क्या समझौते के आधार पर POCSO मामले रद्द किए जा सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एसएलपी पर नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
5 Dec 2021 8:30 AM GMT
क्या आरोपी और पीड़िता के बीच हुए समझौते के आधार पर पॉक्सो के मामलों को रद्द किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया है जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था।
इस मामले में आरोपी पीड़िता का शिक्षक था। उसके खिलाफ यह आरोप था कि उसने उसके गालों को छुआ और उसके माथे पर चूमा था। शिकायत के बाद, यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 की धारा 9 (एफ) और 10 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एक केस दर्ज किया गया था। हाईकोर्ट के समक्ष, पीड़िता ने एक हलफनामा दायर किया कि उसने आरोपी के साथ पूरे विवाद को सुलझा लिया है और आरोपी के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसे रिकॉर्ड करते हुए केरल हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, राज्य ने तर्क दिया कि 2019 (5) एससीसी 688 में मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण शीर्षक वाले फैसले के मद्देनजर इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। उक्त निर्णय में, यह कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग उन अभियोगों में नहीं किया जाना चाहिए, जिनमें मानसिक बुराई के जघन्य और गंभीर अपराध या हत्या, बलात्कार, डकैती आदि जैसे अपराध शामिल हैं। ऐसे अपराध प्रकृति में निजी नहीं होते हैं और इनका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
इस पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है और जांच जारी रखने की अनुमति दे दी है।
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें विभिन्न आरोपियों के खिलाफ बलात्कार और बाल यौन हमले के आरोपों को रद्द करने के अपने पहले के फैसले को वापस ले लिया था। हाईकोर्ट ने शुरूआत में इस आधार पर इन मामलों में कार्यवाही को रद्द कर दिया था कि आरोपियों ने पीड़िताओं से शादी कर ली है। बाद में, न्यायाधीश ने जियान सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को ध्यान में रखते हुए इन आदेशों को वापिस ले लिया था। जियान सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य व गंभीर अपराधों और इस तरह के अन्य अपराधों के मामलों में ''भले ही पीड़ित या पीड़ित के परिवार और अपराधी ने विवाद सुलझा लिया हो,परंतु इन्हें उपयुक्त रूप से रद्द नहीं किया जा सकता है।'' इसलिए आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
केस का शीर्षक- केरल राज्य बनाम हफ़सल रहमान एन.के
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