कानून को तोड़-मरोड़कर भाषण की आजादी पर हमले किए जा रहे हैं: जस्टिस मदन लोकुर ने हाथरस, कफील खान, प्रशांत भूषण मामले में सरकार की कार्रवाई की निंदा की
LiveLaw News Network
13 Oct 2020 8:33 AM GMT
जस्टिस मदन बी लोकुर ने सोमवार को कहा, "अगर कानून का पूर्णतया दुरुपयोग नहीं हो रहा है तो भी कानून को तोड़-मरोड़कर बोलने की आजादी को खत्म किया जा रहा है, उस पर हमला किया जा रहा है।"
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मीडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित बीजी वर्गीज मेमोरियल लेक्चर 2020 में बोल रहे थे, जिसकी मेजबानी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर ने की थी।
"हमारे मौलिक अधिकारों का संरक्षण और सुरक्षा-भाषण, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध का अधिकार," विषय पर बोलते हुए जस्टिस लोकुर ने जोर देकर कहा कि कानून की 'वस्तुनिष्ठ' व्याख्या की आवश्यकता है, लेकिन अफसोस है कि 'व्यक्तिनिष्ठ संतुष्टि' कानून पर हावी हो चुकी है और परिणाम यह है कि असंतोष ऐसे मुद्दा बन गया है कि "सद्भाव का भाषण भी कभी-कभी सुरक्षा के लिए खतरा बन जाता है।"
जस्टिस लोकुर ने अपने भाषण में हाथरस मामले, प्रशांत भूषण अवमानना मामले, कफील खान मामले, आदि में पुलिस कार्रवाई और कानून के दुरुपयोग पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
उन्होंने कहा, "आज की शाम मैं अपने सबसे अमूल्य मौलिक अधिकार, यानि भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के क्रमिक क्षरण पर बात करूंगा। एक ऐसा क्षरण, जो असंतोष और विरोध के मानव अधिकारों के क्रमिक विनाश की ओर बढ़ रहा है। यह घातक कॉकटेल उनकी आजादी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा, जो बोलने की हिम्मत करते हैं।"
उन्होंने स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और असहमत होने के अधिकार पर चर्चा की।
(i) स्वतंत्र भाषण और देशद्रोह
जस्टिस लोकुर ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1962 की शुरुआत में स्पष्ट रूप से देशद्रोह कानून को रखा था, फिर भी अधिकारियों ने राजद्रोह कानूनों को "हथियार" बनाने के विभिन्न तरीके ढूंढे।
उन्होंने असीम त्रिवेदी के मामले का जिक्र किया, जो एक कार्टूनिस्ट था जिसे राष्ट्रीय प्रतीक और संसद भवन को इस रूप में चित्रित किया जो "सत्ता को अस्वीकार्य" था, उसे राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि कार्टून में उकसाने या हिंसा भड़काने की प्रवृत्ति नहीं थी, त्रिवेदी को कुछ समय के लिए जेल भेज दिया गया।
उन्होंने एडवोकेट प्रशांत भूषण के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई का उल्लेख किया, और 2012 में ठाकरे विरोधी पोस्ट में मामले में मुंबई की दो लड़कियों की गिरफ्तारी के साथ तुलना करते हुए कहा,
"अपने जोखिम पर ट्वीट करें, सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को यह सबक हाल ही में पढ़ाने का प्रयास किया है।"
(ii) स्वतंत्र भाषण और मनगढ़ंत मामले
जस्टिस लोकुर ने "भाषण की आजादी को खत्म करने के तरीके" को सूचीबद्ध किया, जिसमें एक वक्ता के हिस्से ऐसी बातों को डाल देना है, जिसे जिसे उसने कभी कहा नहीं था और फिर इस "मनगढ़ंत" भाषण के आधार पर व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाती है।
डॉ कफील खान के प्रिवेंटिव डिटेंशन के मामले का जिक्र करते हुए, जस्टिस लोकुर ने अफसोस जताया कि हिरासत में अधिकारियों द्वारा "कानून की ज्ञात लगभग हर प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया"।
जस्टिस लोकुर ने डॉ कफील खान के मामले को, "किसी व्यक्ति के कई महीनों तक जेल में रखने के लिए" मनगढ़ंत मामला बनाने का क्लासिक उदाहरण बताया।
25 मई, 2020 को 'पिंजरा तोड़' की सदस्य, देवांगना कालिता की गिरफ्तारी और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उन्हें दी गई बाद की राहत का हवाला देते हुए, जस्टिस लोकुर को "एक भयावह आक्षेप" की ओर इशार किया कि किसी को भी मनगढ़ंत कहानी के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है।
(iii) स्वतंत्र भाषण और फेक न्यूज
जस्टिस लोकुर ने कहा कि सत्ता कमजोरों और दोषरहितों के खिलाफ कार्रवाई करना पसंद करती है, ...जबकि विशेषाधिकार प्राप्त लोग किसी भी कार्रवाई से बच जाते हैं।
उन्होंने पंजाब के एक व्यक्ति के मुकदमे का जिक्र किया जिस पर फर्जी खबर कि एक विशेष जिले में COVID 19 रोगियों के लिए वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है, फैलाने की "धारणा" पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया, की तुलना एक निर्वाचित कैबिनेट मंत्री के मामले से की, जिसने घातक कोरोना वायरस से प्रतिरक्षा के उपायों पर एक "विचित्र दावा" किया था।
(iv) स्वतंत्र भाषण और प्रेस
जस्टिस लोकुर ने कहा कि हाथरस के सामूहिक बलात्कार क्षेत्र से मीडिया को बाहर रखने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 का शायद पहली बार उपयोग हुआ। उन्होंने कहा कि "कानून के भयंकर दुरुपयोग के जरिए प्रेस की स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन" का मामला था।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि इस प्रकार "शांति भंग की आड़ में लगातार इंटरनेट बंद करना" गैर आनुपातिक प्रतिक्रिया है।
यह कहते हुए कि "स्वतंत्र भाषण के लिए मौलिक अधिकार किसी भी सभ्य लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं," जस्टिस लोकुर ने आगाह किया कि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कानूनों को तोड़ने-मरोड़ने और दुरुपयोग नहीं करने दिया जाए।
जस्टिस लोकुर ने सलाह दी कि एक लोकतंत्र में लोगों के दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं और "इनक सम्मान किया जाना चाहिए - अन्यथा हमारे समाज का ताना-बाना बिखर सकता है ..."
बीजी वर्गीज मेमोरियल लेक्चर के अलावा, मीडिया फाउंडेशन ने उत्कृष्ट महिला पत्रकारों को 2019 का चमेली देवी जैन पुरस्कार भी प्रदान किया। इस वर्ष यह पुरस्कार द वायर की सुश्री आरफा खानम शेरवानी और बेंगलुरु की स्वतंत्र पत्रकार सुश्री रोहिणी मोहन को दिया गया। चेन्नई की स्वतंत्र डेटा-पत्रकार सुश्री रुक्मिणी एस को माननीय उल्लेख मिला।