'रितु छाबरिया ' फैसले पर भरोसा किए बिना स्वतंत्र रूप से डिफ़ॉल्ट जमानत आवेदनों पर विचार कर सकती हैं अदालतें : सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

13 May 2023 5:18 AM GMT

  • रितु छाबरिया  फैसले पर भरोसा किए बिना स्वतंत्र रूप से डिफ़ॉल्ट जमानत आवेदनों पर विचार कर सकती हैं अदालतें : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि उसका अंतरिम आदेश जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि रितु छाबरिया बनाम भारत संघ और अन्य के आधार पर किसी भी अदालत के समक्ष दायर डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करने वाले किसी भी आवेदन की सुनवाई को टालना चाहिए, किसी भी ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट को रितु छाबरिया के फैसले पर भरोसा किए बिना और स्वतंत्र रूप से डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए आवेदनों पर विचार करने से नहीं रोका जाएगा।

    रितु छाबड़िया मामले में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि अधूरी जांच के आधार पर दायर की गई चार्जशीट, हालांकि समय के भीतर दायर की गई हो, एक अभियुक्त के डिफ़ॉल्ट जमानत मांगने के अधिकार को पराजित नहीं करेगी। प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें रितु छाबड़िया के फैसले के आधार पर एक आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत दी गई थी। केंद्र ने रितु छाबड़िया के फैसले को वापस लेने के लिए एक अर्जी भी दायर की है।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की तीन न्यायाधीशों की पीठ इन आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि अंतरिम आदेश के कारण उनके अधिकारों को कम कर दिया गया था, जिसके बाद पीठ ने स्पष्टीकरण जारी किया।

    सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने स्पष्ट किया-

    "हम स्पष्ट करते हैं कि 1 मई, 2023 को इस अदालत का अंतरिम आदेश, किसी भी ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट को 26 अप्रैल, 2023 को रितु छाबरिया के फैसले पर भरोसा न करते हुए डिफ़ॉल्ट जमानत देने से नहीं रोकेगा।"

    प्रतिवादी की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने केंद्र के वापस लेने के आवेदन की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया और कहा कि अगर वे इससे असंतुष्ट हैं तो उन्हें फैसले के खिलाफ पुनर्विचार दायर करना चाहिए। रोहतगी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में कहा था कि फैसला वापस लेने की अर्जी के जरिए फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है।

    इस पर प्रतिक्रिया देते हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र एक पुनर्विचार याचिका दायर करने की प्रक्रिया में है।

    इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि रितु छाबरिया बनाम भारत संघ और अन्य के आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करने वाली किसी भी अदालत के समक्ष दायर कोई भी आवेदन 12 मई, 2023 तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए क्योंकि अदालत छाबड़िया फैसले को वापस लेने की मांग करने वाले केंद्र के आवेदन पर विचार करने के लिए 4 मई को तीन-न्यायाधीशों की पीठ गठित करने पर सहमत हुई थी। चूंकि इस मामले की सुनवाई 4 मई को नहीं हो सकी, इसलिए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने अपने अंतरिम आदेश को 12 मई, 2023 तक बढ़ा दिया था

    रितु छाबरिया मामले में, जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि जांच पूरी किए बिना जांच एजेंसी द्वारा दायर एक अधूरी चार्जशीट अभियुक्त के डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार को पराजित नहीं करेगी। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने उक्त फैसले के कारण केंद्रीय एजेंसियों के सामने आने वाली कठिनाइयों पर प्रकाश डाला था। उन्होंने तर्क दिया कि छाबरिया एक पूर्ण प्रस्ताव देता है कि यदि जांच पूरी किए बिना आरोप पत्र दायर किया गया है, तो आरोपी डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार होगा। यह कहते हुए कि सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठों के विभिन्न निर्णयों ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह एक जांच एजेंसी का कर्तव्य है कि वह 90 दिनों या 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करे, जैसा भी मामला हो, एसजी मेहता ने तर्क दिया कि सभी जांच 60 या 90 दिनों में पूरी नहीं की जा सकती हैं। एसजी ने प्रस्तुत किया कि चार्जशीट दायर होने के बाद एजेंसियों को धारा 173 (8) सीआरपीसी के तहत आगे की जांच करने का अधिकार है।

    एसजी ने अनुरोध किया,

    "देश के विभिन्न न्यायालयों के समक्ष इस निर्णय के आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए पहले ही आवेदन आ चुके हैं। आप तीन न्यायाधीशों की पीठ में इस पर पुनर्विचार कर सकते हैं। क्या आप इस बीच कहेंगे कि निर्णय पर भरोसा नहीं किया जा सकता है?"

    इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए, सीजेआई ने कहा था कि न्यायालय ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकता है कि उसके निर्णय पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, आदेश में बेंच ने स्पष्ट किया कि उक्त फैसले के आधार पर डिफॉल्ट जमानत की अर्जियों को टाला जाना चाहिए। जबकि प्रारंभिक अंतरिम आदेश में आवेदनों को 4 मई से आगे टालने का निर्देश दिया गया था, बाद में इसे 12 मई तक बढ़ा दिया गया था।

    इस सप्ताह की शुरुआत में, सेंटर फॉर ज्यूडिश्यल अकाउंटेबलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने सुप्रीम कोर्ट से रितु छाबरिया बनाम भारत संघ के निष्कर्षों के आधार पर पूरे देश में अभियुक्तों को डिफ़ॉल्ट जमानत देने के अपने आदेश को वापस लेने का आग्रह किया था।

    केस : प्रवर्तन निदेशालय बनाम मनप्रीत सिंह तलवार | अपील के लिए विशेष अनुमति (क्रि.) संख्या 5724/2023

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