अधिकांश राज्यों ने बच्चे के दस्तावेजों में माँ का नाम शामिल करने के लिए नियमों में संशोधन किया: सुप्रीम कोर्ट ने 2014 की जनहित याचिका का निपटारा किया
Shahadat
5 Feb 2025 9:32 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दायर जनहित याचिका का निपटारा कfया, जिसमें सभी आधिकारिक दस्तावेजों और हलफनामों में बच्चों की पहचान उनकी मां के नाम से करने की मांग की गई थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया, जिसमें इस तथ्य को ध्यान में रखा गया कि याचिकाकर्ता की मृत्यु हो चुकी है। अधिकांश राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने यह सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय किए हैं कि बच्चे के सभी आधिकारिक/सार्वजनिक अभिलेखों में मां का नाम दर्ज हो।
जस्टिस कांत ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया और अधिकांश राज्यों द्वारा दायर जवाब-शपथपत्रों के अनुसार, उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई चिंता को स्वीकार कर लिया है। यह सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत निर्णय/संशोधित नियम आदि लिए हैं कि बच्चे की मां का नाम सभी आधिकारिक/सार्वजनिक अभिलेखों में दर्ज हो। ऐसा होने के कारण इस रिट याचिका में कुछ भी नहीं बचा है।"
संक्षेप में कहें तो पत्रकार से आध्यात्मिक कार्यकर्ता बने माधव कांत मिश्रा ने यह जनहित याचिका दायर की, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को सभी आधिकारिक/सार्वजनिक दस्तावेजों/रिकॉर्ड में बच्चे की मां का नाम शामिल करने का निर्देश देने की मांग की गई।
जनहित याचिका में दावा किया गया कि सभी मामलों में मां का नाम न लिखना अनुचित और "प्रकृति के मूल नियम के विरुद्ध" है। याचिकाकर्ता के अनुसार, बच्चे के पिता का नाम दर्ज करना वैकल्पिक हो सकता है।
याचिका में प्रार्थना के समर्थन में ऐसी स्थिति का उल्लेख किया गया, जहां वैवाहिक विवादों और मां के पुनर्विवाह के मामले में पिता का नाम दर्ज करने से बच्चे का भविष्य खराब हो सकता है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को याचिकाकर्ता की मृत्यु और कोई कानूनी उत्तराधिकारी न होने के बारे में बताया, क्योंकि वह अपने जीवनकाल में ही साधु बन गए।
जवाब में जस्टिस कांत ने कहा,
"उन्होंने सराहनीय काम किया, अधिकांश राज्यों ने ऐसा किया है (बच्चे के दस्तावेजों में मां का नाम डालने का प्रावधान किया है)"।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसडी संजय ने भी यही तथ्य दोहराया। उन्होंने कहा कि "जो वे चाहते थे, वह अधिकांश राज्यों में पहले ही हासिल हो चुका है।"
केस टाइटल: माधव कांत मिश्रा बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 576/2014