जनहित याचिका का इस्तेमाल प्रतिस्पर्धी अधिकारियों के बीच बदला लेने के तंत्र के रूप में नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
22 Aug 2025 10:18 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जनहित याचिका के तंत्र का इस्तेमाल प्रतिस्पर्धी सरकारी अधिकारियों के बीच बदला लेने के लिए नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच उन अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें झारखंड सरकार द्वारा पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति करते समय प्रकाश सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2006) 8 एससीसी 1 में दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया।
ये अवमानना याचिकाएं झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी और अखिल भारतीय आदिवासी विकास समिति झारखंड द्वारा दायर की गईं। उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड के पुलिस महानिदेशक के रूप में अनुराग गुप्ता की नियुक्ति प्रकाश सिंह के निर्देशों का उल्लंघन है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अजय कुमार सिंह को झारखंड के पुलिस महानिदेशक के पद से अनाधिकृत रूप से हटा दिया गया।
अवमानना याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करते हुए न्यायालय ने कहा:
"वर्तमान याचिका पुलिस विभाग के दो अधिकारियों अजय कुमार सिंह और अनुराग गुप्ता के बीच विवाद के कारण उत्पन्न हुई प्रतीत होती है।"
न्यायालय ने स्पष्ट किया:
"यदि कोई व्यक्ति राज्य द्वारा सेवा से अवैध रूप से हटाए जाने या किसी पद पर उसके वैध दावे को अस्वीकार किए जाने के संबंध में की गई किसी कार्रवाई से व्यथित है तो ऐसा अधिकारी कानून में उपलब्ध उपायों का सहारा ले सकता है।"
बेंच ने आगे कहा कि जनहित याचिका तंत्र केवल उन लोगों के लिए है, जो सामाजिक-आर्थिक रूप से अदालतों का दरवाजा खटखटाने से वंचित हैं।
"जनहित याचिका एक तंत्र है, जिसे इस न्यायालय द्वारा इस प्रकार तैयार किया गया ताकि लोकलुभावन मुद्दे को कम किया जा सके और जनहितैषी व्यक्ति को उन व्यक्तियों की ओर से इस कोर्ट या हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति मिल सके, जो अपने सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण हाईकोर्ट या इस कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए जनहित याचिका के अधिकार क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी अधिकारियों के बीच हिसाब बराबर करने का तंत्र बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
मरांडी की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी,
"राज्य सरकार ने अखिल भारतीय सेवा के एक अधिकारी को सेवा विस्तार दिया, यह घोर अवैधता का मामला है।"
चीफ जस्टिस ने अवमानना याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करते हुए मौखिक रूप से कहा कि पीड़ित अधिकारी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण या हाईकोर्ट जा सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"यह अधिकार क्षेत्र उन लोगों के लिए है, जो सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के कारण ऐसी स्थिति में नहीं हैं.....एक व्यक्ति जो अधिरोहित है, हकदार है, वह केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण या हाईकोर्ट में जाकर इसे चुनौती दे सकता है। हम किसी ऐसे व्यक्ति को क्यों शामिल करें, जो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी है?"
याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया,
"पुलिस अधिकारी अदालत में नहीं आना चाहते।"
इस पर चीफ जस्टिस ने आपत्ति जताते हुए कहा,
"यह गलत है, हमारे पास ऐसे कई मामले हैं जिनमें पुलिस अधिकारी इस अदालत में आए हैं।"
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की नियमित न्यायालय निगरानी की आवश्यकता: प्रकाश सिंह ने व्यक्तिगत रूप से पीठ से आग्रह किया
मूल याचिकाकर्ता प्रकाश सिंह की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि प्रकाश सिंह मामले में दिए गए निर्देशों के अनुसार, पहले की प्रक्रिया यह थी कि UPSC पैनल डीजीपी पद के लिए तीन नाम सुझाएगा और फिर राज्य सरकार उनमें से एक का चयन करेगी।
मूल याचिकाकर्ता द्वारा हाल ही में दायर आवेदन के अनुसार, अब यह मांग की गई कि समिति की संरचना में बदलाव किया जाए और इसमें केवल राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को ही शामिल किया जाए।
चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या इससे हितों का टकराव नहीं होगा यदि कल संबंधित राज्य के हाईकोर्ट में डीजीपी को इस तरह की चुनौती दी जाती है।
तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने अपनी बात रखते हुए कहा,
"माई लॉर्ड्स, समिति में किसी अन्य तटस्थ प्राधिकारी की कमी के कारण ही हम ऐसा कर पाए हैं।"
मिस्टर प्रकाश सिंह न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे। उन्होंने ने दलील दी कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि न्यायालय पहले की तरह इनके क्रियान्वयन की कड़ी निगरानी नहीं कर रहा है।
आगे कहा गया,
"मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट नियमित रूप से निर्देशों का क्रियान्वयन करता था। किसी कारणवश, जिन कारणों की मैं व्याख्या नहीं कर सकता और जो मुझे ज्ञात नहीं हैं, पिछले 6 वर्षों से ऐसा नहीं हो पाया है। मुख्य जनहित याचिका/याचिका ठंडे बस्ते में चली गई है और कोई निगरानी नहीं हो रही है। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आने वाली अधिकांश समस्याएँ निगरानी बंद हो जाने के कारण हैं।
एमिक्स क्यूरी के रूप में उपस्थित सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने पीठ को स्पष्ट किया कि न्यायालय को केवल राज्य सुरक्षा आयोग, पुलिस शिकायत प्राधिकरण आदि की स्थापना जैसे पहलुओं के क्रियान्वयन की निगरानी करने की आवश्यकता है।
उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने एक आवेदन दायर कर सभी हाईकोर्ट को प्रकाश सिंह मामले में दिए गए निर्देशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए समर्पित पीठों का गठन करने का निर्देश देने की मांग की।
अब इस मामले की सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी।
Case Details: PRAKASH SINGH & ORS. v. UNION OF INDIA| Writ Petition(s)(Civil) No(s). 310/1996

