अर्नेश कुमार जजमेंट का उल्‍लंघन कर कोई गिरफ्तारी ना हो; HPCs को उन सभी कैदियों को रिहा करना चाहिए, जो पहले रिहा हो चुके हैंः सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

LiveLaw News Network

8 May 2021 10:27 AM GMT

  • अर्नेश कुमार जजमेंट का उल्‍लंघन कर कोई गिरफ्तारी ना हो; HPCs को उन सभी कैदियों को रिहा करना चाहिए, जो पहले रिहा हो चुके हैंः सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

    COVID-19 की दूसरी लहर के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इं‌डिया एन वी रमना, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने स्वतः संज्ञान मामले में निम्न दिशा- निर्देश दिए -

    1. अर्नेश कुमार जजमेंट का उल्लंघन करके कोई गिरफ्तारी ना हो

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि अधिकरण अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में 2014 के फैसले में निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करके गिरफ्तारी ना करें। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन मामलों में गिरफ्तारी अपवाद होनी चाहिए, जिनमें मामलों में सात साल से कम सजा है।

    कोरोनोवायरस के व्यापक प्रसार के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार के फैसले को दोहराने की जरूरत महसूस की, ताकि गिरफ्तारियों को सीमित किया जा सके।

    पीठ ने कहा "... मौलिक अधिकारों का प्रहरी होने के नाते यह कोर्ट, महामारी के दरमियान, अधिकरणों को नियंत्रित और सीमित करेगी कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (सुप्रा) में निर्धारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके अभियुक्तों को गिरफ्तार ना किया जाए।"

    2. पिछले साल गठित उच्चाधिकार प्राप्त समितियां (HPCs) निम्नलिखित दिशानिर्देशों के अनुपालन के साथ कैदियों की यथाश‌‌ीघ्र रिहाई पर विचार करें

    राज्य सरकारों/ केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समितियां पिछले वर्ष अनुपालित दिशानिर्देशों (जैसे NALSA द्वारा निर्धारित SOP) को अपनाकर कैदियों की रिहाई पर विचार करेंगी।

    जिन राज्यों ने पिछले साल उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन नहीं किया है, उन्हें तुरंत ऐसा करने के लिए निर्देशित किया गया है। पुलिस आयुक्त दिल्ली भी उच्चाधिकार समिति, दिल्ली के सदस्य होंगे।

    3. एचपीसी को उन सभी कैदियों की रिहाई पर विचार करना चाहिए, जिन्हें पिछले साल रिहा किया गया था

    उच्चाधिकार प्राप्त समिति को, ताजा रिहाई पर विचार करने के अलावा, उन सभी कैदियों को रिहा करने पर विचार करना चाहिए, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के 23.03.2020 के आदेश के अनुसार, उचित शर्तों को लागू करके, र‌िहा किया गया था।

    न्यायालय ने यह निर्देश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ कॉलिन गोंसाल्विस द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार करते हुए पारित किया। इस संबंध में, न्यायालय ने नोट किया कि पिछले वर्ष एचपीसी द्वारा रिहा किए गए 90% से अधिक कैदी वापस लौट आए हैं।

    4. न्यूनतम 90 दिन की पैरोल

    उन सभी कैदियों को, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों के अनुसार पैरोल दी जा चुकी है, उन्हें फिर से 90 दिनों की अवधि के लिए पैरोल दी जानी चाहिए ताकि महामारी पर काबू पाया जा सके।

    5. एचपीसी के निर्णय और जेल ऑक्यूपेंसी को वेबसाइट पर अपडेट किया जाए

    पीठ ने कहा, "... महामारी के खिलाफ लड़ाई में पारदर्शी प्रशासन से बहुत फायदा होता है। इस संबंध में, हमारा ध्यान दिल्ली के उदाहरण की ओर दिलाया गया था, जिसमें जेल ऑक्यूपेंसी को वेबसाइट पर अपडेट किया जाता है। ऐसे उपायों पर अन्य राज्यों को विचार करना आवश्यक है।"

    अदालत ने आगे यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी किए कि सभी कैदियों को उचित चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाए।

    जेलों पर बोझ बढ़ा

    न्यायालय ने यह देखते हुए कि देश की कई जेलों पर बोझ बहुत ही ज्यादा है, और वे उनमें अधिकतम क्षमता से अधिक कैदी हैं, कई निर्देश पारित किए।

    पीठ ने कहा, "... हम देख सकते हैं कि जेलों में भीड़ कम करने की आवश्यकता दोनों, जेल के कैदियों और काम करने वाले पुलिस कर्मियों के जीवन के अधिकार और स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है..."

    सुनवाई में क्या हुआ

    शुक्रवार को हुई सुनवाई के दरमियान, बेंच ने COVID की स्थिति पर ‌चिंता व्यक्त की।

    बेंच ने कहा "वर्तमान स्थिति बहुत चिंताजनक है, पिछली बार से भी अधिक ... अधिकांश जेलों में भीड़भाड़ है। रिहा किए गए 90% कैदी वापस आ चुके हैं। हम कॉल लेने और उन्हें जारी करने का कार्य उच्चाधिकार प्राप्त समितियों छोड़ देंगे।"

    सुनवाई के दरमियान, महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने खंडपीठ से आग्रह किया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक संपर्क से बचाने के लिए कैदियों को हथकड़ी लगाने की अनुमति दें।

    मेहता ने कहा, "जब आरोपी को पेश किया जाता है और कोई वीसी उपलब्ध नहीं होती है तो पुलिसकर्मी को उसे हाथों से पकड़ना पड़ता है, जिससे संक्रमण का जोखिम होता है।"

    हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि इस मुद्दे को बाद में उठाया जाएगा, क्योंकि इससे पहले अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

    बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस को भी सुना, जिन्होंने निम्नलिखित सुझाव दिए:

    1. उन सभी को, जिन्हें जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन पहली लहर कमजोर पड़ने के बाद द वापस बुला लिया गया, उन्हें नियमित जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, ताकि व्यक्तिगत आवेदन करने से बचा जा सके। पैरोल पर दोषियों के लिए, उन्होंने आग्रह किया कि उच्चा‌धिकार समिति उन्हें 90 दिनों के लिए रिहा करने पर विचार करे।

    2. उच्चा‌धिकार समिति के मिनटों को वेबसाइट पर डाला जाना चाहिए अन्यथा, लोग महीनों तक एचपीसी द्वारा पारित आदेशों के बारे में नहीं जान पाते हैं।

    पिछले साल, COVID-19 महामारी की पहली लहर के दरमियान, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में उच्चाधिकार प्राप्त समितियों के गठन का निर्देश दिया था ताकि अंतरिम जमानत या पैरोल के लिए कम जघन्य दोषियों और अंडर-ट्रायल की रिहाई पर विचार किया जा सके।

    सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि एचपीसी उन कैदियों की रिहाई पर विचार कर सकती है, जो ऐसे अपराधों में दोषी या अंडर ट्रायल हैं, जिनके लिए निर्धारित सजा, जुर्माना के साथ या बिना, 7 साल या उससे कम है.....।

    उच्चा‌‌धिकार प्राप्त सम‌ितियों को (i) राज्य विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष, (ii) प्रमुख सचिव (गृह / कारागार), जिसे भी पदनाम से जाना जाता हो, (ii) महानिदेशक (कारागार) शामिल थे।

    पिछले साल जब नवंबर-दिसंबर तक महामारी कमजोर पड़ने लगी थी तक कई उच्च न्यायालयों / HPCs ने कैदियों की अंतरिम जमानत रद्द कर दी थी , और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा ‌था।

    आदेश पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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