ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सेक्स चेंज सर्जरी के लिए नियोक्ता की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-10-18 16:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर और लिंग-विविध व्यक्तियों को लिंग पुष्टिकरण या सर्जरी कराने के लिए अपने नियोक्ता से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि जेंडर के आत्मनिर्णय का अधिकार व्यक्तिगत स्वायत्तता और सम्मान का मामला है।

अदालत ने कहा,

"हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कोई भी ट्रांसजेंडर या लिंग-विविध व्यक्ति सर्जरी कराने के लिए अपने नियोक्ता से अनुमति लेने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि उनके काम की प्रकृति ऐसी न हो कि वह किसी की लिंग पहचान पर आधारित हो।"

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यद्यपि किसी कर्मचारी को नियोक्ता को पूर्व सूचना देने की आवश्यकता हो सकती है। हालांकि, यह केवल प्रशासनिक उद्देश्यों, जैसे आधिकारिक रिकॉर्ड को अद्यतन करने और दस्तावेजों में आवश्यक संशोधन करने के लिए ही होनी चाहिए।

अदालत ने आगे कहा,

"बेशक, नियोक्ताओं को एक उचित सूचना दी जानी चाहिए। हालांकि, यह केवल दस्तावेजों आदि में आवश्यक परिवर्तन और संशोधन करने के लिए होनी चाहिए।"

अदालत ने यह टिप्पणी जेन कौशिक द्वारा दायर एक रिट याचिका पर की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें उनकी लैंगिक पहचान के कारण दो बार शिक्षण पदों से बर्खास्त किया गया। पहली बार उत्तर प्रदेश स्थित उमा देवी चिल्ड्रन्स अकादमी से और बाद में गुजरात स्थित जेपी मोदी स्कूल ने उन्हें नियुक्ति देने से मना कर दिया था।

अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण अधिनियम) 2019 की धारा 9, ट्रांसजेंडर व्यक्ति की भर्ती के संबंध में भी भेदभाव को प्रतिबंधित करती है।

अदालत ने कहा कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां कार्यबल में कार्यरत और अपनी पहचान के अनुरूप सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (SRS) करवाना या अपने दस्तावेज़ों में बदलाव करवाना चाहने वाले व्यक्तियों को ऐसा न करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें अपनी नौकरी समाप्त होने का डर सताता है, या उन्हें उच्च अधिकारियों से अनुमति लेने के लिए कहा जाता है।

अदालत ने कहा,

"हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कोई भी ट्रांसजेंडर या जेंडर विविधता वाला व्यक्ति अपने नियोक्ता से सर्जरी करवाने की अनुमति लेने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि उनके काम की प्रकृति ऐसी न हो, जो उनकी लैंगिक पहचान पर आधारित हो। बेशक, नियोक्ताओं को उचित नोटिस दिया जाना चाहिए। हालांकि, यह केवल दस्तावेज़ों आदि में आवश्यक परिवर्तन और संशोधन करने के लिए होना चाहिए।"

याचिका के अनुसार, कौशिक ने 2019 में जेंडर पुष्टिकरण सर्जरी करवाई थी। उनको 22 नवंबर, 2022 को उमा देवी चिल्ड्रन्स अकादमी में अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान में ट्रेनी ग्रेजुएट टीचर के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने वहां केवल आठ दिन काम किया। उन्होंने आरोप लगाया कि पारंपरिक लैंगिक मानदंडों का पालन न करने के कारण सहकर्मियों और स्टूडेंट्स द्वारा उन्हें शारीरिक शर्मिंदगी और उपहास का सामना करना पड़ा। उन्होंने जब उत्पीड़न के बारे में प्रिंसिपल से शिकायत की तो स्कूल में उनकी ट्रांसजेंडर पहचान का खुलासा हो गया, जिसके बाद उन्हें कथित तौर पर 3 दिसंबर, 2022 को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। हालांकि, स्कूल ने दावा किया कि उनकी बर्खास्तगी खराब प्रदर्शन और कक्षा में अनुशासनहीनता के कारण हुई थी, जिसमें एक स्टूडेंट की शिकायत और उनके कथित कदाचार से जुड़ी घटना का हवाला दिया गया। प्रबंधन ने यह भी दावा किया कि उसने गर्ल्स हॉस्टल में आवास और शौचालय की सुविधा प्रदान करके उनकी लैंगिक पहचान को ध्यान में रखा था।

इस विवाद की व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई। मीडिया में चर्चा के बाद स्कूल ने कौशिक को मानहानि का नोटिस जारी किया। हालांकि बाद में स्कूल ने उन्हें सशर्त आधार पर फिर से नियुक्त करने की पेशकश की। हालांकि, वह फरवरी 2023 में निर्धारित अगली परीक्षा में शामिल नहीं हुईं और उसके बाद यह पद भर दिया गया।

निडर होकर कौशिक ने जुलाई, 2023 में गुजरात के जामनगर स्थित जेपी मोदी स्कूल में एक शिक्षक पद के लिए आवेदन किया। उन्होंने ऑनलाइन इंटरव्यू पास कर लिया और उन्हें 24 जुलाई, 2023 की तारीख वाला एक प्रस्ताव पत्र जारी किया गया। हालांकि, नियुक्ति की औपचारिकताओं के दौरान, जब उन्होंने अपने जेंडर चेंज को दर्शाने वाले दस्तावेज़ जमा किए तो स्कूल ने कथित तौर पर उन्हें कार्यभार ग्रहण करने से मना कर दिया और बिना किसी स्पष्टीकरण के प्रस्ताव वापस ले लिया। संस्थान ने बाद में अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उनकी नियुक्ति केवल अस्थायी थी और दस्तावेज़ सत्यापन और परिवीक्षा के अधीन थी। इस बात से इनकार किया कि उनकी ट्रांसजेंडर पहचान इस निर्णय का कारण है।

तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि उमा देवी चिल्ड्रन्स अकादमी ने याचिकाकर्ता को समायोजित करने के लिए कुछ प्रयास किए, उसे महिलाओं के आवास में रखा और महिला शौचालयों के उपयोग की अनुमति दी। यह कि, हालांकि स्कूल द्वारा शारीरिक अपमान की घटनाओं से निपटने का तरीका निंदनीय था, लेकिन साक्ष्य स्कूल द्वारा जानबूझकर भेदभाव किए जाने की पुष्टि नहीं करते। हालांकि, न्यायालय ने स्कूल की आलोचना की कि उसके पास वैधानिक रूप से अनिवार्य शिकायत निवारण तंत्र नहीं है और उत्पीड़न के प्रति आँखें मूंद ली हैं।

इसके विपरीत, अदालत ने पाया कि जेपी मोदी स्कूल द्वारा याचिकाकर्ता को उसके ट्रांसजेंडर होने का पता चलने के बाद भी प्रवेश प्रस्ताव जारी करने और फिर उसे प्रवेश देने से इनकार करने का आचरण अस्पष्ट था और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह अधिनियम और अनुच्छेद 15 द्वारा निषिद्ध भर्ती में भेदभाव के समान है।

न्यायालय ने राज्य को भी भेदभावपूर्ण भेदभाव के लिए दोषी ठहराया, क्योंकि संघ और राज्य शिक्षा एवं सामाजिक न्याय प्राधिकरण और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, स्कूलों में अधिनियम और नियमों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में विफल रहे। अनुच्छेद 32 के दायरे और सार्वजनिक कानून के तहत मुआवजा देने की अदालत की शक्ति पर मिसाल की समीक्षा करने के बाद अदालत ने मामले को मौद्रिक राहत के लिए उपयुक्त उदाहरण माना: इसने जेपी मोदी स्कूल के याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया और केंद्र और संबंधित राज्य प्राधिकारियों को प्रभावी निवारण तंत्र प्रदान करने में उनकी विफलता के लिए मुआवजे के रूप में 50,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

Case Details: JANE KAUSHIK v UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(C) No. 1405/2023

Tags:    

Similar News