सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 157 के अनुपालन के तहत मजिस्ट्रेट को प्राथमिकी (FIR) भेजने में विलंब अपने आप में अभियुक्त को बरी करने का आधार नहीं हो सकता।
इस आपराधिक अपील में, अभियुक्त की दलील थी कि प्राथमिकी देर से भेजी गयी थी और इलाका मजिस्ट्रेट (इस मामले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) को यह 11 दिन बाद प्राप्त हुई थी। अभियुक्त ओमवीर सिंह ने अभयवीर सिंह भदोरिया उर्फ मुन्ना की हत्या के मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (धारा 34 के साथ सहपठित) तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषसिद्धि को चुनौती दी थी।
उक्त दलीलों पर विचार करते हुए, बेंच ने 'जाफेल विश्वास बनाम पश्चिम बंगाल सरकार' मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख किया, जिसमें सीआरपीसी की धारा 157 के अमल में विलम्ब और मुकदमे पर इसके कानूनी प्रभाव की समीक्षा की गयी थी।
उक्त फैसले में कहा गया था कि रिपोर्ट भेजने में महज देरी के कारण इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि मुकदमा समाप्त हो गया या अभियुक्त उसी आधार पर बरी होने का हकदार हो गया है।
इसी निर्णय में आगे कहा गया था,
"मजिस्ट्रेट को प्राथमिकी के बारे में जानकारी देना जांच अधिकारी (आईओ) की जिम्मेदारी है। आईओ को सौंपा गया दायित्व उसका सार्वजनिक कर्तव्य है।
लेकिन इस कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि विलम्ब से पेश की गयी रिपोर्ट या किसी प्रकार की चूक के कारण ट्रायल प्रभावित नहीं होगी। रिपोर्ट दाखिल करने में विलम्ब को प्राथमिकी की सत्यता एवं इसके दर्ज करने के दिन एवं तारीख को चुनौती के आधार के तौर पर देखा जाता है।"
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति एम. एम. शांतनगौदर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा,
"इसलिए सीआरपीसी की धारा 157 के अमल में देरी, अपने आप में, अपीलकर्ता को बरी करने का अच्छा आधार नहीं हो सकता है।"
बेंच ने रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्यों और तथ्यों का संज्ञान लेते हुए आपराधिक अपील खारिज कर दी।
मुकदमे का ब्योरा :-
केस नं. :- क्रिमिनल अपील नं. 982/2011
केस का नाम : ओमवीर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार
कोरम : न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति मोहन एम. शांतनगौदर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना
जजमेंट की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें