मनी बिल मुद्दे पर जल्द ही सुनवाई पर फैसला लेंगे : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

Update: 2024-07-15 06:51 GMT

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार (15 जुलाई) को "मनी बिल" मुद्दे पर जल्द ही सुनवाई पर फैसला लेने पर सहमति जताई। यह तब हुआ जब सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने इस मामले का उल्लेख किया, जिसे तत्काल सुनवाई के लिए 7 जजों की पीठ को भेजा गया।

सिब्बल ने कहा कि यह मामला पहले से ही निर्धारित संविधान पीठ की सुनवाई की सूची में है और उन्होंने प्राथमिकता का अनुरोध किया।

सीजेआई ने कहा कि वे जल्द ही इस पर फैसला लेंगे। सिब्बल ने सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी के साथ कहा कि सभी दलीलें पूरी हो चुकी हैं। मामले पर सिर्फ सुनवाई की जरूरत है।

सिब्बल ने आग्रह किया,

"आप जल्द से जल्द फैसला लें।"

सीजेआई ने जवाब दिया,

"मैं फैसला लूंगा।"

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत परिभाषित मनी बिल, कराधान, सार्वजनिक व्यय आदि जैसे वित्तीय मामलों से संबंधित है। राज्यसभा इस विधेयक में संशोधन या अस्वीकृति नहीं कर सकती। धन विधेयक प्रावधान ने तब विवाद खड़ा कर दिया, जब सरकार ने आधार विधेयक जैसे कुछ विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पेश करने की कोशिश की थी, ऐसा प्रतीत होता है कि यह राज्यसभा को दरकिनार करने के लिए था, जहां सरकार के पास बहुमत नहीं था। यहां तक ​​कि धन शोधन निवारण अधिनियम में कई संशोधन धन विधेयक के माध्यम से पेश किए गए थे।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी थी, इसने एक मुद्दे को खुला रखा, यानी क्या पीएमएलए में संशोधन को धन विधेयक के रूप में पारित किया जा सकता है। इस सवाल पर सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार किया जाना था।

गौरतलब है कि सात जजों की पीठ पहले से ही धन विधेयक को परिभाषित करने के संवैधानिक प्रश्न और किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने के लोकसभा स्पीकर के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के दायरे पर विचार कर रही है।

पीठ का गठन संविधान पीठ द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 110(1) की व्याख्या पर रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक में दिए गए संदर्भ के कारण हुआ। इस बिंदु पर आधार मामले में बहुमत के फैसले की सत्यता पर भी न्यायालय ने संदेह जताया था। इसके बाद पीएमएलए मामले में इस प्रश्न को बड़ी पीठ के विचार के लिए खुला छोड़ दिया गया।

आधार मामले में जस्टिस ए.के. सीकरी द्वारा बहुमत के निर्णय में कहा गया कि आधार विधेयक अपने सार और सार में धन विधेयक होने की कसौटी पर खरा उतरेगा। यह माना गया कि आधार अधिनियम का मुख्य प्रावधान धन विधेयक का हिस्सा है और अन्य प्रावधान केवल आकस्मिक हैं और इसलिए अनुच्छेद 110 के खंड (जी) के अंतर्गत आते हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार निर्णय में अपनी असहमति में अनुच्छेद 110(1) में 'केवल' शब्द का उल्लेख किया और कहा कि विधायी प्रविष्टियों पर लागू सार और सार सिद्धांत इस प्रश्न पर निर्णय लेने पर लागू नहीं होगा कि कोई विशेष विधेयक "धन विधेयक" है या नहीं। असहमति वाले दृष्टिकोण ने बताया कि अनुच्छेद 110 की स्पष्ट भाषा कहती है कि कोई विधेयक तभी धन विधेयक हो सकता है, जब वह करों या उधारों या अनुच्छेद 110(1)(ए) से (जी) में उल्लिखित अन्य पहलुओं से संबंधित हो।

2019 में रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा दिए गए मुख्य फैसले में कहा गया कि आधार फैसले में बहुमत के फैसले ने अनुच्छेद 110(1) में 'केवल' शब्द के प्रभाव पर पर्याप्त रूप से चर्चा नहीं की और एक निष्कर्ष के नतीजों की जांच नहीं की जब "मनी बिल" के रूप में पारित किए गए अधिनियम के कुछ प्रावधान अनुच्छेद 110(1)(ए) से (जी) के अनुरूप नहीं होते हैं।

चूंकि रोजर मैथ्यू बेंच के पास आधार मामले के फैसले के समान ही ताकत थी, इसलिए उसने आधार मामले में दी गई व्याख्या की शुद्धता का पता लगाने के लिए मामले को 7 जजों की बेंच को भेज दिया। अनुच्छेद 110(1) की व्याख्या में 'केवल' शब्द के प्रभाव को सात जजों की बड़ी बेंच द्वारा जांच के लिए भेजा गया।

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