लंबी कैद के बाद बरी हुए अभियुक्तों को मुआवज़ा देने के लिए क़ानून ज़रूरी: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
16 July 2025 1:57 PM IST

लंबे समय तक ग़लत तरीके से क़ैद रहे एक मौत की सज़ा पाए दोषी को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 जुलाई) को ग़लत क़ैद के मामलों में मुआवज़ा देने के लिए क़ानून बनाने की ज़रूरत जताई।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस पहलू पर फ़ैसला लेना संसद का अधिकार क्षेत्र है।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत भारत में ग़लत क़ैद के पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए क़ानूनों का अभाव है।
जस्टिस करोल द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,
"संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विदेशी न्यायक्षेत्रों में लंबी अवधि की कैद के बाद बरी होने पर न्यायालयों ने राज्यों को उन व्यक्तियों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया, जिन्होंने सलाखों के पीछे कष्ट सहे, लेकिन अंततः निर्दोष पाए गए। मुआवज़े के इस अधिकार को संघीय और राज्य दोनों कानूनों द्वारा मान्यता दी गई। मुआवज़े का दावा दो तरीकों से किया जा सकता है - अपकृत्य दावे/नागरिक अधिकार मुकदमे/नैतिक दायित्व और वैधानिक दावे।"
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में इस मुद्दे पर विचार किया गया, लेकिन 'गलत अभियोजन' की उसकी समझ केवल दुर्भावनापूर्ण अभियोजन तक ही सीमित है। अभियोजन गलत कारावास की स्थिति से सीधे तौर पर निपटने के बिना सद्भावना के बिना शुरू किया गया।
न्यायालय ने कहा कि गलत तरीके से दोषी ठहराए गए व्यक्ति को लंबे समय तक हिरासत में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिससे वह मुआवज़े का हकदार हो जाता है। हालांकि इस तरह के मुआवज़े का आधार विभिन्न न्यायक्षेत्रों में भिन्न हो सकता है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की अन्य पीठ ने यह राय व्यक्त की थी कि निर्दोष बरी होने के मामले में गलत कारावास के लिए मुआवजे का दावा उत्पन्न हो सकता है।
Case Title: KATTAVELLAI @ DEVAKAR VERSUS STATE OF TAMILNADU

