आईबीसी की धारा 14 के तहत मोहलत की घोषणा कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत चेक डिसऑनर के लिए आपराधिक कार्यवाही को शामिल करती है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

1 March 2021 5:48 AM GMT

  • आईबीसी की धारा 14 के तहत मोहलत की घोषणा कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत चेक डिसऑनर के लिए आपराधिक कार्यवाही को शामिल करती है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी ) की धारा 14 के तहत मोहलत की घोषणा कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक डिसऑनर के लिए आपराधिक कार्यवाही को शामिल करती है।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन ने फैसले के ऑपरेटिव हिस्से को पढ़ते हुए कहा,

    "हमने माना है कि आईबीसी की धारा 14 के तहत मोहलत द्वारा एनआई अधिनियम धारा 138/141 की कार्यवाही को कवर किया जाता है।"

    निर्णय में यह भी गया गया कि मोहलत केवल कॉरपोरेट देनदार के लिए लागू होगी।

    शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि यह बॉम्बे और अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए विचारों से असहमत है।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने उन याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाया, जिनमें नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में परिसमापन कार्यवाही के दौरान एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत आपराधिक ट्रायल जारी रखने को चुनौती दी थी।

    पिछले साल एनआई अधिनियम न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने इस मुद्दे को निर्धारित करने के लिए अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया था कि एनसीएलटी की कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के दौरान एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने पर प्रतिबंध है या नहीं।

    एजी को नोटिस मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि एनसीएलटी की रोक से एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत प्रभावित नहीं होगी।

    मद्रास उच्च न्यायालय ने माना था कि चूंकि एनआई अधिनियम की धारा 138 एक आपराधिक कार्यवाही है, इसलिए आईबीसी की धारा 14 के तहत रोक लागू नहीं होगी।

    मद्रास हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति के के इलान्थिराईयन की एकल पीठ ने कहा था,

    "निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 एक दंडात्मक प्रावधान है, जो सक्षम न्यायालय को कारावास या जुर्माना के आदेश को पारित करने का अधिकार देता है। यह सिविल कार्यवाही नहीं है और आपराधिक अदालत द्वारा लगाया गया जुर्माना भी दावे की राशि या कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ धन की वसूली का दावा नहीं हो सकता है। उपरोक्त प्रावधान से यह देखा जाता है, आपराधिक कार्यवाही प्रतिबंध के तहत कवर नहीं की गई है और याचिकाकर्ता के पास इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की धारा 14 के तहत एक आश्रय नहीं हो सकता है।"

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