लखीमपुर खीरी केस : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस को गवाहों को सुरक्षा देने के निर्देश दिए, गवाहों के सीआपीसी 164 के तहत बयान दर्ज करने को कहा
LiveLaw News Network
26 Oct 2021 12:27 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश राज्य को 3 अक्टूबर की लखीमपुर खीरी हिंसा के गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया, जिसमें 8 लोगों ने अपनी जान गंवा दी जिनमें से चार किसान प्रदर्शनकारी थे, जिन्हें कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले के वाहन द्वारा कुचल दिया गया था।
कोर्ट ने यूपी राज्य को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत प्रासंगिक गवाहों के बयान दर्ज किए जाएं। यदि मजिस्ट्रेट की अनुपलब्धता के कारण गवाहों के बयान दर्ज करने में कोई कठिनाई होती है, तो पीठ ने संबंधित जिला न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि बयान निकटतम उपलब्ध मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जा सकें।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने जांच के संबंध में यूपी राज्य द्वारा दायर दूसरी स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद ये निर्देश पारित किए।
पिछले हफ्ते, जब अदालत ने कहा था कि उसे यह आभास हो रहा है कि यूपी पुलिस जांच में "अपने पैर खींच रही है", तो यूपी पुलिस ने धारा 164 के तहत और गवाहों के बयान दर्ज किए। पीठ को आज सूचित किया गया कि 68 गवाहों में से 30 के बयान धारा 164 के तहत दर्ज किए गए हैं।उनमें से 23 चश्मदीद गवाह बताए गए हैं। पिछली बार सिर्फ 4 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे।
आज, कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की भीड़ में से केवल 23 चश्मदीदों का पता लगाया गया है। पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से मौखिक रूप से कहा कि जांच दल को और चश्मदीदों की पहचान करने की कोशिश करनी चाहिए।
साथ ही, कोर्ट ने निर्देश दिया कि किसानों पर हमले के बाद और एक पत्रकार की हत्या के संबंध में तीन व्यक्तियों की पीट-पीट कर हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा एक अलग जवाब दाखिल किया जाना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी।
कोर्ट रूम एक्सचेंज
उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने आज पीठ को सूचित किया कि 68 गवाहों में से 30 गवाहों के बयान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए हैं।
साल्वे ने कहा,
"इन 30 गवाहों में से 23 प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करते हैं। बहुत सारे गवाह औपचारिक गवाह हैं ।"
सीजेआई ने पूछा,
"आपका और अन्य का मामला यह है कि सैकड़ों किसान थे...उनमें से केवल 23 गवाह हैं ?"
साल्वे ने जवाब दिया कि लोगों को सबूत देने के लिए आगे आने के लिए एक विज्ञापन दिया गया था। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि कई डिजिटल वीडियो साक्ष्य बरामद किए गए हैं।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने पूछा,
"आपका मामला यह भी है कि हजारों लोग थे। और वे सभी स्थानीय लोग थे। और घटना के बाद, उनमें से अधिकतर उचित जांच की मांग कर रहे हैं। इसलिए गवाहों द्वारा लोगों की पहचान एक समस्या नहीं होनी चाहिए।"
सीजेआई ने कहा,
"इस तरह के मामलों में... पूरी संभावना होती है।" तब साल्वे ने कहा, "मैं योर लॉर्डशिप जानता हूं, इसलिए योर लॉर्डशिप हस्तक्षेप कर रहे हैं। "
सीजेआई ने आगे कहा,
''अपनी एजेंसी से पूछिए, देखिए 23 से ज्यादा गवाह हों. चश्मदीद गवाह ज्यादा विश्वसनीय होते हैं. फर्स्ट हैंड सबूत होना हमेशा बेहतर होता है.''
साल्वे ने जवाब दिया,
"क्या हम सीलबंद लिफाफे में 164 बयानों में से कुछ योर लॉर्डशिप को दिखा सकते हैं?"
"हमारी आशंका है...", सीजेआई कहने लगे, लेकिन बात पूरी किए बिना उन्होंने कहा, "आप पहले ही इस मुद्दे को समझ चुके हैं।"
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा,
"श्रीमान साल्वे, यह मत भूलिए कि इस भीड़ में से कुछ अभी-अभी चले गए, कुछ केवल देखने वाले थे ... उनमें से कुछ के गवाह नहीं बनने की संभावना है।"
सीजेआई ने कहा,
"पहचान भी महत्वपूर्ण है।"
साल्वे ने जवाब दिया,
"सभी 16 आरोपियों की पहचान कर ली गई है।"
सीजेआई ने यह भी पूछा कि क्या कोई घायल गवाह है। साल्वे ने शुरू में जवाब दिया कि घायलों में से, दुर्भाग्य से, सभी की मौत हो गई। बाद में उन्होंने सुधार किया और कहा कि 3-4 घायल गवाह है।
पीठ ने यह भी कहा कि यूपी पुलिस को गवाहों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि फोरेंसिक जांच में तेजी लाई जानी चाहिए।
सीजेआई ने कहा,
"इसे तेज करें, या हम प्रयोगशालाओं को रिपोर्ट में तेजी लाने के निर्देश देंगे।"
पीठ के आदेश के बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने मारे गए व्यक्तियों में से एक की विधवा रूबी देवी की ओर से उपस्थिति दर्ज कराई।
उन्होंने कहा,
"मैं रूबी देवी के लिए पेश हुआ हूं। मेरे पति की हत्या कर दी गई है। मुझे न्याय चाहिए। हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं और मुझे धमका रहे हैं।"
साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता हर्षवीर प्रताप शर्मा ने हिंसा के दौरान पत्रकार रमन कश्यप की हत्या की जांच से जुड़े मामले का जिक्र किया।
पीठ ने साल्वे से इन मामलों के संबंध में भी अलग से जवाब दाखिल करने को कहा।
पिछली सुनवाई
20 अक्टूबर को, पीठ ने कहा था कि उसे यह आभास हो रहा है कि यूपी पुलिस अपनी जांच में "अपने पैर खींच रही है।"
पीठ ने यह टिप्पणी यह देखने के बाद की थी कि 44 गवाहों में से केवल 4 के बयान आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए थे।
पीठ ने यह भी जानना चाहा कि 10 में से 6 आरोपियों को पुलिस हिरासत के बजाय न्यायिक हिरासत में क्यों भेजा गया, और पूछा कि क्या पुलिस ने उनकी और हिरासत की मांग की थी। यूपी राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तब सूचित किया था कि उन्हें उनके मोबाइल फोन को जब्त करने और फोरेंसिक जांच के लिए कुछ वीडियो साक्ष्य एकत्र करने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।
सीजेआई ने टिप्पणी की थी,
"यह एक कभी न खत्म होने वाली कहानी नहीं बननी चाहिए"
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उचित जांच की मांग करते हुए दो वकीलों द्वारा भेजी गई एक पत्र याचिका के आधार पर जनहित याचिका दर्ज की है। कोर्ट की कार्रवाई सोशल मीडिया में चौंकाने वाले वीडियो के सामने आने के बाद हुई, जिसमें आशीष मिश्रा के काफिले में वाहन को प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचलते दिखाया गया।
8 अक्टूबर को हुई पिछली सुनवाई के कोर्ट ने यूपी पुलिस की जांच पर अपना असंतोष दर्ज किया था, क्योंकि मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को तब तक गिरफ्तार नहीं किया गया था। पीठ ने पूछा कि क्या पुलिस के लिए हत्या के एक मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय उसे दिए गए समन के जवाब का इंतजार करना सामान्य बात है।
कोर्ट की तीखी आलोचना के बाद अगले दिन यूपी पुलिस ने मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया।
केस : केस: लखीमपुर खीरी (यूपी) में हिंसा में जानमाल का नुकसान| डब्ल्यू पी (सीआरएल) सं.426/2021