एक बार अदालत जब यह निष्कर्ष निकाल लेती है कि व्यक्ति जमानत का हकदार है तो सीमित अवधि के लिए जमानत देना अवैध: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

2 Dec 2023 2:10 PM GMT

  • एक बार अदालत जब यह निष्कर्ष निकाल लेती है कि व्यक्ति जमानत का हकदार है तो सीमित अवधि के लिए जमानत देना अवैध: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक बार जब अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंच जाती है कि कोई व्यक्ति जमानत का हकदार है, तो केवल सीमित अवधि के लिए जमानत नहीं दी जा सकती है।

    जस्टिस अभय एस ओक और ज‌स्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा,

    "जब कोई अदालत यह निष्कर्ष निकालती है कि आरोपी मुकदमे के लंबित रहने तक जमानत पाने का हकदार है, तो केवल सीमित अवधि के लिए जमानत देना गैरकानूनी है। ऐसे आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा, इससे वादी पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है क्योंकि उसे पहले दी गई जमानत के विस्तार के लिए नई जमानत याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"

    मौजूदा मामले में अपीलकर्ता पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 (बी) (ii) (सी), 25 और 29 के तहत मामला दर्ज किया गया था। उड़ीसा हाईकोर्ट ने नोट किया था कि अपीलकर्ता को लंबे समय से कैद में रखा गया है और ट्रायल समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वह जमानत पर रिहा किये जाने का हकदार है। हालांकि, हाईकोर्ट ने उन्हें केवल 45 दिनों के लिए अंतरिम जमानत दी और आवेदन का निपटारा कर दिया। आदेश के खिलाफ उन्होंने अपील में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि अंतरिम जमानत देने के बाद हाईकोर्ट ने जमानत अर्जी का निपटारा कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, "अगर अंतरिम जमानत देने का आदेश पारित किया जाना था, तो जमानत याचिका को लंबित रखा जाना चाहिए था।"

    शीर्ष अदालत ने उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा यह निष्कर्ष निकालने के बाद अंतरिम जमानत देने की प्रथा पर नाराजगी व्यक्त की कि व्यक्ति जमानत का हकदार है।

    “हम यहां ध्यान दे सकते हैं कि यह पांचवां या छठा आदेश है जो हमें उसी हाईकोर्ट से मिला है, जहां यह निष्कर्ष दर्ज करने के बाद कि एक आरोपी जमानत पाने का हकदार था, हाईकोर्ट ने या तो अंतरिम जमानत देने का विकल्प चुना है या अल्प अवधि के लिए जमानत दी।”

    इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित किया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ता को मामले के अंतिम निपटान तक जमानत पर रखा जाएगा।

    केस टाइटलः मनोरंजन राउत बनाम ओडिशा राज्य, आपराधिक अपील संख्या 3633/2023

    साइटेशनः 2023 लाइव लॉ (एससी) 1028

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