आईपीसी की धारा 498ए- पति को पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करना चाहिए, इस तरह की जनमात शर्त को लागू नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

8 Dec 2023 5:05 AM GMT

  • आईपीसी की धारा 498ए- पति को पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करना चाहिए, इस तरह की जनमात शर्त को लागू नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारती दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत आरोपी पति को अग्रिम जमानत देते समय यह शर्त नहीं लगाई जा सकती कि पति अपनी पत्नी को अपने घर ले जाएगा और उसका भरण-पोषण और सम्मान करेगा।

    जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।

    वर्तमान मामले में आरोपी पति (अपीलकर्ता) ने झारखंड हाईकोर्ट, रांची खंडपीठ के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। हालांकि हाई कोर्ट ने पति को जमानत तो दे दी, लेकिन एक अजीबोगरीब शर्त लगा दी। उसी के अनुसार, पति को अपनी पत्नी को अपने घर ले जाना होगा और उसे सम्मान के साथ रखना होगा।

    सुविधा के लिए इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है:

    “तदनुसार, याचिकाकर्ता को आज से छह सप्ताह के भीतर अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है और उसकी गिरफ्तारी या आत्मसमर्पण की स्थिति में ट्रायल कोर्ट को संतुष्ट करने पर उसे जमानत मिल जाएगी कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 2 ने रांची के बांद्रा इलाके में उनका घर ले लिया है और उन्हें अपनी वैध पत्नी के रूप में पूरी गरिमा और सम्मान के साथ रखा और बनाए रखा।”

    इसके अनुसरण में पति ने उपरोक्त आदेश में संशोधन की प्रार्थना करते हुए फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दायर याचिका (आदेश में संशोधन के लिए) में पति ने तर्क दिया कि उसने एक घर किराए पर लिया और वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए तैयार है। इसके विपरीत, पत्नी ने तर्क दिया कि वह अपना वैवाहिक जीवन फिर से शुरू करने को तैयार है, बशर्ते उसका पति उसके साथ अपने घर में रहे। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी कि अपीलकर्ता अपनी पत्नी के साथ अपने घर में फिर से जीवन शुरू नहीं करने पर दृढ़ है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "अपीलकर्ता के घर में, जहां प्रतिवादी नंबर 2 रह रहा है, प्रतिवादी नंबर 2 के साथ वैवाहिक जीवन फिर से शुरू नहीं करने के अपीलकर्ता के अड़ियल रवैये को देखते हुए उसकी याचिका पर विचार नहीं किया जा सका।"

    इस पृष्ठभूमि में, मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अग्रिम जमानत देते समय ऐसी शर्त नहीं लगाई जा सकती। साथ ही यह शर्त अपीलकर्ता की याचिका खारिज करने का कारण नहीं होनी चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "हमारी राय में अग्रिम जमानत देते समय हाईकोर्ट द्वारा न तो ऐसी शर्त लगाई जानी चाहिए और न ही यह अपीलकर्ता द्वारा दायर याचिका को अस्वीकार करने का आधार हो सकता है।"

    इसे देखते हुए कोर्ट ने विवादित आदेश रद्द करते हुए आरोपी को जमानत दे दी।

    केस टाइटल: कुणाल चौधरी बनाम झारखंड राज्य, डायरी नंबर- 14262 - 2023

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story