विस्मृत किये जाने का अधिकार : केरल हाईकोर्ट ने रिपोर्ट किये गये अदालती आदेशों में इस्तेमाल निजी ब्योरे को सर्च इंजनों से हटाने की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की

LiveLaw News Network

19 Oct 2020 6:15 AM GMT

  • विस्मृत किये जाने का अधिकार : केरल हाईकोर्ट ने रिपोर्ट किये गये अदालती आदेशों में इस्तेमाल निजी ब्योरे को सर्च इंजनों से हटाने की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की

    Kerala High Court

    "कोर्ट के निर्णयों को प्रकाशित करने का अधिकार यदि है, तो वह कोर्ट रिकॉर्ड्स के चुनींदा हिस्सों के प्रकाशन तक नहीं बढ़ाया जाता है। हालांकि, कोर्ट रिकॉर्ड्स के प्रकाशन का अधिकार हमेशा सम्पूर्ण या किसी खास हिस्से के प्रकाशन तक ही सीमित होगा, जो किसी शोध के लिए प्रासंगिक होगा, लेकिन कोर्ट के फैसलों के निचोड़ से याचिकाकर्ता के निजी विवरण के प्रकाशन का कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है, बल्कि यह आम जनता की नजर में याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा धूमिल करने के लिए है।"

    केरल हाईकोर्ट ने संर्च इंजन- इंडियन कानून एवं गूगल इंडिया, के खिलाफ दायर उस रिट याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है, जिसमें याचिकाकर्ता के नाम/ निजी ब्योरे को हटाने की मांग की गयी है। याचिकाकर्ता एक बार किसी आपराधिक मामले में अभियुक्त था।

    न्यायमूर्ति एन. नागरेश ने याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली।

    याचिकाकर्ता मुख्य रूप से इस बात से दुखी है कि आपराधिक मुकदमे से बरी होने के बावजूद वेबसाइट इंडियन कानून उसका नाम हटाये बिना उन कार्यवाहियों से संबंधित जमानत आदेश प्रकाशित करना जारी रखे हुए है, जो गूगल पर भी पहला खोज परिणाम है और इससे उसे मानसिक आघात हो सकता है।

    इस प्रकार, निजता के अपने मौलिक अधिकारों का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता ने अपने व्यक्तिगत विवरण हटाने के लिए कंपनियों को दिशानिर्देश जारी करने का कोर्ट से अनुरोध किया है। उन्होंने केरल हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट के डेटाबेस से अपने व्यक्तिगत डेटा को हटाने की भी मांग की है।

    याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा है,

    "भले ही एक लॉ रिपोर्टर को कोर्ट के फैसलों को प्रकाशित करने का अधिकार है, लेकिन उसका अधिकार गूगल सर्च इंजन में उसके पिछले आपराधिक रिकॉर्ड का सारांश प्रस्तुत करने तक विस्तारित नहीं होता है। कोर्ट रिकॉर्ड्स के प्रकाशन का सामान्य मतलब कोर्ट के फैसले के सम्पूर्ण विषय-वस्तु या कोर्ट रिकॉर्ड्स के प्रकाशन से हो सकता है, जैसा भी मामला हो, लेकिन यह गूगल सर्च इंजन के डोमेन ऑनर या किसी वेबसाइट के डोमेन ऑनर को याचिकाकर्ता का नाम, पिता का नाम और पता, तथा भारतीय दंड संहिता के आपराधिक दंड प्रावधानों एवं अपराध संख्या के बारे में गलत जानकारी प्रकाशित करने का अधिकार नहीं देता।"

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष अनुरोध किया है कि निजता के अधिकार में विस्मृत किये जाने अर्थात भूला दिये जाने का अधिकार भी शामिल होगा, जैसा कि गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के कोर्ट ऑफ जस्टिस की ओर से स्वीकार किया गया है। उसने कर्नाटक हाईकोर्ट के भी एक फैसले पर भरोसा जताया है, जिसमें भूल जाने के अधिकार को मान्यता दी गयी है।

    उन्होंने दलील दी है,

    "भूल जाने के अधिकार की परिकल्पना है कि निजी जानकारियों, खासकर असुविधाजनक अतीत की जानकारियों, को डिजिटल दुनिया से तब हटा दिया जाएगा, जब वह संबंधित जानकारी अप्रासंगिक, अपर्याप्त, अनावश्यक या अतिशय हो जाये। नजीतन, याचिकाकर्ता को इस तरह की जानकारियों को इंटरनेट से हटवाने का अधिकार है तथा यह सुनिश्चित करना डोमेन स्वामियों का कर्तव्य है कि इस प्रकार की जानकारियां उनके संबंधित डोमेन से हटा दी जायें।"

    इसके अलावा, उन्होंने कोर्ट से कहा है कि वह 'आर. राजगोपालन बनाम तमिलनाडु सरकार, 1995 एआईआर 264' में 'पत्रकारों की आजादी' के संबंध में दिये गये अपने निष्कर्षों पर पुनर्विचार करें, क्योंकि उक्त फैसला निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने से पहले दिया गया था।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि संबंधित जमानत आदेश का प्रकाशन इस कारण से 'अप्रासंगिक' है कि उसे संबंधित आपराधिक मुकदमों में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था।

    याचिकाकर्ता के वकील : जॉनसन गोमेज, संजय जॉनसन, जॉन गोमेज, श्रीदेवी एस, आदिल एमएच एवं अलिंत जोसेफ

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