हर संकट में राष्ट्र को एकजुट रखने का श्रेय संविधान को जाता है: सीजेआई बीआर गवई
Shahadat
31 May 2025 4:10 PM IST

प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट्स चैंबर ब्लॉक और मल्टीलेवल पार्किंग के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा कि राष्ट्र हर संकट में एकजुट रहा है और इसका श्रेय भारत के संविधान को जाता है।
सीजेआई ने इस संदर्भ में डॉ. बीआर अंबेडकर की उस आलोचना का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि संविधान या तो बहुत संघीय है या बहुत एकात्मक।
सीजेआई ने अंबेडकर के शब्दों को याद किया:
"संविधान न तो पूरी तरह संघीय है और न ही पूरी तरह एकात्मक। लेकिन एक बात मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि यह एक ऐसा संविधान है, जो शांति और युद्ध दोनों समय में भारत को एकजुट और मजबूत बनाए रखेगा।"
इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री (प्रभारी) अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट के जज, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस जेके माहेश्वरी और अन्य सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
किसी भी पड़ोसी देश का नाम लिए बिना सीजेआई गवई ने कहा कि जहां देश अस्थिरता और उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं, वहीं आजादी के 75 साल बाद भी भारत लगातार प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
सीजेआई ने कहा,
"आज हम देखते हैं कि हमारे आजू बाजू के जो देश हैं, नाम नहीं लेना चाहूंगा...उनमें क्या समानता है। भारत आज 75 वर्ष की प्रगति की ओर जा रहा है। जब-जब देश की ओर संकट आया, देश एकजुट रहा, उसका श्रेय भारतीय संविधान को है।"
इसके अलावा, भारतीय संविधान के इतिहास में सबसे बड़ा मील का पत्थर बताते हुए केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 में सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध फैसले का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा कि इस देश के हर नागरिक तक पहुंचना न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि 1973 से पहले सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि जब भी मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संघर्ष होगा तो मौलिक अधिकार प्रबल होंगे और निर्देशक सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों का स्थान लेना होगा।
हालांकि, उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में - जिसमें मूल संरचना सिद्धांत दिया गया था - 6 जजों ने एक दृष्टिकोण लिया, 6 ने दूसरा, और यह जस्टिस एचआर खन्ना थे, जिन्होंने कहा कि हालांकि संसद के पास मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। अब उस दृष्टिकोण को 13 जजों का दृष्टिकोण माना जाता है।
उन्होंने कहा कि इस फैसले ने मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के बीच संघर्ष को समाप्त कर दिया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों ने कहा कि वे दोनों संविधान की आत्मा हैं।
“वे संविधान के स्वर्णिम रथ के 2 पहियों की तरह हैं, आप एक पहिए पर चलते हैं और दूसरे पहिये की प्रभावशीलता रुक जाती है और पूरा रथ रुक जाता है।” भारतीय संविधान के अंतिम प्रारूपण के समय डॉ. बीआर अंबेडकर के भाषण का जिक्र करते हुए सीजेआई गवई ने कहा, देश में समानता लाने के लिए “एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य” पर जोर दिया गया। लेकिन डॉ. अंबेडकर देश में सामाजिक और आर्थिक अन्याय और सामाजिक और राजनीतिक असमानता को लेकर चिंतित थे।
बाबा साहब ने कहा था,
“सामाजिक स्तर पर देश चार हिस्सों में बंटा हुआ है और ये हिस्से इतने तंग हैं कि एक से दूसरे हिस्से में जाना संभव नहीं है। और आर्थिक स्तर पर देश की पूरी संपत्ति चंद हाथों में सिमटी हुई है, जिसमें लाखों लोग गरीबी में जी रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस देश का नागरिक अपने साथ हो रहे अन्याय के लिए न्याय की गुहार लगाता है और न्याय व्यवस्था भी उसका ख्याल रखती है। उन्होंने कहा कि राज्य के हर अंग ने सामाजिक समानता लाने में अपना योगदान दिया है।
सीजेआई ने कहा,
"हमने पिछले 75 साल में देखा कि हमारी विधिपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ने भारत में राष्ट्रीय सामंत के साथ आर्थिक और सामाजिक सामंत के लिए योगदान दिया है। काफी ऐसे कानून थे कि जमींदार की जमीन भूमिहीनों को दे दी गई। श्रमिक वर्ग के हित में कार्य किए गए।"
सीजेआई गवई ने कहा कि भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने पर उन्हें गर्व है और सीजेआई के रूप में शपथ लेने के बाद यह उनका पहला आधिकारिक कार्यक्रम है।
जस्टिस विक्रम नाथ द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट बार पर गर्व किए जाने का उल्लेख करते हुए सीजेआई ने कहा कि प्रत्येक जज को उस बार पर गर्व होता है, जहां से वह आते हैं और उन्हें नागपुर बार पर गर्व है। उन्होंने इसे देश के सर्वश्रेष्ठ बार में से एक बताया।
उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के बार की भी सराहना की और मोती लाल नेहरू और तेज बहादुर सप्रू जैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट से आए जाने-माने वकीलों का नाम लिया। उन्होंने प्रयागराज के इतिहास की भी प्रशंसा की, जो साहित्यिक हस्तियों और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जाना जाता है।
सीजेआई ने कहा कि देश भर के बार एसोसिएशन इलाहाबाद हाईकोर्ट बार से ईर्ष्या करेंगे, क्योंकि उनके पास ऐसा बुनियादी ढांचा है, जो उन्होंने दुनिया भर में नहीं देखा है।
क्रेच, शौचालय और अन्य सुविधाओं का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह दर्शाता है कि यह काम सिर्फ वकीलों और जजों के लिए नहीं बल्कि देश के उन नागरिकों के लिए भी किया जा रहा है, जो कानूनी व्यवस्था से जुड़ रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट जज के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जब इस परियोजना की परिकल्पना की गई थी, उस समय को याद करते हुए अब सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, "इस भवन का लाभ केवल इस न्यायालय के अधिवक्ताओं के लिए है।"
जस्टिस नाथ ने कहा,
"इलाहाबाद बार बहुत बढ़िया और बहुत शानदार हैं.. यहां के जज भी बहुत बढ़िया और बहुत शानदार हैं। ये सुप्रीम कोर्ट समझ नहीं पाता कि यहां काम कैसे होता है। कभी-कभी कुछ लिख देते हैं बिना जाने। मैं हमेशा जजों और वकीलों से कहता हूं कि आप अपना काम करते रहिये, इलाहाबाद हाईकोर्ट जैसा चलता था वैसा ही चलता रहेगा।”
एक वकील के रूप में अपने समय और वकील के दिनों के संघर्षों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि नए वातानुकूलित ब्लॉक के आने से उन्हें लगता है कि वह वापस आकर प्रैक्टिस करना चाहते हैं।
वकीलों के चैंबर ब्लॉक के निर्माण की प्रशंसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट जज और सीजेआई बनने की दौड़ में अगले नंबर पर आने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि के समय में वकीलों के लिए निजी और गोपनीय क्षेत्र होना जरूरी है, जहां वे मुवक्किल से बात कर सकें और अपना केस तैयार कर सकें, जिससे न्यायालयों को बेहतर तरीके से मदद मिल सके।
जस्टिस कांत ने सीएम, चीफ जस्टिस और इलाहाबाद हाईकोर्ट के अन्य जजों से जिला न्यायपालिका को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने पर विचार करने का अनुरोध किया।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस आयोजन को वकीलों के लिए पर्याप्त सुविधाएं सुनिश्चित करने और न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सुशासन की पहली शर्त 'कानून का शासन' है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि हाईकोर्ट के विस्तार के लिए जितनी भी राशि की आवश्यकता होगी, वह जल्द ही उपलब्ध करा दी जाएगी।
एक दिलचस्प टिप्पणी में उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने इस साल की शुरुआत में महाकुंभ के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि अगर इसने सरकार के किसी भी फैसले पर रोक लगा दी होती, तो यह आयोजन संभव नहीं हो पाता।

