"रोहिंग्या शरणार्थियों का निर्वासन ना केवल अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन, बल्‍कि उन्हें यातना और मौत के मुंह में भेजने जैसा", सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

LiveLaw News Network

26 March 2021 6:11 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    जातीय हिंसा के कारण म्यांमार से भागकर भारत आए रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों के प्रस्‍तावित निर्वासन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया गया है। हलफनामे में कहा गया है, "रोहिंग्या शरणार्थ‌ियों का निर्वासन न केवल अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन होगा, बल्‍कि उन्हें यातना या मौत के मुंह में भेजने जैसा होगा।"

    CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता में एक पीठ शुक्रवार को एक आवेदन पर सुनवाई करेगी, जिसमें जम्मू क्षेत्र में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने की मांग की गई है। आवेदन में कहा गया है कि हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को इस आधार पर म्यांमार निर्वास‌ित करने की धमकी दी गई है कि उन्होंने अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है। उन्हें वापस भेजना, उन्हें गंभीर खतरे में डाल देगा।

    पूरक हलफनामे में अतिरिक्त दस्तावेज भी पेश किए गए हैं।

    यह कहा गया है कि 23 जनवरी, 2020 को, ICJ ने म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ जातीय हिंसा के मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया ‌था। अदालत ने पाया था कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय को जनसंहार का सामना करना पड़ा है और म्यांमार सरकार को आदेश दिया था कि वे सैन्य बलों को रोहिंग्याओं का उत्पीड़न करने से रोकें। ICJ की 15 सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से यह आदेश जारी किया था।

    यह बताया गया है कि ICJ का निर्णय 24 अगस्त 2018 को म्यांमार पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की फैक्ट-फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसका निष्कर्ष था कि म्यांमार की सेना ने नागरिक संगठनों के साथ मिलकर जनसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध को अंजाम दिया है।

    यह प्रस्तुत किया गया है, "म्यांमार में एक फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट बाद, वहां मानवाधिकारों की स्थिति बहुत खराब हुई है, जिससे अन्य समुदायों के कई लोग म्यांमार से भाग गए हैं।"

    हाल ही में, मिजोरम के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्रीय गृहमंत्राल की ओर से म्यांमार की सीमा से लगे उत्तर-पूर्वी राज्यों के मुख्य सचिवों और असम राइफल्स और बीएसएफ को जारी किए गए निर्देशों पर दुख व्यक्त किया था। गृह मंत्रालय ने म्यांमार की ओर से आ रहे शरणार्थ‌ियों को रोकने और निर्वासन की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया था।

    हलफनामे में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की ओर से म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की जा चुकी है, जिसमें तख्तापलट के बाद जनता पर हो रहे अत्याचार का विवरण दिया गया है।

    "याचिकाकर्ता की दलील है कि भारत पर जनसंहार रोकने के लिए वचनबद्ध रहा है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने जनसंहार की रोकथाम और सजा पर समझौते को मंजूरी दी थी, जिसने जनसंहार को एक अंतरराष्ट्रीय अपराध के रूप में चिन्हित किया था, जिसे रोकने और दंडित करने की हस्ताक्षरकारी राष्ट्रों की जिम्मेदारी है।

    मामले में मूल याचिकाकर्ता मोहम्मद सलीमुल्ला ने जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों की रिहाई और उन्हें निर्वासित नहीं करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में शरणार्थियों की सुरक्षा जरूरतों का आंकलन करने और उन्हें रिफ्यूज़ी कार्ड देने के लिए यूएनएचसीआर को निर्देश देने की भी मांग की गई है।

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