बॉम्बे हाईकोर्ट ने BMC द्वारा संचालित अस्पताल को फर्जी डॉक्टर मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार ट्रस्टियों को जमानत दी

Amir Ahmad

19 Sept 2024 12:51 PM IST

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने BMC द्वारा संचालित अस्पताल को फर्जी डॉक्टर मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार ट्रस्टियों को जमानत दी

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में डॉक्टर और ट्रस्ट के ट्रस्टियों को जमानत दी, जिन्होंने मुंबई के मुलुंड इलाके में स्थित बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के अस्पताल को फर्जी डॉक्टर मुहैया कराए थे। इस मामले मे 2018 से मई 2023 तक कथित तौर पर 149 लोगों की मौत हो गई थी।

    एकल जज जस्टिस मनीष पिटाले ने डॉ. सुशान जाधव, बीरेंद्र यादव और दीपक जैन को जमानत दी। इन सभी पर हत्या, हत्या का प्रयास, आपराधिक साजिश, जालसाजी, प्रतिरूपण, धोखाधड़ी आदि के आरोप हैं।

    शिकायतकर्ता के अनुसार उसे एक कॉल आया, जिसमें कहा गया कि उसका भाई बेहोश होने पर उसे मुलुंड के एमटी अग्रवाल अस्पताल ले जाया गया। हालांकि उसके भाई को उक्त अस्पताल में लाए जाने के बाद मृत घोषित कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने अस्पताल में डॉक्टरों की ओर से मेडिकल लापरवाही का आरोप लगाया। इसलिए उन्हें सूचना के अधिकार (RTI Act) के तहत जानकारी मिली जिससे पता चला कि ट्रस्ट - जीवन ज्योत चैरिटेबल ट्रस्ट - ने 2018 से उक्त अस्पताल को कम से कम 17 फर्जी डॉक्टर मुहैया कराए थे। RTI के जवाब में ही शिकायतकर्ता को पता चला कि अस्पताल में कुल 149 मौतें हुई हैं।

    RTI के जवाब के आधार पर शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रस्ट ने झोलाछाप और अयोग्य डॉक्टरों की आपूर्ति की जिसके कारण उक्त अस्पताल में इतनी मौतें हुईं।

    जस्टिस पिटाले ने कहा कि शिकायतकर्ता के बयान में किसी विशेष व्यक्ति या व्यक्तियों की पहचान पीड़ितों के रूप में नहीं की गई, जिनकी मृत्यु या चोटें न्यायालय के समक्ष आवेदकों की ओर से किए गए विशिष्ट कार्यों से संबंधित हो सकती हैं।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "BMC द्वारा संचालित अस्पताल के मामलों के संबंध में इंफॉर्मेंट द्वारा की गई पूछताछ से प्राप्त सामग्री के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई। आरोप व्यापक और सामान्य प्रकृति के हैं, जो एफआईआर में निर्दिष्ट अवधि से संबंधित हैं, जिसमें आम तौर पर 149 व्यक्तियों की मृत्यु का उल्लेख है। दूसरे शब्दों में न तो एफआईआर दर्ज करने के लिए बयान और न ही जांच के दौरान रिकॉर्ड पर आए दस्तावेज जो आरोप-पत्र का हिस्सा हैं। आवेदकों की ओर से कथित तौर पर किए गए कार्यों के कारण व्यक्तिगत मृत्यु या व्यक्तियों की पीड़ा की पहचान करते हैं।"

    जज ने कहा कि इस स्तर पर आईपीसी की धारा 302 और 307 के तहत दर्ज अपराधों के संबंध में पहचाने गए व्यक्तियों की मृत्यु के साथ आवेदकों के संबंध को समझना असंभव है और इस आधार पर ही आवेदकों ने अपने पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला बनाया है।

    पीठ ने आवेदकों की इस दलील पर गौर किया कि ट्रस्टी होने के नाते अनुबंध के अनुसार BMC द्वारा संचालित उक्त अस्पताल को मेडिकल पेशेवरों की आपूर्ति करने के विवरण में उनकी या तो मामूली भूमिका थी या कोई भूमिका नहीं थी।

    न्यायाधीश ने प्रत्येक को 50,000 रुपये की जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा,

    "इस न्यायालय के समक्ष आवेदक एक वर्ष से अधिक समय तक कारावास में रह चुके हैं। आरोप-पत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है। आरोप-पत्र अभी तय नहीं हुआ। मामले की गंभीरता को देखते हुए यह निष्कर्ष निकालना उचित होगा कि निकट भविष्य में मुकदमा शुरू नहीं हो सकता, उचित समय के भीतर पूरा होना तो दूर की बात है। इसलिए आवेदकों ने जमानत पर रिहा होने के लिए आधार बनाए हैं।”

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