'वादी से कारणों के लिए अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती': सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर जल्द फैसला देने की जरूरत पर जोर दिया

Avanish Pathak

28 Sep 2022 12:20 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर तेजी से फैसला देने की जरूरत पर जोर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत के आदेश के कारणों की उपलब्धता के लिए एक वादी से अनिश्चित काल तक प्रतीक्षा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

    मामले में चुनाव याचिका के एक पक्ष ने तेलंगाना हाईकोर्ट में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर किया था। 15 जून 2022 को एक आदेश सुनाया गया, जिसमें कथित तौर पर आवेदन की अनुमति दी गई और चुनाव याचिका को खारिज कर दिया गया।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष, अपीलकर्ता ने प्रस्तुत किया कि आवेदन की अनुमति देने वाला तर्कपूर्ण आदेश अभी तक उपलब्ध नहीं है। अदालत ने कहा कि आदेश के कारण किसी भी पक्ष के पास उपलब्ध नहीं हैं और न ही हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं और न ही आदेश की प्रति की आपूर्ति की गई है, जबकि पक्षकारों ने आदेश की प्रमाणित प्रति मांगने के लिए आवेदन किया है।

    पीठ ने कहा,

    "वर्तमान में प्राप्त स्थिति यह है कि हाईकोर्ट द्वारा आदेश की घोषणा के तीन महीने से अधिक समय के बाद भी, कारण सामने नहीं आ रहे हैं और किसी भी पक्ष के पास उपलब्ध नहीं हैं। मुकदमे की प्रकृति और समग्र परिस्थितियों को देखते हुए, हमें इस स्थिति का सामना करना मुश्किल लगता है।"

    अदालत ने अनिल राय बनाम बिहार राज्य (2001) 7 SCC 318 और पंजाब राज्य और अन्य बनाम जगदेव सिंह तलवंडी (1984) 1 SCC 596 के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा,

    "हमारा विचार है कि इसमें दिए गए दिशा-निर्देश और अवलोकन न्यायालय के समक्ष किसी भी कारण से न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया के लिए मौलिक हैं और उसमें निर्धारित सिद्धांत को आवश्यक भिन्नता के साथ लागू करने की आवश्यकता है, जैसा कि किसी विशेष मामले की दी गई तथ्य स्थिति में आवश्यक हो सकता है।"

    अपील की अनुमति देते हुए, अदालत ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और मामले को फिर से विचार के लिए बहाल कर दिया।

    केस डिटेलः के मदन मोहन राव बनाम भीमराव बसवंतराव पाटिल | 2022 लाइव लॉ (SC) 803 | 2022 का CA 6972 Of 20222| 26 सितंबर 2022 | जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी


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