जजों को स्वतंत्र होने के साथ न्यायालय के बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के मामले में सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
Shahadat
24 Sept 2024 10:11 AM IST
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) धनंजय चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि भारत भर के जज 'सबसे अधिक' स्वतंत्रता की भावना के साथ काम करते हैं, लेकिन न्यायालय के बुनियादी ढांचे की बात करें तो उन्हें कार्यपालिका के साथ खड़ा होना चाहिए।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा,
"हमें स्पष्ट होना चाहिए और अपने दृष्टिकोण से भ्रमित नहीं होना चाहिए, जजों को अपने कार्यों को सबसे अधिक स्वतंत्रता की भावना के साथ करना चाहिए। लेकिन जब प्रशासनिक पक्ष की बात आती है तो हमें ऐसी परियोजनाओं के लिए सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए, जो सभी के लिए हैं, न कि केवल जजों के लिए निजी परियोजनाएं। कार्यपालिका के साथ सहयोग की भावना सभी को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए है। सहयोग की यह भावना पिछले 75 वर्षों से रही है और यह हमारे देश की परिपक्वता को दर्शाती है।"
सीजेआई मुंबई के बांद्रा में बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए नए न्यायालय परिसर के शिलान्यास समारोह में बोल रहे थे।
मुंबई के आलीशान फोर्ट इलाके में स्थित सौ साल पुरानी हाईकोर्ट की इमारत में जगह की कमी है। इसलिए 2019 में हाई कोर्ट ने एक विस्तृत फैसला सुनाते हुए महाराष्ट्र सरकार से हाईकोर्ट परिसर के लिए नई जगह आवंटित करने को कहा था। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया और तदनुसार, राज्य ने चरणबद्ध तरीके से हाई कोर्ट को लगभग 30.16 एकड़ जमीन आवंटित करने का फैसला किया, जिसमें से 4.39 एकड़ जमीन हाल ही में सौंपी गई, जहां सोमवार को सीजेआई ने भूमि पूजन किया।
सभा को संबोधित करते हुए सीजेआई ने 'विरासत' संरचना की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां से पिछले 150 साल से हाई कोर्ट काम कर रहा है।
सीजेआई ने कहा,
"रंगमंच कलाकारों से अक्सर कहा जाता है कि हमें मंच का सम्मान करना चाहिए और तभी मंच हमारा सम्मान करेगा। इसी तरह हमें विरासत भवन का सम्मान करने की आवश्यकता है। मौजूदा भवन का हर कोना एक कहानी बयां करता है। यदि आप गलियारों से गुजरते हैं तो आपको बंदर जज, लोमड़ी वकील दिखाई देंगे। औपनिवेशिक काल में कानून का इस्तेमाल उत्पीड़न के लिए किया जाता था। राष्ट्र निर्माण में बॉम्बे हाईकोर्ट की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। औपनिवेशिक शासन के दौरान भी हाईकोर्ट स्वतंत्र रहा। वास्तव में आपातकाल के दौरान भी हाईकोर्ट स्वतंत्र था, जिसमें कई जजों ने कानून को बनाए रखने के लिए अपने करियर को जोखिम में डाला था।"
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि नई इमारत, जिसमें हाईकोर्ट स्थित होगा, उसको इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि यह सभी के लिए 'सुलभ' हो और सार्वभौमिक डिजाइन पर आधारित हो।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने रेखांकित किया,
"यह केवल दिव्यांग लोगों के लिए ही नहीं बल्कि बच्चों और बुजुर्गों के लिए भी सुलभ होना चाहिए। आइए महत्वपूर्ण हितधारकों पर ध्यान केंद्रित करें। न्यायपालिका जनसांख्यिकीय बदलावों का सामना कर रही है। अधिक महिलाएं इस पेशे में प्रवेश कर रही हैं और वकील और जज बन रही हैं। महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में न्यायपालिका में 50 प्रतिशत से अधिक नए प्रवेशकर्ता महिलाएं हैं। उनकी विशेष ज़रूरतें हैं, जिन्हें महिलाओं के लिए काम के सुरक्षित और समावेशी स्थान बनाकर पूरा किया जाना चाहिए। महिलाओं को विशेष रियायतों की उम्मीद नहीं है, वे समान अवसर की उम्मीद करती हैं। हम जो भौतिक बुनियादी ढांचा बनाते हैं, वह अगले 50 या 100 वर्षों में महिलाओं के लिए जिस तरह का समाज बनाएंगे, उसे परिभाषित करेगा।"
इसके अलावा, सीजेआई ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हजारों निर्णयों का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया गया।
सीजेआई ने कहा,
"हमारा विचार यह सुनिश्चित करना है कि जजों के रूप में हमारा काम (फैसले) उन लोगों के दरवाजे तक पहुंचे, जिनके लिए हम काम करते हैं। हमारे संविधान के मूल्यों को लोगों और वकीलों के दैनिक जीवन में शामिल किया जाएगा, जिससे उन्हें मुफ्त में और स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जा सके। संविधान को लोगों के करीब लाने से एक अधिक सूचित और जीवंत समाज का निर्माण होगा।"
इस कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण गवई, जस्टिस अभय ओक, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रसन्ना वराले मौजूद थे। इस सभा में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री (डीसीएम) देवेंद्र फड़नवीस और अजीत पवार भी मौजूद थे।
अपने संबोधन में जस्टिस ओक ने सरकार को यह स्पष्ट कर दिया कि भले ही हाईकोर्ट के लिए नई इमारत बनाई जा रही हो, लेकिन मौजूदा 'विरासत' इमारत को संरक्षित किया जाना चाहिए और इसे न्यायपालिका के पास ही रखा जाना चाहिए।
जस्टिस ओक ने कहा,
"मैं व्यक्तिगत रूप से दृढ़ विचार व्यक्त करता हूं, भले ही हाईकोर्ट को किसी नए भवन में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव हो, लेकिन वर्तमान भवन न्यायपालिका के पास ही रहना चाहिए। हम वहां एक संग्रहालय या मध्यस्थता केंद्र बना सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि आज के युवा जजों को आज मैंने जो कहा, वह याद होगा।"
जज ने महाराष्ट्र भर में ट्रायल कोर्ट में 'खराब बुनियादी ढांचे' पर भी प्रकाश डाला और कार्यपालिका से इस मुद्दे पर भी ध्यान देने का अनुरोध किया।
जस्टिस ओक ने कहा,
"हमारे निचले न्यायालयों का बुनियादी ढांचा पिछड़ रहा है। राजनीतिक नेताओं को सीमा पार करके कर्नाटक और गुजरात में निचली अदालतों की जांच करनी चाहिए। हमारा राज्य पिछड़ रहा है। ट्रायल कोर्ट आम आदमी के न्यायालय हैं और इसलिए उन्हें बेहतर बनाने की जरूरत है। बांद्रा में ही पिछले छह वर्षों से पारिवारिक न्यायालय का निर्माण चल रहा है। काम कब पूरा होगा? इसलिए मेरा दृढ़ विश्वास है कि नए हाईकोर्ट परियोजना के पूरा होने के लिए समयसीमा तय की जानी चाहिए।"
कार्यक्रम में बोलते हुए सीएम शिंदे ने कहा कि जब भी नए बुनियादी ढांचे या अदालतों के डिजिटलीकरण आदि जैसी किसी अन्य परियोजना की बात आती है तो सरकार हमेशा न्यायपालिका का समर्थन करती रहेगी। सीएम ने राज्य में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर भी जोर दिया और कहा कि सरकार ने महिलाओं के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए 'प्रणाली को मजबूत' किया है।