कुल्हाड़ी के नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया, हत्या नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि गैर-इरादतन हत्या में बदली

Update: 2024-07-20 08:56 GMT

उड़ीसा हाईकोर्ट ने व्यक्ति की हत्या की दोषसिद्धि बदल दी। उक्त व्यक्ति को निचली अदालत ने अपने भतीजे की हत्या करने के लिए दोषी पाया था। उसे आईपीसी की धारा 304, भाग-I के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया गया।

अपीलकर्ता को आंशिक राहत प्रदान करते हुए जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कुल्हाड़ी जैसे धारदार हथियार रखने के बावजूद, उसने नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया और केवल कुंद हिस्से का इस्तेमाल किया।

खंडपीठ ने कहा,

“ऐसी स्थिति के बावजूद अपीलकर्ता ने धारदार टांगिया का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि कुंद टांगिया का इस्तेमाल किया और खोपड़ी तथा गर्दन जैसे शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर दो घाव किए तथा डॉक्टर (पी.डब्लू.16) ने कोई राय नहीं दी कि कुल मिलाकर या व्यक्तिगत रूप से लगी कोई भी चोट सामान्य प्रकृति में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त है।”

अभियोजन पक्ष का मामला

13.06.2008 को अपीलकर्ता ने मृतक के बकरी शेड को बंद किया और जब मृतक ने अपनी बकरियों को रखने के लिए अपीलकर्ता से चाबी मांगी तो उसने चाबी देने से इनकार कर दिया। इस कारण मृतक और अपीलकर्ता के बीच मौखिक विवाद हुआ।

इस झगड़े के दौरान अपीलकर्ता हिंसक हो गया और टांगिया (कुल्हाड़ी) लेकर आया और मृतक के सिर तथा गर्दन पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप बहुत अधिक रक्तस्राव हुआ। हालांकि उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन दो दिन बाद यानी 15.06.2008 को उसकी मौत हो गई।

अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया और हिरासत में रहते हुए उसने साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत बरामदगी बयान दिया, जिसके अनुसार अपराध का हथियार गवाहों की मौजूदगी में छिपाने की जगह से बरामद किया गया। जांच पूरी होने के बाद अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया।

ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को IPC की धारा 302 के तहत अपराध करने का दोषी पाया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने इस जेल आपराधिक अपील में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

कोर्ट की टिप्पणियां

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अवलोकन से कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मृतक की मौत हत्या की प्रकृति की है। फिर बेंच ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की जांच की, जो अपीलकर्ता को अपराध करने में शामिल करते हैं।

सूचना देने वाली महिला जो मृतक की विधवा भी है, उसने बयान दिया कि जब मृतक अपनी बकरियां बांधने जा रहा था तो अपीलकर्ता ने कुल्हाड़ी से मृतक की गर्दन और सिर पर वार किया, जिससे उसे गंभीर रक्तस्राव हुआ। चार अन्य गवाहों ने भी इसी तरह बयान दिया और स्पष्ट रूप से कहा कि अपीलकर्ता ने मृतक के सिर और गर्दन पर कुल्हाड़ी से हमला किया।

इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि गवाहों की गवाही प्रकृति में सुसंगत है, जो निस्संदेह अपीलकर्ता के अपराध की ओर इशारा करती है। इसलिए न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि निचली अदालत ने मृतक की मृत्यु के लिए अपीलकर्ता को सही रूप से दोषी पाया। मृतक की मृत्यु के लिए अपीलकर्ता की ज़िम्मेदारी तय करने के बाद विचार के लिए प्रासंगिक प्रश्न यह था कि क्या अपीलकर्ता हत्या या गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी है।

न्यायालय ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की राय का हवाला दिया। उन्होंने दो कटे हुए घाव पाए। एक खोपड़ी के दाहिने टेम्पोरल क्षेत्र पर और दूसरा गर्दन के बाएं सिरे पर। चोटों की प्रकृति को देखते हुए न्यायालय का मत था कि यद्यपि अपीलकर्ता के पास कुल्हाड़ी जैसा धारदार हथियार था लेकिन उसने उसके नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि कोई कटाव वाला घाव नहीं था, बल्कि केवल कटाव वाले घाव थे जो हथियार के कुंद हिस्से से हो सकते हैं।

जस्टिस साहू की अध्यक्षता वाली पीठ ने कई निर्णयों का उल्लेख किया, जिसमें राम आसरे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य गुरदयाल सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य और हरीश कुमार बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय शामिल हैं, जिसमें संबंधित अभियुक्तों को हत्या के लिए दोषी नहीं ठहराया गया, क्योंकि उन्होंने यह जानते हुए भी कि धारदार हथियार से कहीं अधिक नुकसान हो सकता था धारदार हथियार का इस्तेमाल नहीं किया।

उपर्युक्त उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय का विचार था कि जिस कृत्य से मृत्यु हुई थी, वह शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से किया गया, क्योंकि अपीलकर्ता जानता था कि इससे मृतक की मृत्यु होने की संभावना है। इस प्रकार यह भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के खंड 'द्वितीय' के अंतर्गत आता है।

यह गंभीर और अचानक उकसावे के कारण आत्म-नियंत्रण की शक्ति से वंचित होने पर हुआ था, इसलिए न्यायालय ने कहा कि यह धारा 300 के अपवाद 1 के अंतर्गत आता है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के पहले भाग के अंतर्गत दंडनीय है।

परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता को IPC की धारा 304, भाग-I के तहत गैर-इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और उसे दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता पहले से ही 16 साल से अधिक समय से हिरासत में है उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।

केस टाइटल- मकरू नाइक बनाम ओडिशा राज्य

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