सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का हलफनामा, अवैध प्रवासियों की पहचान करना सरकार की जिम्मेदारी, एनआरसी एक जरूरी कार्रवाई
LiveLaw News Network
18 March 2020 1:07 PM IST
सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में केंद्र सरकार ने जवाबी हलफनामा दाखिल किया है, और कहा है कि नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना आवश्यक कार्य है और अवैध प्रवासियों की पहचान करना/ पता लगाना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है।
हलफनामे में कहा गया है कि शासन के सिद्धांत के रूप में देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान, सरकार की एक संप्रभु, वैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी है।
हलफनामे में कहा गया है-
मैं बताता हूं कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स के संबंध में कानूनी प्रावधान यानी 1955 एक्ट की धारा 14 ए के दिसंबर, 2004 से 1955 एक्ट का हिस्सा है। यह दलील दी गई है कि उक्त प्रावधानों में केवल राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया और प्राधिकरण से संबंधित अधिकार शामिल हैं। गैर-नागरिकों और नागरिकों की पहचान के लिए नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना किसी भी संप्रभु देश के लिए एक आवश्यक कार्य है।
मौजूदा वैधानिक शासन के अनुसार, भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों के तीन वर्ग हैं - नागरिक, अवैध प्रवासी और वैध वीजा पर रह रहे विदेशी। इसलिए, फॉरेनर्स एक्ट, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) कानून, 1920 और 1955 एक्ट की संयुक्त पठन से, केंद्र सरकार को जिम्मेदारी दी गई है, कि वह अवैध प्रवासियों की पहचान करे/ पता लगा सके और उसके बाद कानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर सके।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में नागरिकता कार्ड जारी करने की प्रणाली
सरकार ने यह भी कहा कि धारा 14 ए और उसके नियम भारतीय नागरिकों के पंजीकरण की प्रक्रिया और उन्हें राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया को काफी हद तक नियंत्रित करते हैं।
उपलब्ध सार्वजनिक जानकारियों के अनुसार, कई देशों में नागरिक रजिस्टर बनाए रखने की प्रणाली है। इन देशों में नागरिकों की पहचान के आधार पर राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी किए जाते हैं। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी इस तरह के कार्ड जारी करने की व्यवस्था है।
विदेशियों को बाहर निकालने के अप्रतिबंधित अधिकार
केंद्र सरकार ने कहा कि फॉरेनर्स एक्ट,1946 विदेशियों को भारत से बाहर निकालने की शक्ति प्रदान करती है। यह केंद्र सरकार को पूर्ण और निरंकुश विवेक प्रदान करता है और जैसा कि संविधान में इस विवेक पर अंकुश का प्रावधान नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार के पास विदेशियों को निष्कासित करने का अप्रतिबंधित अधिकार है।
हलफनामे में हंस मुलर ऑफ नुरेनबर्ग्स बनाम सुपरिंटेंडेंट, प्रेसीडेंसी जेल, कलकत्ता व अन्य, AIR 1955 SC 367 के मामले का उल्लेख भी है, जो कानून की योजना, दायरे और परिक्षेत्र की जांच करते समय उसमें दिए गए वर्गीकरणों को सही ठहराता है, और केंद्र सरकार को दी गई शक्तियों का का विस्तार करता है।
हलफनामे में कहा गया है-
फॉरेनर्स एक्ट, 1946 और 1955 एक्ट के स्पष्ट आदेश के आलोक में, कोई भी अवैध प्रवासी अनुच्छेद 32 के तहत भारत में बसने और निवास करने का अधिकार नहीं मांग सकता है और आगे भी नागरिकता के लिए कोई दावा कर सकता है। केंद्र सरकार के पास कानून की नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए अवैध प्रवासियों के निर्वासन का विवेकाधिकार है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के तहत केंद्र सरकार को 1958 से अवैध विदेशी को हिरासत में लेने और निर्वासित करने की शक्तियां सौंपी गई हैं। अनुच्छेद 21 का विस्तार भारत में बहुत व्यापक है और यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि यह पूर्णतया अवैध प्रवासियों के लिए उपलब्ध होगा।
फॉरेनर्स एक्ट के तहत माननीय कोर्ट ने लगातार प्रक्रिया आयोजित की है, जो कि उचित है। आगे कहा गया है कि विदेशी, विशेष रूप से अवैध अप्रवासी, उक्त अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने के हकदार नहीं होंगे। इसलिए, शासन के सिद्धांत के रूप में देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान, सरकार का एक संप्रभु, वैधानिक और नैतिक दायित्व है और अनुच्छेद 21 के अनुरूप है।
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