जमानत की यह शर्त कि अभियुक्त को पुलिस के साथ Google लोकेशन शेयर करना चाहिए, प्रथम दृष्टया निजता के अधिकार का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

3 Oct 2023 3:09 PM GMT

  • जमानत की यह शर्त कि अभियुक्त को पुलिस के साथ Google लोकेशन शेयर करना चाहिए, प्रथम दृष्टया निजता के अधिकार का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि जमानत की अवधि में किसी आरोपी को अपने मोबाइल फोन से अपनी गूगल पिन लोकेशन संबंधित जांच अधिकारी को बताने की जमानत की शर्त लगाना प्रथम दृष्टया उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसने बैंक ऋण धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड (एसबीएफएल) के आंतरिक लेखा परीक्षक को जमानत दे दी थी।

    अदालत ने इस मुद्दे पर विचार करने पर सहमति जताई कि क्या दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आरोपी पर लगाई गई जमानत की शर्त, जिसमें उसे जमानत की अवधि मे संबंधित जांच अधिकारी को अपने मोबाइल फोन से अपना गूगल पिन लोकेशन बताना है, इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के मद्देनजर अनुमति दी जा सकती है।

    आज जब मामला सामने आया तो जस्टिस ओक ने कहा कि ऐसी जमानत की शर्त प्रथम दृष्टया निजता के मौलिक अधिकार का हनन कर सकती है।

    जस्टिस ओक ने वकील से पूछा,

    "आपको हमें ऐसी स्थिति के व्यावहारिक प्रभाव के बारे में बताना चाहिए। एक बार जब कोई व्यक्ति स्वतंत्र हो जाता है, तो कुछ शर्तें लगाई जाती हैं। लेकिन यहां आप जमानत मिलने के बाद उनकी गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं, क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है?"

    प्रवर्तन निदेशालय की ओर से एडवोकेट ज़ोहेब हुसैन पेश हुए।

    उन्होंने कोर्ट को बताया,

    "पुराने समय में, जब जमानत दी जाती थी तो आरोपी को हर हफ्ते आईओ को रिपोर्ट करना होता था। यह केवल तकनीक है, जो उसी चीज को सुविधाजनक बना रही है।"

    "लेकिन यह आरोपी की गतिविधियों पर नजर रखने से अलग है.." जस्टिस ओक ने जवाब दिया।

    ईडी के वकील ने यह भी कहा कि पुट्टुस्वामी मामले में, शीर्ष अदालत ने माना था कि अपराध की रोकथाम निजता के अधिकार के उल्लंघन का एक वैध कारण है।

    जस्टिस ओक ने उत्तर दिया, "लेकिन पुट्टुस्वामी में यह मुद्दा कभी विचार के लिए नहीं था।"

    मामले को आगे विचार के लिए 12 दिसंबर के लिए पोस्ट किया गया है।

    दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई जमानत शर्त का क्लॉज्‍ (डी), जिसकी स्वीकार्यता पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है, इस प्रकार है-

    (डी) आवेदक को अपने मोबाइल फोन से संबंधित आईओ को गूगल पिन लोकेशन शेयर करना होगा। मोबाइल फोन की लोकेशन जमानत के दौरान चालू रखी जाएगी।

    इस मामले में वित्तीय अनियमितता और एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंकों के एक कंजोर्टियम से एसबीएफएल द्वारा प्राप्त क्रेडिट सुविधाओं के संबंध में धन की हेराफेरी और 3269.42 करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान होने के कारण एफआईआर दर्ज की गई थी।

    प्रतिवादी का मामला यह है कि उसे एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया था और जांच की अवधि के दौरान वह एसबीएफएल का आंतरिक लेखा परीक्षक नहीं था।

    केस टाइटल: प्रवर्तन निदेशालय बनाम रमन भूरारिया, डायरी नंबर- 23447 - 20

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