को दी थी। खुद को सनातन धर्म का अनुयायी बता रहे चार आवेदकों ने सुप्रीम कोर्ट से उक्त अंतरिम आदेश पर रोक लगाने की मांग की है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में दायर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए 17 दिसंबर, 2021 को अंतरिम आदेश पारित किया , जिसमें सुप्रीम कोर्ट जनवरी, 2020 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के सितंबर, 2019 के फैसले पर रोक लगा दी थी। (आक्षेपित निर्णय)
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी, 2020 के आदेश में एसएलपी पर नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के आक्षेपित फैसले पर रोक लगा दी थी।
आक्षेपित फैसले में हाईकोर्ट ने 2015 के सरकारी आदेश (मैन्यूस्क्रिप्ट) को अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघनकारी घोषित करने के लिए दायर रिट याचिका खारिज कर दी थी। आंध्र प्रदेश राज्य ने उक्त आदेश के जरिए निविदा-सह-नीलामी में गैर-हिंदुओं को शामिल होने से या अन्यथा मंदिर से संबंधित अचल संपत्ति में व्यापार के लिए पट्टा या लाइसेंस प्राप्त करने से रोक दिया था।
आक्षेपित अधिसूचना में एपी चैरिटेबल और हिंदू धार्मिक संस्थानों और बंदोबस्ती अचल संपत्तियों और अन्य अधिकार (कृषि भूमि के अलावा) पट्टे और लाइसेंस नियम, 2003 के नियम 4 (2) और नियम 18 को शामिल किया गया था, जिसमें गैर-हिंदुओं को दुकानों की निविदा-सह-नीलामी की प्रक्रिया में भाग लेने पर रोक लगाई गई थी या प्रतिवादी संख्या 3 - मंदिर से संबंधित अचल संपत्ति पर व्यापार करने के लिए पट्टा या लाइसेंस प्राप्त करने पर रोक लगाई गई थी।
अर्जी में तर्क दिया गया है कि शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए अंतरिम आदेश का प्रभाव यह होगा कि आवेदक और अन्य भक्तों को गैर-हिंदू किरायेदारों/दुकानदारों के पूर्वाग्रहपूर्ण रवैये का सामना करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
सनातन हिंदू धर्म के अनुयायी जो भगवान शिव और शक्ति के भक्त हैं, उन्हें उनकी मान्यता और रीति के अनुसार भोग, प्रसाद आदि चढ़ाने के अवसरों से वंचित किया जाएगा और उनका पूजा करने का अधिकार गंभीर रूप से प्रभावित होगा।
यह भी तर्क दिया गया है कि भक्तों को अपनी पसंद की दुकानों/व्यक्तियों से पूजा की वस्तु खरीदने/एकत्र करने का अधिकार है, ऐसे दुकानों/व्यक्तियों से जो भगवान मल्लिकार्जुन की शक्ति में विश्वास करते हैं और पारंपरिक पूजा की आवश्यकता के अनुसार स्वच्छता और शुद्धता से ऐसी समाग्रियों को तैयार करने की भावना रखते हैं।
एसएलपी में अभियोग की मांग करते हुए, भक्तों ने तर्क दिया है कि गैर-हिंदू, हिंदू उपासकों की भावनाओं का सम्मान नहीं करते हैं और उन्हें गोमांस सहित मांस खाने में कोई संकोच नहीं है जो हिंदू विश्वास और धार्मिक प्रथाओं से अलग है।
संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 पर भरोसा करते हुए आवेदन में कहा गया है कि प्रावधानों के अनुसार यह स्पष्ट है कि पूजा करने वालों को मंदिर में धार्मिक अभ्यास से संबंधित मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है।आवेदन (ओं) को एडवोकेट हरि शंकर जैन द्वारा तैयार और सैटल किया गया है। एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने इसे दायर किया है ।
केस शीर्षक : टीएमडी रफी और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य | SLP 1989 of 2020