'मेरिट' की संकीर्ण अवधारणा ऊंची जाति के व्यक्तियों को अपने जाति विशेषाधिकार को छिपाने का मौका देती है: जस्टिस चंद्रचूड़

LiveLaw News Network

7 Dec 2021 6:29 AM GMT

  • मेरिट की संकीर्ण अवधारणा ऊंची जाति के व्यक्तियों को अपने जाति विशेषाधिकार को छिपाने का मौका देती है: जस्टिस चंद्रचूड़

    जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि मेरिट की संकीर्ण अवधारणा केवल ऊंची जाति के व्यक्तियों को अपने स्पष्ट जाति विशेषाधिकार को छिपाने का मौका देती है। इस प्रकार की संकीर्ण अवधारणा के कारण ऊंची जाति के व्यक्ति दलितों और अन्य आरक्षित वर्गों की उपलब्धियों को जाति-आधारित आरक्षण खारिज करने का मौका देते हैं।

    प्रसिद्ध न्यायविद माइकल जे सैंडल की किताब "टायरनी ऑफ मेरिट" का उल्लेख करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति अपनी पहचान और सफलता को अपने विशेषाधिकार के नतीजे के रूप में परिभाषित नहीं करते, बल्कि उन्हें विश्वास होता है कि उन्होंने इसे अपनी मेरिट के जर‌िए अर्जित किया है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने बीके पवित्र बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के अपने फैसलों के जर‌िए एक व्यापक परिभाषा दी है, जिसमें ऊंची जातियों के जुटाए गए जातिगत विशेषाधिकार और आरक्षित जातियों द्वारा झेले गए उत्पीड़न को ध्यान में रखा गया है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह टिप्‍पण‌ियां 13वें बीआर अंबेडकर स्मृति व्याख्यान में कीं, जिसका विषय था, "हाशियाकरण की संकल्पना: अभीकरण, अभिकथन, और व्यक्तित्व"। कार्यक्रम का आयोजन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज, नई दिल्ली और रोजा लक्जमबर्ग स्टिफ्टंग साउथ एशिया ने किया था।

    उन्होंने कहा कि ऊंची जाति के व्यक्तियों की व्यावसायिक उपलब्धियां उनकी जाति की पहचान मिटाने के लिए पर्याप्त होती है, जबकि निम्न जाति के व्यक्तियों के लिए यह कभी भी सच नहीं होता है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय संदर्भ में जातिविहीनता एक विशेषाधिकार है, जिसका आनंद केवल ऊंची जातियां ही ले सकती हैं क्योंकि उनके जातिगत विशेषाधिकार पहले ही सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पूंजी में तब्दील हो चुके हैं। दूसरी ओर, निम्न जाति के व्यक्तियों को आरक्षण जैसे लाभों का दावा करने के लिए अपनी जाति पहचान बनाए रखनी होती है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में हाशिए के वर्गों की बात की। उन्होंने कहा, "72 साल पहले हमने खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सभी के लिए समानता पर आधारित एक संविधान दिया था। हालांकि महिलाओं को 2005 में बराबरी का साझीदार माना गया और 2018 में समलैंगिकता को अपराध से मुक्त किया गया।"

    उन्होंने कहा, हमारे संविधान में ऐसे कई अधिकारों की मौजूदगी ने हमेशा इन हाशिए पर रहने वाले समूहों और उनसे संबंधित व्यक्तियों के बारे में समाज की धारणा में सकारात्मक बदलाव नहीं किया है।

    यह आवश्यक है कि समाज के विशेषाधिकार प्राप्त सदस्य समुदायों के सदस्यों को सम्मान और मान्यता प्रदान करें। उन्होंने याद दिलाया कि डॉ अंबेडकर ने हम सभी पर अपने संविधान के पीछे के आदर्शों को बनाए रखने और अपने कार्यों के माध्यम से उन्हें जीवंत करने की जिम्मेदारी रखी है।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,

    "हाशिएकरण जैसी गहरी और प्रच‌लित चीज का मुकाबला करना कोई आसान काम नहीं है, और मैं कोई आसान समाधान नहीं होने की बात स्वीकार करता हूं। हमारे लिए उपलब्ध एकमात्र सहारा संवैधानिक आदर्शों का ईमानदारी से पालन करना और उन्हें जीवन देना है, जिन्हें डॉ अंबेडकर ने तैयार करने में मदद की थी, और उनका उपयोग समाज की समझ और धारणाओं में परिवर्तन लाने के लिए करें।"

    Next Story