बदलापुर में कथित फर्जी मुठभेड़ के लिए पुलिस पर मामला दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट 'महत्वपूर्ण' नहीं: राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा
Shahadat
6 March 2025 4:29 AM

इस बारे में कि क्या वह जांच मजिस्ट्रेट के 'निष्कर्षों' के आधार पर FIR दर्ज करेगी, जिन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पांच पुलिसकर्मियों ने बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपियों को 'फर्जी मुठभेड़' में मार दिया, महाराष्ट्र सरकार ने आज बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा कि वह यह नहीं कह सकती कि रिपोर्ट ललिता कुमारी फैसले (FIR दर्ज करने) के आदेश का पालन करने के लिए 'महत्वपूर्ण' है।
राज्य, जिसने मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के आधार पर अभी तक कोई FIR दर्ज नहीं की, ने जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ को बताया कि उसकी CID मामले की 'स्वतंत्र जांच' कर रही है और उसके निष्कर्ष के बाद ही वह कोई फैसला ले सकती है।
विशेष लोक अभियोजक और सीनियर एडवोकेट अमित देसाई ने पीठ से कहा कि राज्य का मानना है कि वह 'कानून के अनुसार काम कर रहा है।'
देसाई ने अदालत से कहा,
"जांच जारी है... हमारी CID अपनी स्वतंत्र जांच कर रही है। उसी के आधार पर यह स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुंचेगी कि FIR दर्ज की जाए या नहीं, कोई संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं या इसे बंद करने की जरूरत है या नहीं। हम यह नहीं कह सकते कि यह (मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट) ललिता कुमारी के उद्देश्य (FIR दर्ज करने) के लिए सामग्री है।"
सीनियर वकील ने कहा,
"ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह सुझाव दे कि जांच दल दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम कर रहा है। ऐसा कोई भी कदम नहीं है, जो यह सुझाव दे कि हमारी कार्रवाई कानून के विपरीत है या कोई दुर्भावना है। हम कानून के अनुसार काम कर रहे हैं। मैं इस अदालत के मन में जरा सी भी छाप नहीं छोड़ना चाहता कि राज्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहा है।"
मजिस्ट्रेट ने 17 जनवरी को अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया कि मुठभेड़ "फर्जी" प्रतीत होती है, क्योंकि संबंधित दिन पुलिस द्वारा आरोपियों पर बल का प्रयोग "अनुचित" था। पिछली सुनवाई में मृतक-आरोपी के माता-पिता ने जस्टिस मोहिते-डेरे की अगुवाई वाली पीठ से संपर्क किया और अदालत से कहा कि वे अपने बेटे के लिए "न्याय मिलने में देरी" के कारण मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। इसलिए पीठ ने सीनियर एडवोकेट मंजुला राव को एमिक्स क्यूरी के रूप में अदालत की सहायता करने के लिए नियुक्त किया था।
जजों ने राव से अदालत को यह बताने के लिए कहा कि क्या मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट और ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद राज्य की भूमिका के मद्देनजर राज्य FIR (पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ) दर्ज कर सकता है। खंडपीठ ने राव से इस मुद्दे पर बहस करने के लिए भी कहा कि क्या FIR दर्ज की जा सकती है या क्या आयोग या CID जांच की स्थापना पुलिस के लिए FIR दर्ज करने में बाधा बनेगी। इस मुद्दे पर बहस करते हुए देसाई ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'मुठभेड़ों में पुलिस की जवाबदेही' के बारे में सुनाए गए पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसले का हवाला दिया।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित विस्तृत दिशानिर्देशों का राज्य द्वारा पालन किया जा रहा है।
देसाई ने कहा,
"फैसले में मामले की जांच के लिए स्वतंत्र जांच एजेंसी को आदेश दिया गया, हमने ऐसा किया, क्योंकि हमारी CIDएक स्वतंत्र एजेंसी है। पीयूसीएल के फैसले के तहत निर्धारित सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया गया। पीयूसीएल के सिद्धांतों का पालन किया गया है। इसलिए अनुच्छेद 227 के तहत बैठी यह अदालत मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के आधार पर राज्य को FIR दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकती है।"
इस पर जस्टिस मोहिते-डेरे ने स्पष्ट किया कि पीठ ने वकीलों से कभी यह नहीं पूछा कि क्या वह FIR दर्ज करने का निर्देश दे सकती है।
जस्टिस मोहिते-डेरे ने स्पष्ट किया,
"हम अपनी शक्तियों और सीमाओं को जानते हैं। हमारा सवाल हमारे निर्देश पर नहीं था, बल्कि रिपोर्ट प्राप्त करने पर पुलिस की भूमिका पर था। हमारा सवाल यह है कि रिपोर्ट के आधार पर पुलिस पर FIR दर्ज करने का दायित्व है या नहीं।"
सोमवार (10 मार्च) को मामले की सुनवाई जारी रहेगी।