किसी भी न्यायालय को "निचली अदालत" कहना संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध; ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को "निचली अदालत का रिकॉर्ड" न कहें : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
24 May 2025 7:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को "निचली अदालत का रिकॉर्ड" नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि किसी भी न्यायालय को निचली अदालत कहना संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने आपराधिक अपील पर निर्णय देते हुए कहा कि "ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को "निचली अदालत का रिकॉर्ड" नहीं कहा जाना चाहिए। किसी भी न्यायालय को "निचली अदालत" कहना हमारे संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध है।"
इस संबंध में खंडपीठ ने रजिस्ट्री को 8 फरवरी, 2024 को दिए गए अपने निर्देश को दोहराया। न्यायालय ने 8 फरवरी, 2024 को पारित अपने आदेश में कहा था, "ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को लोअर कोर्ट रिकॉर्ड (LCR) के रूप में संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, इसे ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड (TCR) के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए।"
इसके बाद रजिस्ट्री ने 28 फरवरी, 2024 को सर्कुलर जारी किया।
न्यायालय ने ये टिप्पणियां EIPC की धारा 302 और 307 के तहत अपराधों के लिए दो अपीलकर्ताओं पर लगाए गए आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए कीं।
यहां न्यायालय ने पाया कि तीन प्रत्यक्षदर्शियों ने अभियुक्तों की जमानत सुनवाई में अपनी संलिप्तता से इनकार करते हुए हलफनामा दायर किया। हालांकि, उक्त हलफनामों के आधार पर आगे कोई जांच नहीं की गई। बल्कि अभियोजन पक्ष ने इन हलफनामों को दबा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक बड़ी खामी माना।
न्यायालय ने कहा,
"चूंकि अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की है। पीडब्लू-5 से पीडब्लू-7 के हलफनामों के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री को दबा दिया, इसलिए केवल पीडब्लू-4 की गवाही के आधार पर अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराना असुरक्षित है। हलफनामों के आधार पर आगे की जांच करने में विफलता मामले की जड़ तक जाती है। अपराध के हथियारों को बरामद करने में विफलता भी इन परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में प्रासंगिक हो जाती है।"
केस टाइटल: सखावत और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

