क्या एससी-एसटी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण स्वीकार्य है? सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने मामला बड़ी बेंच को भेजा, कहा- 'ईवी चिन्नैया' पर पुनर्विचार की आवश्यकता
LiveLaw News Network
27 Aug 2020 11:43 AM IST
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को कहा कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में एक समन्वित पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और मामले को बड़ी पीठ के समक्ष रखने के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा जाए। पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकार के पास आरक्षण देने की शक्ति होती है, वह उप-वर्गीकरण बनाने की भी शक्ति रखती है और इस प्रकार के उप-वर्गीकरण आरक्षण सूची के साथ छेड़छाड़ करने के बराबर नहीं होते हैं।
फैसले के संचालक हिस्से को पढ़ते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, "संघीय ढांचे में, राज्य सरकार को आरक्षण सूची के तहत उप-श्रेणियों को अधिमान्य उपचार देने के लिए कानून बनाने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है।"
पीठ ने कहा कि 'ईवी चिन्नैया' ने 'इंदिरा स्वाहने' के फैसले को सही ढंग से लागू नहीं किया है और अनुच्छेद 342 ए में किए गए संशोधन को ध्यान में नहीं रखा गया है। हालांकि, ईवी चिन्नैया में 5 जजों की बेंच द्वारा व्यक्त किए गए विपरीत दृष्टिकोण को देखते हुए, पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
जस्टिस अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की एक पीठ ने पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य और जुड़े हुए मामलों में फैसला सुनाया।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के बाद ये अपील दायर की गई थीं, जिस फैसले में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवा में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4 (5) को रद्द कर दिया गया था, जिसके तहत प्रत्यक्ष भर्ती में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रिक्तियों का 50 प्रतिशत, यदि उपलब्ध हो, तो पहली वरीयता के रूप में बाल्मीकि और मजहबी सिखों को देने का प्रावधान था। इस प्रावधान को असंवैधानिक ठहराते हुए, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ईवी चिन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश (2005) 1 SCC 394, पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 341 (1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश में सभी जातियां सजातीय समूह के एक वर्ग का गठन करती हैं, और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता है। इसके बाद यह भी कहा गया था कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 41 या सूची III के प्रविष्टि 25 के संदर्भ में ऐसा कोई भी कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने यह देखते हुए कि ईवी चिन्नैया की दलीलें इंद्रा स्वाहने बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में 9 जजों की बेंच के फैसले के अनुरूप नहीं है, मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया था।
जस्टिस आरएम लोढ़ा, कुरियन जोसेफ और आरएफ नरीमन की पीठ ने 2014 में कहा था, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 338 की रोशनी में ईवी चिन्नैया पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है...",
इस साल की शुरुआत में, संविधान पीठ ने निम्नलिखित मुद्दों पर पक्षकारों को सुना था:
-क्या पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवा में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4 (5) के तहत निहित प्रावधान संवैधानिक रूप से मान्य हैं?
-क्या राज्य में अधिनियम की धारा 4 (5) के तहत निहित प्रावधानों को लागू करने की विधायी क्षमता थी?
-क्या ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश और अन्य (2005) 1 SCC 394 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
मामलों को फैसले के लिए 17 अगस्त 2020 तक के लिए सुरक्षित रखा गया है।