'सामुदायिक रसोई' का विकल्प तलाशना States/UTs पर निर्भर: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-02-22 07:47 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (22 फरवरी) को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में 'सामुदायिक रसोई' के विकल्प का पता लगाने के लिए इसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (States/UTs) के लिए खुला छोड़ दिया।

न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय सामुदायिक रसोई नीति तैयार करने के लिए निर्देश पारित करने से इनकार कfया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और उक्त अधिनियम के तहत भोजन और पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए संघ और राज्यों द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई हैं।

न्यायालय ने कहा कि उसने इस बात की जांच नहीं की है कि सामुदायिक रसोई की अवधारणा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बेहतर विकल्प है या नहीं। न्यायालय ने मामले को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के निर्णय पर छोड़ते हुए सामुदायिक रसोई नीति बनाने की मांग करने वाली जनहित याचिका का निपटारा किया।

जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने फैसले का मुख्य अंश इस प्रकार सुनाया:

"जब खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार-आधारित दृष्टिकोण देने वाला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और उक्त अधिनियम के तहत अन्य कल्याणकारी योजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में गुणवत्ता की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए संघ और राज्यों द्वारा लोगों को किफायती दाम पर भोजन मिलने के लिए तैयार और कार्यान्वित की गई हैं, हम इस संबंध में कोई और दिशा-निर्देश देने का प्रस्ताव नहीं करते हैं।

न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा,

हमने इस बात की जांच नहीं की है कि एनएफएसए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामुदायिक रसोई की अवधारणा राज्यों के लिए बेहतर या समझदार विकल्प है या नहीं, बल्कि हम इसे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए खुला छोड़ना पसंद करते हैं, जिससे वे ऐसी वैकल्पिक योजनाओं का पता लगा सकें, जो अधिनियम के तहत स्वीकार्य हो सकती हैं।''

जनहित याचिका अनुन धवन द्वारा दायर की गई, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आशिमा मंडला ने किया।

बेंच ने इससे पहले 16 जनवरी को याचिका पर सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गौरतलब है कि यह वही मामला है, जिसमें पूर्व में सीजेआई एनवी रमना ने भूख से होने वाली मौतों को रोकने के लिए राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता पर जोर दिया था। इसके अलावा पूर्व सीजेआई ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि भूख को संतुष्ट करना होगा और अटॉर्नी जनरल से 'मानवीय दृष्टिकोण अपनाने' के लिए कहा।

केस टाइटल: अनुन धवन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, WP(c) No.1103/201

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