Delhi Riots UAPA Case | '5 साल जेल में, हिंसा का कोई सबूत नहीं': उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई ज़मानत की गुहार

Shahadat

31 Oct 2025 3:25 PM IST

  • Delhi Riots UAPA Case | 5 साल जेल में, हिंसा का कोई सबूत नहीं: उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई ज़मानत की गुहार

    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों की व्यापक साजिश के मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और गुलफिशा फातिमा द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक साजिश का मामला दर्ज किया गया।

    जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने सह-आरोपी मीरान हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफा उर रहमान के साथ-साथ दिल्ली पुलिस की दलीलें सुनने के लिए मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित की।

    ये याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2 सितंबर को दिए गए उस फैसले के खिलाफ दायर की गईं, जिसमें उनकी ज़मानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलिंदर कौर की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ द्वारा दर्ज FIR 59/2020 में यह फैसला सुनाया था।

    याचिकाकर्ताओं की दलीलें

    सिर्फ़ संगठित विरोध प्रदर्शन, हिंसा का कोई सबूत नहीं: गुलफ़िशा फ़ातिमा

    सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी (गुलफ़िशा फ़ातिमा की ओर से) ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह 11 अप्रैल, 2020 से पांच साल और पांच महीने से ज़्यादा समय से हिरासत में हैं। पांच साल पहले आरोपपत्र भी दायर किया गया। हालांकि, अभी तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। फ़ातिमा इस मामले में अब हिरासत में मौजूद एकमात्र महिला हैं, जबकि अन्य महिलाओं को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है।

    सिंघवी ने आरोप तय होने की ओर इशारा करते हुए पूछा,

    "अगर आपको 6-7 साल बाद ज़मानत मिलती है तो इसका क्या मतलब है?"

    एक रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार भी 800 गवाह हैं।

    सिंघवी ने कहा,

    "इसमें गुण-दोष मायने नहीं रखते, यह आपराधिक न्याय प्रणाली की विकृति है। आज़ादी की अवधारणा यही है कि आप मुझे बिना मुक़दमे के जेल में न रखें।"

    उन्होंने नजीब मामले में दिए गए फ़ैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि लंबे समय तक हिरासत में रहने पर UAPA की कड़ी शर्तों के बावजूद ज़मानत दी जा सकती है। जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि UAPA मामले में भी "जमानत नियम है"। शेख जावेद इकबाल मामले में भी इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए दिए गए फैसले का हवाला दिया गया।

    सिंघवी ने कहा कि इस मामले की एक और खास बात यह है कि हाईकोर्ट ने जमानत याचिका को तीन साल से ज़्यादा समय तक लंबित रखा। सिंघवी ने कहा कि फातिमा सिर्फ़ एक युवा स्टूडेंट है। उन्होंने कहा कि मामले की अन्य दो महिला आरोपियों, देवांगरा कलिता और नताशा नरवाल को मामले में गुण-दोष के आधार पर ज़मानत दी गई। एकमात्र आरोप यह है कि फातिमा ने पिंजरा तोड़ और अन्य व्हाट्सएप ग्रुपों के ज़रिए सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों के लिए महिलाओं को संगठित किया।

    उन्होंने कहा,

    "मैंने विरोध स्थल बनाया। मैंने जहां भी विरोध प्रदर्शन आयोजित किया, वहां हिंसा की कोई तस्वीर, वीडियो या सबूत नहीं है। मैंने सीलमपुर में एक बैठक में भाग लिया था। वहां बैठक में शामिल हुए अन्य लोगों को ज़मानत मिल गई। क्या मैंने बम फेंका?"

    सिंघवी ने तर्क दिया कि फातिमा से हिंसा का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्य जुड़ा नहीं है। सिर्फ़ एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाना किसी आपराधिक गतिविधि का सबूत नहीं है।

    उन्होंने दलील दी,

    "ज़्यादा से ज़्यादा मैंने सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। कुछ सबूत तो होने ही चाहिए, कुछ बरामदगी भी होनी चाहिए। इस मामले में कुछ भी नहीं है।"

    सिंघवी ने दिल्ली पुलिस के इस आरोप पर भी सवाल उठाया कि याचिकाकर्ता मुकदमे में देरी कर रही है। साथ ही बताया कि वह आरोपों पर अपनी दलीलें पहले ही पूरी कर चुकी है।

    सिर्फ़ एक भाषण का हवाला दिया गया, जिसमें गांधीवादी सिद्धांतों का ज़िक्र किया गया, दंगों के दौरान दिल्ली में नहीं था: उमर खालिद

    उमर खालिद की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि 55 तारीख़ों पर ट्रायल कोर्ट के पीठासीन जज छुट्टी पर थे। 26 तारीख़ों पर समय की कमी के कारण मामले की सुनवाई नहीं हो सकी। 59 तारीख़ों पर विशेष लोक अभियोजक की अनुपलब्धता के कारण मामले की सुनवाई नहीं हो सकी। 4 तारीख़ों पर वकीलों की हड़ताल के कारण कोई सुनवाई नहीं हुई। साज़िश के आरोप के बारे में सिब्बल ने कहा कि दंगों से संबंधित 751 FIR में से खालिद का नाम सिर्फ़ एक में है। दंगे होने के समय वह दिल्ली में मौजूद भी नहीं है। हथियारों या आपत्तिजनक सामग्री की कोई बरामदगी नहीं हुई। उमर खालिद के खिलाफ किसी भी हिंसा का कोई भौतिक सबूत नहीं है। खालिद पर हिंसा के लिए धन जुटाने या हिंसा की अपील करने का कोई आरोप नहीं है। खालिद के खिलाफ कथित एकमात्र प्रत्यक्ष कृत्य 17 फरवरी को महाराष्ट्र के अमरावती में दिया गया उनका भाषण है। इस भाषण में वास्तव में गांधीवादी अहिंसा के सिद्धांतों का आह्वान किया गया और इसे किसी भी तरह से भड़काऊ नहीं माना जा सकता।

    इसके बाद सिब्बल ने UAPA के तहत "आतंकवादी कृत्य" की परिभाषा का हवाला दिया और तर्क दिया कि इस परिभाषा में वर्णित कोई भी विशिष्ट कृत्य उमर खालिद पर लागू नहीं होता। सिब्बल ने सह-आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को गुण-दोष के आधार पर ज़मानत देने के आदेश का भी हवाला दिया।

    सिब्बल ने कहा,

    "वे तीनों दंगों के दिन दिल्ली में मौजूद थे। उन्हें ज़मानत दी गई है। मैं उन तारीखों पर दिल्ली में मौजूद भी नहीं था। मुझे ज़मानत देने से इनकार कर दिया गया! सबूत और गवाह एक जैसे हैं।"

    सिंघवी द्वारा उद्धृत फैसलों के अलावा, सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में पारित आदेश का हवाला दिया, जिसमें बेंगलुरु दंगों के मामले में UAPA के आरोपी को मुकदमे में देरी के आधार पर ज़मानत दी गई।

    दंगे होने के समय वह पहले से ही हिरासत में था, दो महीने पुराने भाषणों को भड़काऊ बताया जा रहा है: शरजील इमाम

    शरजील इमाम की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि पिछले साल तक पुलिस सितंबर, 2024 तक पूरक आरोपपत्र दाखिल करती रही, जिसका मतलब है कि जांच कम से कम चार साल तक चली। इसका मतलब है कि आरोपियों की ओर से कम से कम 2024 तक कोई देरी नहीं हुई। दवे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शरजील इमाम 25 जनवरी, 2020 से अन्य मामलों में हिरासत में है।

    उन्होंने पूछा कि जब वह एक महीने पहले ही दिल्ली दंगों के मामले में हिरासत में था तो उसे साजिश के लिए कैसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। इमाम दंगों के किसी भी अन्य मामले में आरोपी नहीं है। कथित भड़काऊ भाषणों के अन्य मामलों में उसे ज़मानत मिल चुकी है। वह सिर्फ़ इसी मामले की वजह से जेल में है।

    जस्टिस कुमार ने पूछा,

    "भाषण की प्रकृति क्या है?"

    दवे ने कहा,

    "मैंने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में चक्का जाम का आह्वान किया था। मेरे भाषणों को दंगों से जोड़ना थोड़ा ज़्यादा होगा। मेरे भाषण दिसंबर, 2019 में दंगों से दो महीने पहले दिए गए थे। और मुझे जनवरी, 2020 में दिल्ली दंगों से एक महीने पहले, गिरफ़्तार करके हिरासत में रखा गया।"

    दवे ने खंडपीठ को बताया कि इमाम बिहार का स्थायी निवासी है। उन्होंने IIT से बी.टेक और एम.टेक की डिग्री हासिल की है और गिरफ़्तारी के समय वह JNU में रिसर्च स्कॉलर था।

    Case Details:

    1. UMAR KHALID v. STATE OF NCT OF DELHI|SLP(Crl) No. 14165/2025

    2. GULFISHA FATIMA v STATE (GOVT. OF NCT OF DELHI )|SLP(Crl) No. 13988/2025

    3. SHARJEEL IMAM v THE STATE NCT OF DELHI|SLP(Crl) No. 14030/2025

    4. MEERAN HAIDER v. THE STATE NCT OF DELHI | SLP(Crl) No./14132/2025

    5. SHIFA UR REHMAN v STATE OF NATIONAL CAPITAL TERRITORY|SLP(Crl) No. 14859/2025

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