S. 138 NI Act | अवैध ऋण के लिए चेक अनादर का मामला दायर किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के विचार पर संदेह व्यक्त किया
Shahadat
23 Aug 2025 10:51 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया यह माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत चेक अनादर की कार्यवाही अवैध या अप्रवर्तनीय ऋण से उत्पन्न देनदारियों के लिए शुरू नहीं की जा सकती।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट (मदुरै पीठ) के उस आदेश के विरुद्ध अपील पर सुनवाई की, जिसमें चेक अनादर के मामले में प्रतिवादी-आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया कि चेक अवैध ऋण के भुगतान के लिए जारी किया गया।
इस निर्णय को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता-शिकायतकर्ता ने सी.वी. राजन बनाम इल्लिकल रामेसन (2015) में यह तर्क दिया गया कि यदि ऋण किसी अवैध वादे या उद्देश्य से उत्पन्न हुआ हो, तब भी यह NI Act की धारा 138 के दायरे में आएगा।
सी.वी. राजन के मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अभियुक्त ने उसे स्कूल में क्लर्क की नौकरी दिलाने का वादा करके ₹2.30 लाख लिए। जब वादा पूरा नहीं हुआ तो अभियुक्त ने भुगतान के लिए चेक जारी किया। अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक बाउंस हो गया और निचली अदालत ने अभियुक्त को दोषी ठहराया।
केरल हाईकोर्ट ने अभियुक्त की दोषसिद्धि बरकरार रखी और अभियुक्त के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चेक "कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण" के लिए जारी नहीं किया गया, क्योंकि धन एक अवैध उद्देश्य, अर्थात् नौकरी प्राप्त करने के लिए प्राप्त किया गया।
हाईकोर्ट ने कहा कि धन की वापसी, भले ही वह झूठे या अवैध वादे से प्राप्त की गई हो, कानून द्वारा निषिद्ध नहीं है। एक बार ऐसी वापसी के लिए चेक जारी होने के बाद अनादरित होने पर NI Act की धारा 138 के तहत दायित्व बनता है।
याचिकाकर्ता के वकील की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट नोटिस जारी करने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि प्रथम दृष्टया यह टिप्पणी की गई कि उक्त ऋण NI Act की धारा 138 के तहत मुकदमा चलाने के लिए "कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण" के रूप में योग्य नहीं हो सकता। हालांकि, न्यायालय ने सीवी राजन पर केरल हाईकोर्ट के निर्णय की सत्यता का पता लगाने के सीमित उद्देश्य से नोटिस जारी किया।
अदालत ने कहा,
"प्रथम दृष्टया, हमारा मानना है कि NI Act की धारा-138 में प्रयुक्त अभिव्यक्ति की पृष्ठभूमि में उक्त सिद्धांत लागू नहीं होगा। इसे "कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण" नहीं माना जाएगा। केरल हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं हो सकता है। इसलिए इस सीमित उद्देश्य के लिए हम प्रतिवादी को छह सप्ताह में जवाब देने हेतु नोटिस जारी करने का आदेश देते हैं।"
Cause Title: K.K.D. PANDIAN VERSUS S. TAMILSELVI

