[एनडीपीएस] महज जांच या अभियोजन पक्ष के केस में कमी जांच अधिकारी के पूर्वाग्रह को साबित करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

27 Oct 2020 6:52 AM GMT

  • [एनडीपीएस] महज जांच या अभियोजन पक्ष के केस में कमी जांच अधिकारी के पूर्वाग्रह को साबित करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटांसेज (एनडीपीएस) मामले के एक अभियुक्त को दोषी ठहराते हुए कहा है कि जांच में या अभियोजन पक्ष के केस में कमी जांच अधिकारी के पूर्वाग्रह को साबित करने का एक मात्र आधार नहीं हो सकता।

    इस मामले में, ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त को बरी कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने सरकार की अपील स्वीकार कर ली थी और अभियुक्त को दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अभियुक्त की दलील थी कि शिकायतकर्ता द्वारा खुद जांच करना एनडीपीएस एक्ट की योजना के विपरीत होगा, जो पूरे ट्रायल को जोखिम में डाल देगा।

    कोर्ट ने 'मुकेश सिंह बनाम सरकार' मामले में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रदर्शित करना आवश्यक है कि या तो वास्तविक पूर्वाग्रह रहा है या पूर्वाग्रह की वास्तविक संभावना हो। इसमें कोई अनुमान लगाना अनुमति योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कानून की पहले की यह स्थिति अब पलट गयी है कि जांचकर्ता की शिकायत के एक मात्र आधार पर अभियुक्त बरी हो सकता है।

    न्यायमूर्ति एन वी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा :

    "यद्यपि कुछ मामलों में, जांच अधिकारी के कुछ कार्य (या उसमें कोई कमी) पूर्वाग्रह का संकेत दे सकते हैं, लेकिन महज जांच या अभियोजन पक्ष के केस में कमी पूर्वाग्रह का एक मात्र आधार नहीं हो सकती है। अपीलकर्ताओं ने किसी भी चरण में यह दावा नहीं किया कि उनकी कोई शत्रुता थी, या पुलिस का इरादा उन्हें जान बूझकर फंसाने और असली अपराधियों को मुक्त करने का था। इसके अलावा, पुलिस अपीलकर्ताओं के खिलाफ इतनी बड़ी मात्रा में चरस में खुद नहीं रख सकती।"

    एक और दलील जो दी गयी थी, वह थी - आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत पुलिस जांच की विफलता। अभियुक्तों ने दलील दी थी कि जांच की विफलता के कारण उनके खिलाफ गम्भीर पूर्वाग्रह पैदा हुआ है। कोर्ट ने इन दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें (अपीलकर्ताओं की दलीलों में) हमारी आशंकाओं का कोई जवाब नहीं मिला कि ट्रायल के एडवांस स्टेज में ही जांच न किये जाने का बचाव पक्ष का सिद्धांत कैसे सामने आया, जिससे पुलिस के पूर्वाग्रह का संकेत मिला हो।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि स्वतंत्र गवाहों से पूछताछ न किये जाने से किसी को स्वत: बरी किये जाने की मांग करने का हक नहीं हो जाता। अभियुक्तों की एक और दलील यह थी कि हाईकोर्ट ने अपील के स्तर पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनुपालन पर विचार न करके गलती की है।

    अपील खारिज करते हुए बेंच ने कहा :

    "जैसा कि 'हिमाचल प्रदेश बनाम पवन कुमार' मामले में व्यवस्था दी गयी है, कि किसी व्यक्ति की तलाशी से संरक्षण उसके बैग या उसके द्वारा ले जाये जा रहे अन्य सामग्रियों पर लागू नहीं होगा। यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष ने बैकपैक से नारकोटिक्स बरामद होने की बात स्वीकारी है, इसलिए एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनुपालन की समीक्षा करने की आवश्यकता नहीं महसूस होती।"

    केस का नाम: राजेश धीमन बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार

    केस नंबर : क्रिमिनल अपील नंबर 1032 / 2013

    कोरम : न्यायमूर्ति एन वी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय

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