'पीआईएल को सिर्फ इसलिए फेंका नहीं जा सकता क्योंकि याचिकाकर्ता एक प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल से संबंधित है ' : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

30 March 2021 7:11 AM GMT

  • पीआईएल को सिर्फ इसलिए फेंका नहीं जा सकता क्योंकि याचिकाकर्ता एक प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल से संबंधित है  : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक जनहित याचिका केवल इसलिए नहीं फेंकी जा सकती क्योंकि याचिकाकर्ता एक प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल से संबंधित है। न्यायालय ने कहा है कि राजनीतिक संबद्धता वाले व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की तरह ही जनहित याचिका दायर करने के हकदार हैं।

    न्यायालय ने अपने आदेश में नंदीग्राम हिंसा मामले में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट एसके सुपियान के खिलाफ एफआईआर को पुनर्जीवित करने के मामले में अंतरिम राहत देने के आदेश दिए हैं।

    यह देखते हुए कि न्यायालय को यह जांचने की आवश्यकता है कि क्या मुकदमेबाजी वास्तव में जनहित में है या सार्वजनिक हित की आड़ में कुछ अन्य हित को आगे बढ़ाने के लिए है, यह कहा गया है।

    न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने उल्लेख किया कि यह सही है कि न्यायालय को यह जांचने की आवश्यकता है कि क्या मुकदमेबाजी वास्तव में सार्वजनिक हित में है या सार्वजनिक हित की आड़ में कुछ अन्य हित को आगे बढ़ाने के लिए है।

    हालांकि, यह सवाल कि मुकदमेबाजी सद्भावना का मामला है या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है जिसकी शिकायत की प्रकृति के आधार पर न्यायालय को केस से केस के बारे जांच करनी होती है।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह और पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश होने वाले वरिष्ठ वकील एएम सिंघवी की प्रस्तुतियों के जवाब में ये टिप्पणियां आई थीं जिसमें कहा गया था कि कि जनहित याचिका किसी राजनीतिक दल से संबंधित व्यक्तियों द्वारा शुरू की गई है और इसलिए इस पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।

    लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक के संबंध में याचिकाकर्ता की दलीलों के संबंध में कि जब किसी व्यक्ति पर अदालत की सहमति से अभियोजन पक्ष से मुकदमा वापस लिया जाता है, तो न्यायालय ने कहा कि उसे इस स्तर पर उस प्रश्न पर जाने की आवश्यकता नहीं है।

    "इस स्तर पर हमें इस सवाल पर जाने की जरूरत नहीं है कि क्या संबंधित सरकारी वकील / सहायक अभियोजक ने अपने विवेक को आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों पर लागू किया है या नहीं और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों ने अभियुक्त के आरोपमुक्त किए जाने की आवश्यकता जताई है या नहीं, " कोर्ट ने अवलोकन किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के चुनाव एजेंट एसके सुपियान को अंतरिम राहत दी है, जबकि जनहित याचिका के जवाब में 5 मार्च 2021 के हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक का आदेश दिया है। जिस एफआईआर में नंदीग्राम हिंसा के संबंध में एसके सुपियान का नाम लिया गया था, उसे पश्चिम बंगाल सरकार ने 2020 में वापस ले लिया था।

    कोर्ट ने माना कि रिट याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित हैं और उन्होंने उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच से दलीलों को सुनवाई करने और अंत में एक या दो सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा है। इसलिए यह संबंधित पक्षों के लिए खुला रहेगा कि वे उच्च न्यायालय के समक्ष सभी दलीलों को व्यक्त करें।

    न्यायालय ने पाया कि लागू आदेश को बिना याचिकाकर्ता को सुने बिना ही पारित कर दिया गया था, 5 मार्च 2022 के आदेश पर याचिकाकर्ता के संबंध में अंतरिम रोक को पारित करने के लिए उचित समझा गया, जो अब से 2 सप्ताह की अवधि के लिए या जब तक उच्च न्यायालय मामले की सुनवाई नहीं करता, जो भी पहले हो।

    एसके सुपियान द्वारा वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा 05.03.2021 को एक आदेश पारित किए जाने से व्यथित होने पर ये याचिका दाखिल की गई जिसमें उन्हें नोटिस दिए बिना, पक्षकार बनाए बिना , या सुनवाई का अवसर दिए बिना आदेश जारी किया गया, जिसके परिणामस्वरूप आपराधिक मामलों को फिर से शुरू कर दिया गया जिसमें उन्हें फरवरी 2020 में आरोपमुक्त कर दिया गया या बरी कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने कहा है कि उन्हें कुछ आपराधिक मामलों में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत फरवरी 2020 में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपमुक्त कर दिया गया था। ये मामले 2007-2009 के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नंदीग्राम, पश्चिम बंगाल में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लिए किए गए अनुचित भूमि अधिग्रहण उपायों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के संदर्भ में दायर आधारहीन आरोपपत्रों पर आधारित थे।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, उनके खिलाफ मामलों में आरोप लगाया कि उन्होंने गैरकानूनी जमावड़े में हिस्सा लिया था और हिंसा में भाग लिया था। हालांकि, फरवरी 2020 और जून 2020 में, सरकारी वकील ने अभियोजन की वापसी के लिए इन मामलों में आवेदन दायर किए थे। लेकिन दो जनहित याचिकाओं, दीपक मिश्रा बनाम पश्चिम बंगाल और अन्य, नीलांजन अधिकारी बनाम पश्चिम बंगाल और अन्य में उच्च न्यायालय ने आरोपमुक्त करने या बरी करने के फैसलों को पलट दिया।

    सुपियान ने अपनी दलीलों में आरोप लगाया कि उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया गया है, क्योंकि आदेश जारी करने से पहले उनको पक्षकार नहीं बनाया गया था और उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया था।

    उन्हें गिरफ्तारी वारंट जारी करने की प्रक्रिया की जानकारी के मामलों के बारे में पता चला जब अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कोंटाई द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मामलों को बहाल किया गया था।

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