'संविधान के मूल ढांचे के लिए विनाशकारी': विपक्ष ने 30 दिन की नज़रबंदी पर मंत्रियों को हटाने संबंधी केंद्र के विधेयक की आलोचना की

Shahadat

20 Aug 2025 7:54 PM IST

  • संविधान के मूल ढांचे के लिए विनाशकारी: विपक्ष ने 30 दिन की नज़रबंदी पर मंत्रियों को हटाने संबंधी केंद्र के विधेयक की आलोचना की

    130वें संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025, जिसमें गंभीर अपराधों में 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर केंद्रीय या राज्य के मंत्रियों को पद से हटाने का प्रस्ताव है, को आज (बुधवार) लोकसभा में भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

    गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने के प्रस्ताव के साथ पेश किया। मतदान प्रक्रिया के माध्यम से प्रस्तावों को मंजूरी दी गई और तदनुसार विधेयक को समिति को भेज दिया गया।

    हालांकि, जब विधेयकों को पेश करने का प्रस्ताव पेश किया गया तो AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) के नेता मनीष तिवारी और केसी वेणुगोपाल, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) के एनके प्रेमचंद्रन और समाजवादी पार्टी (SP) के धर्मेंद्र यादव ने इसका कड़ा विरोध किया, जबकि कई अन्य ने नारे लगाए।

    ओवैसी ने कहा,

    "यह शक्तियों के पृथक्करण और उचित प्रक्रिया के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और लोगों के सरकार चुनने के अधिकार का हनन करता है। यह बेबुनियाद आरोपों और संदेह के आधार पर कार्यकारी एजेंसियों को खुली छूट देता है। केवल तभी जब कोई अपराध संदेह से परे साबित हो जाए, तभी आप सदस्यता/पद खो सकते हैं। लेकिन यहां, केवल आरोप लगाने पर ही पद खोने की सज़ा मिलेगी। यह प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करता है। यह संशोधन एक मंत्री और मुख्यमंत्री को कार्यकारी एजेंसियों की दया पर छोड़ देगा। क्या गृह मंत्री ने अनुच्छेद 74(1) पढ़ा है? यह विधेयक इसका उल्लंघन करता है। यह 1933 का गेस्टापो बूम है। यह सरकार पुलिस राज्य बनाने पर तुली हुई है। यह मौत की घंटी होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए है कि लोकतंत्र ज़िंदा न रहे।"

    AIMIM नेता ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (जिसे IPC के तहत 'देशद्रोह' कानून की जगह लेने वाला बताया गया) का ज़िक्र करते हुए अमित शाह के उस "वादे" पर ज़ोर दिया कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि हाल ही में इस कानून का इस्तेमाल असम के सीनियर जर्नालिस्ट के खिलाफ किया गया।

    मनीष तिवारी ने तर्क दिया,

    "यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करता है, जो कहता है कि कानून का शासन होना चाहिए। कानून के शासन का आधार तब तक निर्दोष है, जब तक दोषी सिद्ध न हो जाए। यह विधेयक जांच अधिकारी को भारत के प्रधानमंत्री का बॉस बनाता है। यह अनुच्छेद 21, जो उचित प्रक्रिया का खंड है, उसका उल्लंघन करता है। यहां तक कि आरोप तय करने से भी दोष सिद्ध नहीं होता। यह विधेयक अनुच्छेद 21 के मूल सिद्धांतों को उलट देता है। यह जनभावना को विस्थापित करके संसदीय लोकतंत्र को विकृत करता है। यह राज्य के उन अंगों द्वारा राजनीतिक दुरुपयोग के द्वार खोलता है, जिनके मनमाने आचरण पर सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार आपत्ति जताई है। यह सभी संवैधानिक सुरक्षा उपायों - सामूहिक उत्तरदायित्व, न्यायिक समीक्षा, अविश्वास प्रस्ताव और दोषसिद्धि पर अयोग्यता - को हवा में उड़ा देता है।"

    प्रेमचंद्रन ने कहा,

    "विधेयक सदस्यों के बीच प्रसारित नहीं किया गया, [सदन] प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया... कल दोपहर 1 बजे के बाद हमें विधेयक की प्रति प्राप्त हुई। मैं गृह मंत्री से पूछना चाहता हूं कि इसमें अनावश्यक जल्दबाजी क्या है... सदस्यों को विधेयक प्रस्तुत करते समय इसका विरोध करने का अधिकार है। उस पर अंकुश लगाया जा रहा है।"

    उन्होंने आगे कहा कि यह देश के विभिन्न हिस्सों में विपक्ष शासित राज्यों को अस्थिर करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया गया।

    प्रस्तावित कानून का उद्देश्य राजनीति के क्षेत्र में नैतिकता बनाए रखना है, इस दावे पर सवाल उठाते हुए वेणुगोपाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अमित शाह को गुजरात में मंत्री रहते हुए गिरफ़्तार किया गया।

    उन्होंने कहा,

    "कई लोग कह रहे हैं कि यह राजनीति में नैतिकता लाने के लिए है। जब माननीय गृह मंत्री गुजरात में मंत्री थे, तब उन्हें गिरफ़्तार किया गया! क्या उन्होंने नैतिकता का...?"

    इस पर सदन में भारी हंगामा हुआ। गृह मंत्री ने अपनी ओर से स्पष्ट किया कि उन्हें झूठे आरोपों के आधार पर गिरफ़्तार किया गया। फिर भी उन्होंने गिरफ़्तारी से पहले अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया और जब तक उनका नाम साफ़ नहीं हो जाता, तब तक उन्होंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया।

    फिर भी वेणुगोपाल ने ज़ोर देकर कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य विपक्षी सरकारों को निशाना बनाना है।

    उन्होंने कहा,

    "यह चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार जैसे लोगों को डराने के लिए है।"

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