'पीली मटर का शुल्क-मुक्त आयात भारतीय किसानों को नुकसान पहुंचा रहा है:' जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
Shahadat
25 Sept 2025 12:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 सितंबर) को जनहित याचिका (PIL) पर नोटिस जारी किया, जिसमें केंद्र सरकार की बिना किसी शुल्क के पीली दाल के आयात की अनुमति देने की नीति को चुनौती दी गई।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एनके सिंह की पीठ किसान संगठन 'किसान महापंचायत' द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तर्क दिया गया कि यह नीति भारतीय कृषकों को नुकसान पहुंचा रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इस नीति के परिणामस्वरूप सोयाबीन, मूंगफली, उड़द, मूंग और अरहर दाल की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे आ गईं।
उन्होंने बताया कि एक सरकारी विशेषज्ञ निकाय, कृषि लागत और मूल्य आयोग ने मार्च, 2025 में पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की। आयोग ने आगे सिफारिश की कि घरेलू कीमतों के अनुरूप तुअर, अरहर और मसूर जैसी अन्य दालों पर आयात शुल्क बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि नीति आयोग ने इस साल सितंबर में सिफारिश की कि आयात पर निर्भरता को देखते हुए घरेलू दाल उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए।
भूषण ने नीति आयोग की रिपोर्ट पढ़ते हुए कहा,
"भारत को खेती के रकबे को बढ़ाकर और आयात पर निर्भरता कम करके दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए घरेलू खाद्य उत्पादन को प्राथमिकता देनी चाहिए।"
हालांकि, जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या भारत में दाल का पर्याप्त घरेलू उत्पादन है।
जस्टिस कांत ने कहा,
"क्या आपने इसकी जाँच की? भारत में दालों का उत्पादन अपर्याप्त है।"
भूषण ने कहा कि पीली मटर का आयात 3500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहा है। इसका उपयोग उड़द, तूर और चना के विकल्प के रूप में किया जाता है। इन दालों के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग 8500 रुपये प्रति क्विंटल है।
भूषण ने कहा,
"इस प्रकार आयात 35 रुपये प्रति किलो है, जबकि घरेलू कीमतें 85 रुपये प्रति किलो हैं। इससे पहले, सरकार ने भारी आयात शुल्क लगाया और आयात को प्रतिबंधित किया। इनमें से कुछ आयातक कंपनियां इस न्यायालय में आईं। इस न्यायालय ने अपने दो निर्णयों में कहा कि इसे चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह घरेलू किसानों की रक्षा के लिए किया गया है। वर्तमान में स्थिति बिल्कुल विपरीत है।"
हालांकि, जस्टिस कांत ने घरेलू उत्पादन की पर्याप्तता के बारे में अपना प्रश्न दोहराया।
जस्टिस कांत ने कहा,
"क्या हमारे पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दालों का पर्याप्त घरेलू उत्पादन है? हो यह रहा है कि किसान भंडारण का खर्च नहीं उठा सकते। भंडारण का अधिकार किसानों के पास नहीं है। इसलिए मूल्य कारक के कारण, किसान को आधार मूल्य से कम मिलेगा...।"
भूषण ने कहा कि आयोग ने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि आयात के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि किसान लागत के बराबर कीमत पर दालें नहीं बेच सकते।
खंडपीठ ने कहा कि वह केवल आयोग और नीति आयोग की रिपोर्टों के आलोक में ही नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक है।
जस्टिस कांत ने कहा,
"हम केवल इन आधिकारिक और अत्यंत ज़िम्मेदार संस्थाओं की रिपोर्टों के कारण ही नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक हैं...अंततः आपको इसकी जांच करनी होगी। इसका अंतिम परिणाम उपभोक्ता की पीड़ा नहीं हो सकता...किसान को नहीं मिलेगा, क्योंकि किसान पहले ही बेच चुका है।"
भूषण ने कहा कि आयात शुल्क मुक्त करने के सरकारी आदेश में कोई कारण नहीं बताया गया।
जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता के इस दावे का भी हवाला दिया कि ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में पीली दाल का इस्तेमाल मवेशियों के चारे के रूप में किया जा रहा है।
जस्टिस कांत ने पूछा,
"इसका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?"
भूषण ने जवाब दिया,
"यह एक और समस्या है, इन दालों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।"
भूषण ने कहा,
"कृषि मंत्री ने भी सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि हमें...हर कोई चिंता व्यक्त कर रहा है...किसान मर रहे हैं। वे आत्महत्या कर रहे हैं!"
Case : KISAN MAHAPANCHAYAT v. UNION OF INDIA AND ORS | W.P.(C) No. 911/2025

