गलत काम करने वालों को अपनी गलतियों से लाभ कमाने की इजाजत नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-05-15 07:11 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि किसी को भी कानून की अनुकूल व्याख्या हासिल करने के लिए अपनी गलती का अनुचित लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जो कोई भी काम करने से रोकता है, उसे अपने द्वारा किए गए गैर-प्रदर्शन का लाभ नहीं उठाना चाहिए।

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट डिवीजन बेंच के 2015 के फैसले के खिलाफ नगरपालिका समिति, कटरा की अपील पर अपना फैसला सुना रही थी, जिसने एकल न्यायाधीश की राय की पुष्टि की थी कि प्रतिवादी-बोलीदाता ने 365 दिनों की निर्धारित अनुबंध अवधि में 33 दिन कम काम किया था। इस प्रकार, इन दिनों के लिए आनुपातिक नीलामी राशि के भुगतान का हकदार था।

जस्टिस गवई और जस्टिस मेहता की खंडपीठ ने कहा कि नीलामी नोटिस के नियमों और शर्तों की वैधता को चुनौती देकर निविदा कार्यवाही में भाग लेने के बावजूद, प्रतिवादी कार्य आदेश जारी करने में हुई देरी के लिए स्वयं जिम्मेदार था। उन्हें पूरे 365 दिनों की अवधि के लिए काम करने के अवसर से वंचित कर दिया गया।

तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता-नगरपालिका समिति, कटरा ने निविदा आमंत्रण नोटिस (NIT) जारी किया, जिसमें आधार शिविर से माता वैष्णो देवी के पवित्र मंदिर तक तीर्थयात्रियों के परिवहन में शामिल खच्चरों और मजदूरों की आपूर्ति के लिए बोलियां मांगी गईं। अनुबंध वर्तमान प्रतिवादी को पेश किया गया, जिसने इस प्रकार दिए गए प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

NIT क्लॉज-8 के अनुसार, सफल बोलीदाता को 24 घंटे के भीतर बोली राशि का 40% जमा करना आवश्यक था। बोली लगाने वाले को अनुबंध अवधि के शेष कार्यकाल के लिए राशि सुरक्षित करने के लिए बैंक गारंटी के साथ 5 पोस्ट डेटेड चेक जमा करने का भी आदेश दिया गया।

प्रतिवादी-बोलीदाता ने सिविल मुकदमा दायर कर यह घोषणा करने की मांग की कि NIT क्लॉज-8 मनमाना था। जिला न्यायाधीश, रियासी की अदालत ने आवेदन की अनुमति दी और अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी को अनुबंध आवंटन का आदेश जारी करने का निर्देश देते हुए अस्थायी निषेधाज्ञा दी। नगरपालिका समिति की चुनौती पर हाईकोर्ट ने भी आदेश पारित किया, जिसमें अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी के पक्ष में कार्य आदेश जारी करने का निर्देश दिया गया।

अनुबंध अवधि के समापन के बाद प्रतिवादी ने हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि उसका अनुबंध 1 अप्रैल, 2010 से शुरू होना था और 31 मार्च, 2011 तक 365 दिनों की अवधि तक चलना था, लेकिन उक्त अवधि इसे छोटा कर दिया गया, क्योंकि इसे 10 मई, 2010 से ही शुरू किया जा सकता था। इसलिए प्रतिवादी को 33 दिनों की अवधि के लिए कमाई के संग्रह का नुकसान हुआ। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अपीलकर्ताओं को छह सप्ताह के भीतर प्रतिवादी के दावे पर विचार करने के निर्देश के साथ रिट याचिका का निपटारा किया।

प्रतिवादी का यह दावा खारिज कर दिया गया, जिसे अन्य रिट याचिका में चुनौती दी गई। एकल न्यायाधीश ने माना कि यह प्रतिवादी-बोलीदाता की विफलता थी, जिसके कारण उसे 1 अप्रैल, 2010 से अनुबंध के तहत प्रदर्शन शुरू करने में सक्षम आवंटन पत्र जारी नहीं किया गया था; प्रतिवादी ने खंड-8 की वैधता पर सवाल उठाया था। हालांकि, एकल न्यायाधीश ने वेतन और संबंधित खर्चों में कटौती के बाद 1 अप्रैल, 2010 से शुरू होने वाली अनुबंध अवधि के पहले 32 दिनों के दौरान अपीलकर्ता-नगरपालिका समिति द्वारा एकत्र किए गए शुद्ध राजस्व के बराबर बोली लगाने वाले को हुए नुकसान की मात्रा निर्धारित करने का निर्णय लिया। व्यय और अपीलकर्ताओं को प्रतिवादी को उसका भुगतान करने का निर्देश देने के लिए आगे बढ़े।

उक्त आदेश के खिलाफ अपीलकर्ताओं द्वारा की गई इंट्रा-कोर्ट अपील और प्रतिवादी द्वारा दायर क्रॉस-अपील में एकल पीठ के आदेश में संशोधन की मांग की गई और अपीलकर्ता को बिना किसी कटौती के 12% प्रति वर्ष ब्याज के साथ कुल राशि वापस करने का निर्देश दिया गया।

जस्टिस गवई और जस्टिस मेहता की पीठ के समक्ष लगाए गए डिवीजन बेंच के फैसले को खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल: म्यूनिसिपल कमेटी कटरा बनाम अश्वनी कुमार

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