हाईकोर्ट रिट अधिकार का उपयोग कर कानूनी कल्पना पर प्रतिबंध लगा सकता है, बशर्ते वह कल्पना संचालन में न आ चुकी होः सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
20 March 2020 1:38 PM GMT
![National Uniform Public Holiday Policy National Uniform Public Holiday Policy](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2020/02/19/750x450_370427-national-uniform-public-holiday-policy.jpg)
Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दिए गए अधिकारों का उपयोग करते हुए कानून में शामिल की गई कानूनी कल्पना पर प्रतिबंध लगा सकता है, बशर्ते उक्त कानूनी कल्पना संचालन में न आ चुकी हो।
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने दोहराया कि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय की शक्ति को किसी क़ानून के विपरीत प्रावधान के जरिए वापस लिया या संकुचित किया नहीं जा सकता है।
कानून और तथ्य
मुंबई नगर निगम कानून की धारा 5 बी के अनुसार उम्मीदवार को नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख को जाति वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।
एक उम्मीदवार, जिसने नामांकन दाखिल करने की तारीख से पहले अपने जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन के लिए स्क्रूटनी कमेटी में आवेदन किया है, लेकिन उसने नामांकन दाखिल करने की तिथि तक वैधता प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया है, तब उसे एक हलफनामा देना होगा होगा कि वह चुनाव की तारीख से छह महीने के भीतर स्क्रूटनी कमेटी की ओर से जारी वैध प्रमाण पत्र जमा कर देगा।
यदि एक व्यक्ति चुनाव की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो उस चुनाव को पूर्वव्यापी प्रभाव से रद्द माना जाएगा, और उस व्यक्ति को काउंसलर पद के लिए अयोग्य माना जाएगा। संशोधन अधिनियम, 2018 के बाद छह महीने की अवधि को बारह महीने कर दिया गया था।
मौजूदा मामले में कास्ट (जाति) स्क्रूटनी कमेटी ने एक चुने हुए उम्मीदवार को जाति वैधता प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया। उम्मीदवार ने कमेटी के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्क्रूटनी कमेटी के आदेश को रद्द कर दिया और मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए कमेटी को वापस भेज दिया। यह कहा गया कि हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद उम्मीदवार का चुनाव बरकरार रहेगा, जबकि स्क्रूटनी कमेटी के आदेश को रद्द कर दिया गया।
मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में मुद्दा था कि क्या हाईकोर्ट द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दिए गए अधिकार का उपयोग कर दिए गए आदेश से उक्त अवधि बढ़ाई जा सकती है।
दूसरे शब्दों में, यह कि क्या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त संवैधानिक अधिकार के प्रयोग के जरिए उच्च न्यायालय राज्य अधिनियमन में शामिल कानूनी कल्पना का समाप्त करने का आदेश दे सकता है?
इन मुद्दों का जवाब देते हुए पीठ ने कहा कि मुंबई नगर निगम काननू की धारा 5 बी संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को दिए गए अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं है।
अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणियां कीं-
अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त शक्तियां-
(i)अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में निहित न्यायिक समीक्षा की शक्ति, संविधान की अभिन्न और आधारभूत विशेषता है। यह संविधान की मूल संरचना है। अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त अधिकार क्षेत्र वास्तविक, असाधारण और विवेकाधीन है। हाईकोर्ट का काम यह देखना है कि क्या किसी संवैधानिक प्राधिकरण, ट्रिब्यूनल, वैधानिक प्राधिकरण या संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ के भीतर किसी प्राधिकरण के किसी फैसले के कारण अन्याय तो नहीं हुआ है।
(ii) न्यायालय नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता का संरक्षक है। यदि वे नागरिकों के प्रति अपे कर्तव्य से विमुख होते हैं तो वे अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर पाएंगे। अनुच्छेद 226 का दायरा व्यापक है और जहां कहीं भी अन्याय पाया जाता है, इसका इस्तेमाल कर उसका खात्मा किया जा सकता है।
(iii) संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त शक्ति किसी भी कानून के विपरीत प्रावधान को अधिरोहित करती है और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय की शक्ति को किसी कानून के विपरीत प्रावधान के जरिए न वापस लिया जा सकता है और न निरस्त किया जा सकता है।
(iv) जब किसी नागरिक के पास किसी भी वैधानिक प्राधिकरण के किसी भी निर्णय की न्यायिक समीक्षा कराने का अधिकार है, तो उच्च न्यायालय के पास, न्यायिक समीक्षा के लिए, यथास्थिति बनाए रखने का अधिकार है,...उच्च न्यायालय रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर अंतरिम आदेश कर सकता है।
धारा 5 बी कानूनी कल्पना
(v) यह सच है कि मुंबई नगर निगम कानून की धारा 5 बी के तहत एक वर्ष की अवधि के भीतर जाति वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है, लेकिन वर्तमान मामले में छह माह की अवधि समाप्त होने से पहले, कास्ट स्क्रूटनी कमेटी ने पीड़ित व्यक्तियों द्वारा रिट याचिका दायर करने की आवश्यकता के दावे को अवैध रूप से खारिज कर दिया, जिस रिट याचिका में हाईकोर्ट अंतरिम राहत दी थी।
हाईकोर्ट की किसी अनुचित मामले में अंतरिम राहत प्रदान करने की शक्ति को केवल एक वर्ष की अवधि के लिए सीमित नहीं किया जा सकता है, जो अवणि जाति वैधता प्रमाणपत्र जमा करने के लिए धारा 5 बी में परिकल्पित की गई है।
(vi) वर्तमान मामले में जहां प्रतिवादियों का जाति का दावा छह महीने की अवधि समाप्त होने से पहले अवैध रूप से खारिज कर दिया गया था, अंतरिम आदेश देने के मामले में उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर कोई रोक नहीं है,और उच्च न्यायालय ने छह महीने की अवधि के समाप्ति से पहले अंतरिम आदेश दिया था।
(vii) वर्तमान मामले के अनुसार उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के कारण, चुनाव की पूर्वव्यापी समाप्ति की धारा 5 बी कल्पना क्रियान्वित नहीं होगी।
जजमेंट पढ़ने और डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें