सुप्रीम कोर्ट के आदेश का फायदा उठाकर डिफॉल्ट बेल का दावा नहीं किया जा सकता हैः मद्रास हाईकोर्ट की पुरानी राय के विपरीत सिंगल जज बेंच का नया आदेश

LiveLaw News Network

13 May 2020 8:51 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश का फायदा उठाकर डिफॉल्ट बेल का दावा नहीं किया जा सकता हैः मद्रास हाईकोर्ट की पुरानी राय के विपरीत सिंगल जज बेंच का नया आदेश

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट की एक स‌िंगल जज बेंच ने, ‌डिफॉल्ट जमानत के मुद्दे पर पिछले सप्ताह दिए गए एक फैसले से विपरीत विचार रखते हुए मंगलवार को कहा कि आरोपी सुप्रीम कोर्ट के सीमा अवधि बढ़ाने के आदेश का लाभ उठाते हुए 'डिफॉल्ट जमानत' का दावा नहीं कर सकते।

    जस्टिस जी जयचंद्रन की पीठ में कहा कि, सुप्रीम कोर्ट का 23 मार्च का सीमा अव‌धि विस्तार का आदेश, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत निर्दिष्ट जांच की अवधि पर भी लागू होता है। आदेश में कहा गया है कि जांच एजेंसी की मूवमेंट पर रोक लगी हुई, अभियुक्त ऐसी स्थिति का अनुचित लाभ नहीं उठा सकते हैं।

    बेंच ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करके न्यायसंगत आदेश पारित किया है। जांच एजेंसी की गति‌विधियों में रुकावट के कारण जांच पूरी होने में हुई देर का डिफॉल्ट जमानत की मांग कर रहे आरोपी अनुचित लाभ नहीं उठा सकते हैं।"

    अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया स्वतंत्रता का अधिकार प्रतिबंधों के अधीन है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी अदालतों के लिए बाध्यकारी है। याचिकाकर्ता के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को कानून की उचित प्रक्रिया के जर‌िए ही प्रतिबंधित किया जाता है।"

    कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश धारा 167 (2) के तहत निर्धारित जांच के समय पर 'ग्रहण' लगा देगा,

    "न तो धारा 167 (2) और न ही अनुच्छेद 21 आरोपी को निर्बाध अधिकार प्रदान करती है। सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण परिस्थिति में अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त असाधारण शक्ति का प्रयोग करके सामान्य सीमा कानून और अन्य विशेष कानून के तहत निर्धारित सीमा अवधि का विस्तार किया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सीमा अवधि को निर्धारित करने वाले सभी प्रावधानों पर अगले आदेश तक के लिए ग्रहण लगा दिया है। निस्संदेह, इसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत निर्धारित समय पर भी ग्रहण लगाया है।"

    जस्टिस जयचंद्रन ने कहा कि यह मानना कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की समयावधि पर नहीं लागू होता है, सुप्रीम कोर्ट के उपहास जैसा है।

    जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने विप‌रीत विचार व्यक्त किया था

    8 मई को दिए एक आदेश में जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने डिफॉल्ट जमानत के मसले पर अलहदा विचार दिया था। उन्होंने 23 मार्च के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह आदेश सीमा अधिनियम, 1963 के तहत केवल मामले दर्ज करने की सीमा अवधि पर लागू होता है।

    ज‌स्ट‌िस जीआर स्वामीनाथन ने कहा था कि धारा 167 (2) का प्रयोग अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर सीमा अवधि लगाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि निर्धारित अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर पाने का एकमात्र नतीजा अभियुक्त को डिफॉल्ट जमानत प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करना होता है। कोर्ट ने 'सेत्तु बनाम राज्य' के मामले में कहा था कि जांच एजेंसी धारा 167 (2) के तहत निर्धारित अवधि के बाद भी अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर सकती है।

    इस राय से अलग राय रखते हुए ज‌स्टिस जयचंद्रन ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 जांच एजेंसी को निर्धारित समय के भीतर जांच पूरी करने का आदेश देती है। इस रोशनी में यह माना गया कि आदेश जांच पर भी लागू होता है।

    "सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना पूर्ण न्याय करना है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हुए कि सीमा निर्धारण के लिए कई कानून हैं, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीमा के सामान्य कानून या विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा की अवधि को अगले आदेश तक बढ़ाया जाएगा। इसलिए यह उल्लेख करना अनावश्यक है कि धारा 167 के तहत जांच के लिए भी सीमा बढ़ाई गई है।"

    जस्टिस जयचंद्रन ने कहा कि जस्टिस स्वामीनाथन ने सुप्रीम कोर्ट 23 मार्च 2020 के आदेश की गलत व्याख्या की है और यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के ‌‌विपरीत है।

    "विद्वान जज ने सुप्रीम कोर्ट 23 मार्च 2020 के आदेश की गलत व्याख्या की है। 06 मई 2020 का स्पष्टीकरण आदेश पुराने आदेश के दायरे को को किसी प्रकार से सीम‌ित या तरल नहीं करता है। चूंकि आदेश याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा भरोसा किया गया आदेश माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के विपरीत है, इस‌लिए, यह बाध्यकारी नहीं है।"

    उल्‍लेखनीय है कि उत्तराखंड ‌हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का सीमा विस्तार का आदेश डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा। उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आलोक कुमार वर्मा और जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने एक जैसे ही विचार व्यक्त किए थे।

    केस का विवरण

    टाइटल: एस कासी बनाम द स्टेट

    केस नंबर: Crl OP(MD) No. 5296/2020

    कोरम: जस्टिस जी जयचंद्रन

    प्रतिनिधित्व: एडवोकेट एस महेंद्रपति (आरोपी के लिए); एस चंद्रशेखर, अतिरिक्त लोक अभियोजक।

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