हाईकोर्ट में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों से संबंधित जजों की संख्या 25% से कम; सुप्रीम कोर्ट में 13.5% महिला जज: कानून मंत्रालय का डाटा

Shahadat

8 Dec 2023 5:54 AM GMT

  • हाईकोर्ट में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों से संबंधित जजों की संख्या 25% से कम; सुप्रीम कोर्ट में 13.5% महिला जज: कानून मंत्रालय का डाटा

    केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच नियुक्त 650 हाईकोर्ट जजों में से 492 सामान्य श्रेणी (75.69%) से संबंधित हैं। इस अवधि के दौरान की गई हाईकोर्ट जजों की नियुक्तियों में से 23 अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी से, 10 अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से, 76 अन्य पिछड़ा वर्ग से और 36 धार्मिक अल्पसंख्यकों से हैं। एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व क्रमशः 3.54 प्रतिशत, 1.54 प्रतिशत, 11.7 प्रतिशत और 5.54 प्रतिशत (कुल लगभग 22.24%) है। मंत्रालय ने कहा है कि 13 जजों के बारे में डेटा उपलब्ध नहीं है।

    कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से संबंधित राज्यसभा सांसद डॉ. जॉन ब्रिटास द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में यह जानकारी दी।

    मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संबंध में आंकड़े भी प्रस्तुत किए। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट (एससी में 34 और एचसी में 790) में कार्यरत 824 जजों में से 111 (लगभग 13.5%) महिला जज है।



    कानून मंत्रालय ने कहा कि वह हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों से अनुरोध करता रहा है कि जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर उचित विचार किया जाए।

    कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की प्रतिक्रिया में कहा गया,

    'सरकार उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता के लिए प्रतिबद्ध है।'

    केंद्रीय मंत्रालय ने जवाब में कहा कि कॉलेजियम सिस्टम द्वारा सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली में एससी/एसटी/ओबीसी/ सहित समाज के सभी वर्गों को सामाजिक विविधता और प्रतिनिधित्व प्रदान करने की जिम्मेदारी है। महिलाओं/अल्पसंख्यकों का भार मुख्यतः न्यायपालिका पर पड़ता है।

    मंत्रालय ने कहा कि प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के पूरक पर 2015 के एनजेएसी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर कॉलेजियम के परामर्श से सरकार द्वारा संशोधित एमओपी को अंतिम रूप दिया जा रहा है। 2017, 2021 और 2023 में संघ ने एमओपी में सुधार करने की आवश्यकता बताई थी और सुप्रीम कोर्ट से संवैधानिक न्यायालयों में नियुक्ति की प्रणाली को 'अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष, प्रतिनिधि और स्वीकार्य' बनाने के लिए इसे अंतिम रूप देने में तेजी लाने का अनुरोध किया था।



    मंत्रालय के अनुसार, सभी हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए एमओपी के मसौदे में सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई कि नियुक्ति योग्यता आधारित होगी और जहां तक संभव हो, महिलाओं और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।

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