Delhi Riots UAPA Case | सुप्रीम कोर्ट ने मीरान हैदर, शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम की ज़मानत याचिकाओं पर की सुनवाई

Shahadat

3 Nov 2025 8:18 PM IST

  • Delhi Riots UAPA Case | सुप्रीम कोर्ट ने मीरान हैदर, शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम की ज़मानत याचिकाओं पर की सुनवाई

    दिल्ली दंगों की व्यापक साजिश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर को मीरान हैदर, शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम खान द्वारा दायर याचिकाओं पर दलीलें सुनीं। इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक साजिश के आरोप हैं।

    जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 6 नवंबर को तय की।

    इससे पहले शुक्रवार को खंडपीठ ने उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा की दलीलों पर सुनवाई पूरी की थीं।

    ये याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2 सितंबर को दिए गए उस फैसले के खिलाफ दायर की गईं, जिसमें उनकी ज़मानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलिंदर कौर की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज FIR 59/2020 में यह फैसला सुनाया था।

    सोमवार की सुनवाई

    शुरुआत में उमर खालिद के वकील सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने संक्षिप्त दलील पेश की कि दंगों से संबंधित 116 मामलों में, जिनमें से 97 में अभियुक्तों को बरी कर दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि कई मामलों में ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के गढ़ने के संबंध में टिप्पणियां की हैं।

    जस्टिस कुमार ने पूछा कि यह वर्तमान ज़मानत सुनवाई से कैसे प्रासंगिक है?

    दिल्ली पुलिस की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि यह अदालत के मन को पूर्वाग्रह से ग्रस्त करने के लिए दिया जा रहा अप्रासंगिक तर्क है।

    सिब्बल ने कहा कि वह केवल एक तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं, जो जांच की प्रकृति की ओर इशारा करेगा।

    शिफा उर रहमान की ओर से सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने वियतनाम युद्ध विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए 'शिकागो 7 के मुकदमे' के साथ तुलना करते हुए शुरुआत की। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल जामिया मिल्लिया इस्लामिया (AAJMI) के पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष हैं। खुर्शीद ने तर्क दिया कि रहमान पर किसी भी तरह की हिंसा या भड़काऊ भाषण देने का कोई आरोप नहीं है। एक संरक्षित गवाह का बयान है कि 22 फ़रवरी को हुई बैठक में AAJMI के पदाधिकारी शामिल हुए थे लेकिन याचिकाकर्ता या उनके द्वारा कथित तौर पर दिए गए किसी बयान का कोई ख़ास ज़िक्र नहीं है।

    खुर्शीद ने कहा,

    "मैं मौजूद हो सकता हूं, लेकिन क्या मैंने कुछ कहा या कुछ योगदान दिया? इस समय यह बहुत महत्वपूर्ण है।"

    खुर्शीद ने यह भी बताया कि रहमान के ख़िलाफ़ कोई और मामला नहीं है, और जिन दो मौकों पर उन्हें अंतरिम ज़मानत दी गई, उन्होंने बिना किसी उल्लंघन के विधिवत आत्मसमर्पण कर दिया।

    उन्होंने कहा:

    "वास्तव में कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर सकता कि अगर कोई ऐसा क़ानून है, जिससे आप असहमत हैं तो आपको विरोध करने का अधिकार है। शांतिपूर्वक, बेशक, लेकिन आपको विरोध करने का अधिकार है। लेकिन यह रेखा कहां खींची जाए? यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर कोई शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहा है, उसे उकसाया जाता है और फिर एक जघन्य अपराध में फंसा दिया जाता है। मैं AAJMI के प्रमुख शिफ़ा उर रहमान की ओर से जो दलील दे रहा हूं, उसका नाम कहीं भी आ सकता है। हालांकि, किसी ने कहीं भी यह नहीं कहा कि उन्होंने हिंसा में लिप्त है या ऐसा कुछ किया जो स्पष्ट रूप से गैरकानूनी है।"

    खुर्शीद ने कहा कि फरवरी, 2020 में हुए दंगों से पहले दिसंबर 2019 में जामिया में एक घटना हुई। इस घटना में पुलिस बिना किसी अनुमति के यूनिवर्सिटी में घुस गई और तोड़फोड़ की, लेकिन तब भी याचिकाकर्ता किसी भी हिंसात्मक घटना में शामिल नहीं है। उन्होंने अन्य सह-आरोपियों को किए गए कॉल का भी हवाला दिया और स्पष्ट किया कि ये कॉल जामिया में अशांति के दौरान किए गए।

    उन्होंने मुकदमे में देरी के किसी भी आरोप से भी इनकार किया। शिफा 5 साल, 6 महीने जेल में बिता चुकी है।

    मीरान हैदर की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ अग्रवाल ने भी सह-आरोपी नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने वाले आदेश का हवाला दिया और आरोपों में समानता का दावा करते हुए कहा कि आरोप समान हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हैदर का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। वह केवल 34 वर्ष का है, जो जेल में रहते हुए भी पीएचडी कर रहा है। अभियोजन पक्ष ने लगभग 960 गवाहों और 1214 से ज़्यादा दस्तावेज़ों का हवाला दिया, इसलिए मुक़दमे में समय लगना स्वाभाविक है। उन्होंने बताया कि सितंबर, 2024 तक दिल्ली पुलिस पूरक आरोपपत्र दाखिल करती रही। इसलिए मुक़दमे में देरी के लिए स्पष्टीकरण देने की ज़िम्मेदारी उन पर ही है।

    अग्रवाल ने यह भी पूछा कि क्या अदालत को इस समय मामले की योग्यता की जांच करनी चाहिए, जब याचिकाकर्ता लंबे समय से कारावास में है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अभियोजन पक्ष मुकदमे में देरी का आरोप लगा सकता है, जबकि वह खुद पूरक आरोपपत्र दाखिल कर रहा है और अभी तक जांच पूरी नहीं कर पाया है।

    उन्होंने कहा,

    "अगर मैं 2019, 2020 या 2021 में यहां होता तो मैं कह सकता था कि यह बहुत जल्दी है और उन्हें कुछ समय दिया जाना चाहिए। हालांकि, साढ़े पांच साल बाद 150 गवाहों के लिए इतना समय एक दिन ज़्यादा है।

    आखिरी आरोपपत्र जून 2023 को दायर किया गया और उस आरोपपत्र में भी यही कहा गया कि मेरी जांच अभी जारी है। जब मुकदमे की अगली प्रगति की बात आएगी, जो यह तय करने का मुद्दा होगा कि आरोप तय किए जाएंगे या नहीं, तो यह पूर्वकल्पित है कि आपकी जांच पूरी हो चुकी है। ऐसा नहीं हो सकता कि अभियुक्तों से मामले में अपनी कमियां बताने को कहा जाए। हालांकि, आपकी जांच जारी रहे ताकि यह चलती रहे। 17 जून को अभियोजन पक्ष द्वारा लिखित अभिलेख पर यह स्पष्टता थी कि बेशक मैंने चार-पांच आरोपपत्र दायर किए हैं, मैं अभी भी जांच कर रहा हूं, जबकि मैं अप्रैल, 2020 से जून, 2023 तक जेल में हूं, कृपया अपनी जांच करें। उपरोक्त के दौरान, कुछ अभियुक्तों ने अभियोजन पक्ष से यह स्पष्टता मांगी कि उनके विरुद्ध जांच पूरी हुई है या नहीं। 4 सितंबर, 2024 को ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी द्वारा 28 अगस्त, 2024 को दायर लिखित दलीलों से यह नोट किया कि सभी आरोपपत्रों की जांच.....यह होगा मेरा कहना है कि इस मामले में एक पंक्ति ही काफी है। हमारे कहने पर हुई देरी के सवाल पर अभियोजन पक्ष द्वारा यह ज़िम्मेदारी लेने से पहले विचार नहीं किया जा सकता कि जांच पूरी हो चुकी है। वह तारीख 4 सितंबर, 2024 है... आरोपों पर बहस 5 सितंबर को शुरू हुई और अभी भी जारी है और 12 लोगों पर आरोप लगाए गए हैं।"

    अग्रवाल ने इस बात से भी इनकार किया कि मीरान ने शरजील इमाम के साथ साज़िश रची थी। उन्होंने कहा कि यह तब की बात है, जब मीरान ने सार्वजनिक रूप से एक ट्वीट किया था, जिसमें कहा गया था कि शरजील को किसी भी विरोध स्थल पर आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने उस जवाबी हलफनामे के आरोपों का भी खंडन किया कि 13 दिसंबर को वह एक गुप्त बैठक में शामिल हुए, क्योंकि वह अपनी माँ के जनाज़े में शामिल होने के लिए बिहार में थे।

    मीरन को एक बार अंतरिम ज़मानत मिल चुकी है।

    मोहम्मद सलीम की ओर से पेश हुए वकील गौतम खज़ांची ने दलील दी कि उनके मुवक्किल पर किसी भी व्हाट्सएप ग्रुप, संगठन का हिस्सा होने या कोई भाषण देने का कोई आरोप नहीं है, भड़काऊ भाषण तो दूर की बात है। उन्हें बताया गया कि सलीम को 6 बार ज़मानत मिल चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि उनके खिलाफ मुख्य आरोप यह है कि वे चांदबाग विरोध प्रदर्शन के मुख्य आयोजक थे, लेकिन गिरफ्तारी के कुछ महीने बाद दर्ज कराए गए बयानों में उनकी उपस्थिति कथित तौर पर स्थापित हो गई।

    Case Details:

    1. UMAR KHALID v. STATE OF NCT OF DELHI|SLP(Crl) No. 14165/2025

    2. GULFISHA FATIMA v STATE (GOVT. OF NCT OF DELHI )|SLP(Crl) No. 13988/2025

    3. SHARJEEL IMAM v THE STATE NCT OF DELHI|SLP(Crl) No. 14030/2025

    4. MEERAN HAIDER v. THE STATE NCT OF DELHI | SLP(Crl) No./14132/2025

    5. SHIFA UR REHMAN v STATE OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY|SLP(Crl) No. 14859/2025

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