[E-Surveillance] वैध अवरोधन के रिकॉर्ड हाइली क्लासिफाइड, कोई स्टेटिस्टिकल डाटा नहीं रखा जाता: दिल्ली हाईकोर्ट से गृह मंत्रालय ने कहा
Shahadat
13 Sept 2023 11:52 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि वैध अवरोधन और निगरानी से संबंधित रिकॉर्ड को हाइली क्लासिफाइड डॉक्यूमेंट्स के रूप में वर्गीकृत किया गया है और ऐसी हाइली क्सालिफाइड जानकारी के लिए न्यूनतम डेटा बनाए रखा जाता है।
केंद्र ने कहा कि गृह मंत्रालय का सीआईएस प्रभाग वैध अवरोधन और निगरानी से संबंधित कोई स्टेटिस्टिकल डाटा नहीं रखता है, क्योंकि किसी भी कार्यात्मक उद्देश्य के लिए ऐसे रिकॉर्ड की आवश्यकता नहीं होती है।
केंद्र सरकार ने कहा,
“रिकॉर्ड को नष्ट करना वैधानिक आवश्यकता है...कैबिनेट सचिव के तहत गठित समीक्षा समिति द्वारा ऐसे निर्देशों की समीक्षा के बाद यदि किसी भी कार्यात्मक की आवश्यकता नहीं है तो गृह मंत्रालय द्वारा वैध अवरोधन से संबंधित सभी रिकॉर्ड नियमित रूप से हर छह महीने में नष्ट कर दिए जाते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से संबंधित स्टेटिस्टिकल जानकारी का खुलासा करने की मांग करने वाली याचिका का विरोध करते हुए मंत्रालय द्वारा 18 मार्च को दायर जवाबी हलफनामे में ये दलीलें दी गईं।
वकील और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) के सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक अपार गुप्ता ने सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) की धारा 19 के तहत केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित 28 जनवरी, 2022 के आदेश पर आपत्ति जताते हुए याचिका दायर की थी।
गुप्ता का मामला यह है कि इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के उपयोग के आसपास कोई पारदर्शिता मौजूद नहीं है। गुप्ता के अनुसार, सार्वजनिक अधिकारी 2009 इंटरसेप्शन नियमों के तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के कानूनी पर्यवेक्षी तंत्र की पर्याप्तता या कार्यप्रणाली को इंगित करने के लिए समग्र स्टेटिस्टिकल जानकारी भी प्रकाशित करने से इनकार करते हैं।
याचिका में नोटिस पिछले साल जुलाई में जारी किया गया था।
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद द्वारा इस मामले की सुनवाई की जानी है।
याचिका खारिज करने की मांग करते हुए एमएचए ने कहा कि कानून के अनुसार किसी अपराध से संबंधित देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या उकसावे के हित से जुड़ी जानकारी की सक्षम प्राधिकारी की उचित अनुमति के साथ अधिकृत कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा वैध अवरोधन और उसकी निगरानी की जाती है।
सरकार ने कहा,
“इसलिए याचिकाकर्ता के लिए दो साल की अवधि के लिए रिकॉर्ड की उम्मीद करना और उसके बाद यह आरोप लगाना अनुचित है कि उत्तर देने वाले प्रतिवादी को रिकॉर्ड को कथित रूप से नष्ट करने की अनुमति दी गई और एक नए दावे पर अपना रुख देर से बदल दिया, जो डेटा नहीं कर सकता। इसका खुलासा किया जाए, क्योंकि रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए हैं।''
इसके अलावा, गृह मंत्रालय ने यह भी प्रस्तुत किया कि अधिकृत सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा मासिक रिपोर्ट सक्षम प्राधिकारी के कार्यालय को प्रस्तुत की जाती है। इस रिपोर्ट में चल रही जांच और अन्य कार्यों के नतीजे के बारे में गुप्त प्रकृति की जानकारी होती है, जिसके लिए कानून के तहत प्राधिकरण मांगा जाता है।
हलफनामे में कहा गया,
“यह आगे प्रस्तुत किया गया कि इस प्रकार की जानकारी के सार्वजनिक किये जाने को आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(ए)8(1)(जी) और 8(1)(एच) के तहत छूट दी गई है। हालांकि, ऐसे रिकॉर्ड वैध अवरोधन और निगरानी से संबंधित हैं, जिन्हें नियमों के अनुसार हर छह महीने में नष्ट कर दिया जाता है।”
इसमें आगे कहा गया,
“यह आगे प्रस्तुत किया गया है कि आरटीआई एक्ट की धारा 8 (1) (एच) के अनुसार, जो जानकारी अपराधियों की जांच, गिरफ्तारी या अभियोजन की प्रक्रिया में बाधा डालती है, उस जानकारी को सार्वजनिक करने से छूट दी गई है। आगे यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी सांख्यिकीय डेटा से संबंधित है, जिसका रखरखाव गृह मंत्रालय द्वारा नहीं किया जाता।''
याचिका के बारे में
28 दिसंबर, 2018 को गुप्ता ने छह आरटीआई आवेदन दायर कर गृह मंत्रालय से इलेक्ट्रॉनिक निगरानी पर जानकारी मांगी थी।
गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा कि 2019 में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने बिना विवेक का प्रयोग किए सूचना के लिए उनके अनुरोधों का निपटारा कर दिया। इसके विरुद्ध प्रथम अपील प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (एफएए) के समक्ष की गई।
गुप्ता के अनुसार इन्हें भी बिना कोई कारण बताये निस्तारित कर दिया गया। इस प्रकार आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ए), 8(1)(जी) और 8(1)(एच) बिना कारण बताए लागू की गईं।
केस टाइटल: अपार गुप्ता बनाम केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, गृह मंत्रालय एवं अन्य