सीजेआई ने विवाद समाधान के लिए मध्यस्थता को अनिवार्य पहला कदम बनाने वाले कानून का आह्वान किया

LiveLaw News Network

17 July 2021 12:45 PM GMT

  • सीजेआई ने विवाद समाधान के लिए मध्यस्थता को अनिवार्य पहला कदम बनाने वाले  कानून का आह्वान किया

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को विवाद समाधान प्रक्रिया में मध्यस्थता को अनिवार्य पहला कदम बनाने के लिए एक कानून की आवश्यकता को रेखांकित किया।

    उन्होंने कहा, ''प्रत्येक स्वीकार्य विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता को एक अनिवार्य पहले कदम के रूप में निर्धारित करने से मध्यस्थता को बढ़ावा मिलेगा और इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय होगा। शायद, इस रिक्तता को भरने के लिए एक सर्वव्यापक कानून की आवश्यकता है।''

    सीजेआई भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन ''मध्यस्थता को मुख्यधारा बनानाः भारत और सिंगापुर के विचार'' में अपना मुख्य भाषण दे रहे थे। मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि भारत सहित कई एशियाई देशों में विवादों के सहयोगात्मक और सौहार्दपूर्ण समाधान की एक लंबी और समृद्ध परंपरा रही है। भारतीय महाकाव्य महाभारत का उल्लेख करते हुए, जिसमें मध्यस्थता के शुरुआती प्रयास की परिकल्पना की गई है, सीजेआई ने कहा,

    ''महान भारतीय महाकाव्य, महाभारत, वास्तव में एक संघर्ष समाधान उपकरण के रूप में मध्यस्थता के प्रारंभिक प्रयास का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां भगवान कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच विवाद में मध्यस्थता करने का प्रयास किया था। यह याद रखना सार्थक हो सकता है कि मध्यस्थता की विफलता ने विनाशकारी परिणाम दिए।''

    इसके अलावा सीजेआई ने यह भी कहा कि एक अवधारणा के रूप में मध्यस्थता सदियों से भारतीय लोकाचार में गहराई से अंतर्निहित है। भारत में समुदाय के मुखियाओं या बुजुर्गों द्वारा विवादों को सुलझाने का इतिहास रहा है। इसी तरह, व्यापार से संबंधित विवादों को व्यापारियों द्वारा या तो सीधे बातचीत से या व्यापारिक निकायों के माध्यम से हल किया जाता था।

    सीजेआई रमना ने अक्सर उद्धृत उन आंकड़ों पर भी कड़ी आपत्ति जताई,जिनमें बताया जाता है कि भारतीय न्यायालयों में ''लंबित मामलों'' की संख्या 45 मिलियन तक पहुंच गई है, जिसे भारतीय न्यायपालिका की लंबित केसों से निपटने में असमर्थता के रूप में देखा जाता है। सीजेआई ने इसे ''ओवरस्टेटमेंट और एक अन्चैरिटेबल विश्लेषण'' करार देते हुए समझाया कि,

    ''लंबित शब्द का उपयोग उन सभी मामलों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जिनका अभी तक निपटारा नहीं किया गया है, बिना इस बात को संदर्भित किए ही के मामले ने कितना समय न्यायिक प्रणाली में बिताया है। इसका मतलब यह होगा कि कल दायर किया गया एक मामला भी लंबित मामलों के आंकड़ों में जोड़ दिया जाता है। इसलिए, यह एक उपयोगी संकेतक नहीं है कि कोई सिस्टम कितना अच्छा या खराब प्रदर्शन कर रहा है।''

    उन्होंने कहा कि,''भारतीय न्यायिक प्रणाली में मामलों की वास्तवकि संख्या को इस संदर्भ में देखा जा सकता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक गणराज्य है। लोग संवैधानिक परियोजना में विश्वास रखते हैं, जिसका न्यायपालिका एक अभिन्न अंग है। भारत में न्यायाधीश, विशेष रूप से संवैधानिक न्यायालयों में, अक्सर अपने न्यायिक और प्रशासनिक मामलों को निपटाने के लिए आधी रात को तेल जलाते हैं यानी आधी रात को भी काम करते हैं।''

    समाज के वंचित वर्गों की समस्याओं को दूर करने और एडीआर तंत्र को प्रोत्साहित करने में कानूनी सेवा प्राधिकरणों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, सीजेआई ने कहा,

    ''कानूनी जागरूकता बढ़ाने के अलावा, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण एडीआर के माध्यम से विवादों के निपटारे को भी प्रोत्साहित करता है। ऐसा ही एक तंत्र लोक अदालत (शाब्दिक रूप से, पीपुल्स कोर्ट) है।''

    इसके अलावा सीजेआई रमना ने उल्लेख किया कि भारत में कोर्ट एनेक्स्ड मध्यस्थता की शुरुआत सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 को संवैधानिक चुनौती देने के साथ शुरू हुई, जिसमें भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता नियमों का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए एक कमेटी नियुक्त की थी। बाद में इन नियमों को मंजूरी दी गई और सभी उच्च न्यायालयों को नियम बनाने का निर्देश दिया गया।

    मध्यस्थता के बदलते परिदृश्य पर विचार करते हुए, सीजेआई ने कहा कि पहले मध्यस्थ को पार्टियों के बीच संचार को बेहतर बनाने में केवल एक निष्क्रिय भूमिका निभाने का कर्तव्य सौंपा गया था। हालांकि, अधिक जटिल और परिष्कृत समस्याओं को अब मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जा रहा है, इसलिए मध्यस्थ को अब निपटान तक पहुँचने के लिए पार्टियों को अधिक सक्रिय सहायता प्रदान करने के लिए कहा जा रहा है।

    सीजेआई ने कहा, ''जब भूमिका सलाहकार बन जाती है, तो मध्यस्थ के तटस्थता खोने, प्रलोभनों और बाहरी विचारों के लिए द्वार खोलने का एक अंतर्निहित जोखिम होता है।''

    प्रचलित सामाजिक-आर्थिक मतभेदों के आलोक में बहुत सारे मध्यस्थों के सामने आने वाली एक महत्वपूर्ण दुविधा पर प्रकाश डालते हुए, सीजेआई ने कहा,

    ''क्या होता है जब एक पक्ष दूसरे की तुलना में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में होता है? एक मध्यस्थ का क्या कर्तव्य है यदि समझौता कमजोर पार्टी के साथ अन्यायपूर्ण है? क्या मध्यस्थ को इस तरह की बातचीत के दौरान मूक दर्शक होना चाहिए? क्या मध्यस्थ का संबंध केवल पार्टियों को एक समझौते पर पहुंचने में सक्षम बनाने से है और समझौते की शर्तों से संबंधित नहीं है? ये केवल कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर, विशेष रूप से भारत जैसे विविध सामाजिक ताने-बाने वाले देश में जरूर विचार किया जाना चाहिए।''

    हालांकि, सीजेआई ने भारतीय संदर्भ में मध्यस्थता को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि राष्ट्र के विविध सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए मध्यस्थता को 'सामाजिक न्याय के उपकरण' के रूप में कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

    सीजेआई ने कहा कि,''भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, कई पहचानों, धर्मों और संस्कृतियों का घर है जो विविधता के माध्यम से इसकी एकता में योगदान करते हैं। यह वह जगह है जहां न्याय और निष्पक्षता की सुनिश्चित भावना के साथ कानून का शासन चलता है। मध्यस्थता को, सबसे सस्ता और बड़े पैमाने पर जनता के लिए उपलब्ध सरलतम विकल्प होने के कारण, भारतीय संदर्भ में सामाजिक न्याय के एक उपकरण के रूप में वर्णित किया जा सकता है।''

    सीजेआई ने मध्यस्थों में नैतिकता और निस्संदेह ईमानदारी और तटस्थता बनाने की आवश्यकता के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि,

    ''... मध्यस्थता की प्रक्रिया में मध्यस्थ की अधिक सक्रिय भागीदारी उन पार्टियों के लिए दरवाजे खोल सकती है जो उन्हें प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए एक ऐसे वातावरण के निर्माण की आवश्यकता है जो एक बेईमान पार्टी द्वारा किए जा रहे ऐसे किसी भी प्रयास को रोकता हो। ऐसे में यह आवश्यक है कि मध्यस्थ अच्छे चरित्र और नैतिक मूल्यों वाले हों। इसके लिए, यह आवश्यक है कि मध्यस्थों को नियंत्रित करने वाले नियमों और विनियमों को अपडेट किया जाए और उनको पारदर्शिता और तटस्थता सुनिश्चित करने के लिए लागू किया जाए।''

    सीजेआई ने अपना भाषण समाप्त करते हुए भारत में राज्यों को मजबूत एडीआर अनुकूल सुविधाएं स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि हाल ही में, तेलंगाना राज्य एक अत्याधुनिक एडीआर सुविधा स्थापित करने के लिए आगे आया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है और मुझे उम्मीद है कि अन्य राज्य जल्द ही इसका पालन करेंगे।

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